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कर्नाटक में CM पद को लेकर उभर नया चेहरा! सिद्धारमैया और शिवकुमार को पछाड़ रेस में मारेगा बाजी...इस कार्यक्रम के बाद अटकले हुई तेज

कर्नाटक में कांग्रेस के सत्ता संघर्ष में जी. परमेश्वर एक नया चेहरा बनकर उभरे हैं. हाल ही में उनके 74वें जन्मदिन पर 'परमोत्सव' नाम से एक आयोजन हुआ, जिसे उनके समर्थकों ने आयोजित किया. इस कार्यक्रम में सीएम पद की चर्चा के साथ, परमेश्वर ने बाबासाहेब आंबेडकर के संघर्ष का भी जिक्र किया. इससे उनका राजनीतिक प्रभाव बढ़ सकता है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

CM Race in Karnataka : कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के भीतर चल रहे सत्ता संघर्ष में जी. परमेश्वर का नाम एक नए चेहरे के रूप में सामने आया है. राज्य के प्रमुख शहर मैसुरू में एक आयोजन हुआ, जिसमें प्रदेश के होम मिनिस्टर जी. परमेश्वर का सम्मान किया गया. इस समारोह ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई है, और इसे ताकत दिखाने के समारोह के रूप में देखा जा रहा है.

परमेश्वर का सम्मान समारोह, क्या था खास?

आपको बता दें कि मैसुरू में आयोजित 'परमोत्सव' नामक इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे. आयोजन में कटआउट्स, पोस्टर और तस्वीरे लगाई गई थीं, जो परमेश्वर के समर्थन को दिखाती थीं. इस कार्यक्रम को सियासी नजरिए से देखा गया, क्योंकि इसे परमेश्वर के समर्थकों द्वारा उनके राजनीतिक प्रभाव को प्रदर्शित करने के रूप में देखा जा रहा है.

आयोजन का नाम परमोत्सव, क्या था संदेश?
इस कार्यक्रम का नाम 'परमोत्सव' रखा गया था, और इसे इस प्रकार से देखा गया कि यह केवल एक सम्मान समारोह नहीं, बल्कि परमेश्वर का राजनीतिक ताकत दिखाने का मौका था. परमेश्वर के कई समर्थक, संत, दलित नेता और कांग्रेस के विधायक भी इसमें शामिल हुए थे. इस आयोजन ने कर्नाटक के राजनीतिक माहौल में नया मोड़ ला दिया.

जी. परमेश्वर का बयान, समर्थन और सम्मान का कर्ज
कार्यक्रम में शामिल होने पर जब जी. परमेश्वर से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि यह आयोजन उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया था. उन्होंने बताया कि यह आयोजन उनके प्यार और समर्थन के कारण हुआ था. परमेश्वर ने कहा, "मैं वहां इसलिए था क्योंकि लोग चाहते थे कि मैं वहां रहूं. उनका प्यार और समर्थन मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है. मैं उनकी इच्छा के अनुसार वहां मौजूद था."

परमेश्वर का जन्मदिन, सियासी गहमा-गहमी
यह आयोजन जी. परमेश्वर के 74वें जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया गया था. हालांकि, इससे पहले उनके जन्मदिन को इस तरह से बड़े सियासी तरीके से नहीं मनाया गया था. इस आयोजन ने उन्हें एक नए राजनीतिक चेहरे के रूप में प्रस्तुत किया, जो कांग्रेस पार्टी के भीतर संभावित सीएम पद के उम्मीदवार के रूप में उभर सकते हैं.

सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच बढ़ती टकराव
कर्नाटक की कांग्रेस राजनीति में वर्तमान में एम. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच सियासी टकराव और संघर्ष चल रहा है. इस संघर्ष में, जी. परमेश्वर का नाम भी चर्चा में आया है. जब पिछली बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, तो सीएम पद के लिए परमेश्वर का नाम भी चर्चा में आया था. हालांकि वह कभी मुख्यधारा के कैंडिडेट नहीं रहे, लेकिन दो प्रमुख उम्मीदवारों के बीच की लड़ाई में उनका नाम भी सामने आ सकता है.

CM पद की दौड़ में परमेश्वर का नाम ?
कर्नाटक की कांग्रेस सरकार में सीएम पद के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच लड़ाई चल रही है. ऐसे में अगर दो प्रमुख उम्मीदवारों के बीच मुकाबला बढ़ता है, तो जी. परमेश्वर के लिए यह एक सुनहरा मौका हो सकता है. तीसरे विकल्प के तौर पर वह बाजी मार सकते हैं, क्योंकि कर्नाटक में सियासी समीकरणों के मुताबिक उनका नाम भी चर्चा में आ सकता है.

संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा
अपने भाषण में, जी. परमेश्वर ने बाबासाहेब आंबेडकर के संघर्ष को याद किया और कहा, "हमें आने वाले समय में संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा. यदि हम नहीं लड़े, तो यह न केवल हमारा, बल्कि बाबासाहेब आंबेडकर का भी अपमान होगा. हमें उनके नाम पर लड़ाई लड़नी होगी, गरीबों को उनके अधिकार दिलाने होंगे, और समाज के पिछड़े वर्ग को मुख्यधारा में लाना होगा."

CM की रेस में गूंजे 'सीएम-सीएम' के नारे
इस आयोजन के दौरान सीएम-सीएम के नारे भी लगे, जो यह संकेत देते हैं कि जी. परमेश्वर के समर्थक उन्हें सीएम पद का उम्मीदवार मानते हैं. इस नारेबाजी और आयोजन से साफ संकेत मिलता है कि कर्नाटक में सत्ता संघर्ष का एक नया केंद्र उभर सकता है, और परमेश्वर का राजनीतिक भविष्य अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ चुका है.

राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के भीतर हो रहे सत्ता संघर्ष में जी. परमेश्वर ने अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया है. परमोत्सव कार्यक्रम ने यह साफ कर दिया कि वह सियासी लड़ाई में एक नया राजनीतिक चेहरा बन सकते हैं. उनका समर्थक वर्ग और बाबासाहेब आंबेडकर के नाम पर संघर्ष उनका सियासी एजेंडा बन सकता है, जो आने वाले दिनों में सत्ता संघर्ष के रूप में और भी स्पष्ट हो सकता है.

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25 August 2025, 09:50 PM IST

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