तुर्की को बड़ा संदेश! ऑपरेशन सिंदूर के बाद पीएम मोदी ने यात्रा के लिए साइप्रस को ही क्यों चुना?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा ने भारत-साइप्रस द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊंचाई दी. यह यात्रा आतंकवाद विरोध, व्यापार, ऊर्जा सहयोग और भू-राजनीतिक रणनीति के दृष्टिकोण से बेहद अहम रही, जिससे भारत-यूरोप आर्थिक गलियारे को मजबूती मिलेगी और यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंधों को नया आयाम मिलेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 15 जून 2025 को साइप्रस की ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत की, जो ऑपरेशन सिंदूर के बाद उनकी पहली विदेश यात्रा है. यह यात्रा तीन देशों की है, जिसमें कनाडा और क्रोएशिया भी शामिल हैं. साइप्रस को पहले गंतव्य के रूप में चुनना भू-राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह तुर्की द्वारा पाकिस्तान को दिए गए समर्थन के संदर्भ में एक संदेश माना जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत
साइप्रस पहुंचने पर प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया गया. राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस और विदेश मंत्री कोन्स्टान्टिनोस कोम्बोस ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया. प्रधानमंत्री मोदी के साथ लगभग 100 अधिकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल भी शामिल है. इस यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी को साइप्रस का सर्वोच्च सम्मान, 'द ग्रैंड क्रॉस ऑफ द ऑर्डर ऑफ मकारियोस III' प्रदान किया गया.
द्विपक्षीय वार्ता और व्यापारिक सहयोग
प्रधानमंत्री मोदी ने राजधानी निकोसिया में राष्ट्रपति क्रिस्टोडौलिडेस के साथ द्विपक्षीय वार्ता की. इसके बाद, उन्होंने बंदरगाह शहर लिमासोल में व्यापारिक नेताओं को संबोधित किया. इस दौरान, दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश, सुरक्षा, तकनीक और लोगों से लोगों के संपर्क को बढ़ाने के लिए कई पहलुओं पर चर्चा की गई.
आतंकवाद के खिलाफ साइप्रसका रुख
यह यात्रा तुर्की और पाकिस्तान के बढ़ते संबंधों के बीच हो रही है. तुर्की ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया है और हाल ही में भारत पर हुए ड्रोन हमलों में तुर्की के ड्रोन का इस्तेमाल हुआ है. इसके विपरीत, साइप्रस ने आतंकवाद के खिलाफ मुखर रुख अपनाया है और पाकिस्तान द्वारा सीमा पार आतंकवाद के मुद्दे को उठाने का समर्थन किया है. साइप्रस का तुर्की के साथ लंबे समय से तनाव चल रहा है, जिसकी जड़ 1974 की घटनाओं में है. ऐसे में, प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा एक रणनीतिक कदम है, जो भारत और साइप्रस के बीच सहयोग को मजबूत करने की दिशा में है.
आर्थिक और व्यापारिक सहयोग
प्रधानमंत्री मोदी ने साइप्रस के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया. साइप्रस की स्थिति इसे भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEEC) में एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाती है. यह गलियारा भारत और यूरोप के बीच व्यापार संपर्क को बढ़ाने का उद्देश्य रखता है. साइप्रस के सबसे बड़े बैंकों में से एक, यूरोबैंक ने मुंबई में एक प्रतिनिधि कार्यालय खोलने की योजना की घोषणा की है, जिससे साइप्रस को यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले भारतीय व्यवसायों के लिए प्रवेश द्वार के रूप में स्थापित किया जा सके.
यूरोपीय संघ में साइप्रस की भूमिका
साइप्रस 2026 में यूरोपीय यूनियन काउंसिल की अध्यक्षता करेगा. प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा व्यापार और सुरक्षा पर गहन सहयोग के लिए आधार तैयार करेगी, साथ ही साइप्रस की आगामी यूरोपीय संघ नेतृत्व की भूमिका का लाभ उठाते हुए भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते पर प्रगति को बढ़ावा देने की संभावना भी पैदा करेगी.
ऊर्जा और प्राकृतिक गैस खोज
साइप्रस पूर्वी भूमध्य सागर में प्राकृतिक गैस खोज में एक प्रमुख खिलाड़ी है, जो भू-राजनीतिक घर्षण से चिह्नित क्षेत्र है, विशेष रूप से तुर्की की विवादित ड्रिलिंग गतिविधियों के कारण. भारत के लिए, साइप्रस के साथ घनिष्ठ संबंध ऊर्जा सहयोग में नए रास्ते खोल सकते हैं, साथ ही रणनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में इसकी उपस्थिति को भी मजबूत कर सकते हैं.


