संचार साथी एप को लेकर बढ़ा घमासान, विपक्ष ने लगाए जासूसी के आरोप, जानें क्या है सरकार का तर्क
केंद्र सरकार द्वारा संचार साथी ऐप अनिवार्य किए जाने पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है. सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी बता रही है, जबकि विपक्ष इसे निजता का उल्लंघन और पेगासस जैसा निगरानी टूल करार दे रहा है. राजनीतिक टकराव बढ़ता दिख रहा है.

नई दिल्लीः केंद्र सरकार द्वारा सभी नए मोबाइल हैंडसेट्स में संचार साथी ऐप को अनिवार्य करने के आदेश ने देश की राजनीति में नया तूफान खड़ा कर दिया है. विपक्ष ने इसे नागरिकों की निजता पर हमला बताते हुए कदम को असंवैधानिक करार दिया है. कई विपक्षी नेताओं ने तो इस सरकारी ऐप की तुलना इजरायल के कुख्यात स्पाईवेयर पेगासस से भी कर डाली है. उनका आरोप है कि सरकार इस ऐप के माध्यम से नागरिकों की हर गतिविधि पर नजर रखने की तैयारी कर रही है.
90 दिन में सभी नए मोबाइल में ऐप अनिवार्य
दूरसंचार विभाग (DoT) ने सोमवार को मोबाइल फोन निर्माताओं और आयातकों को निर्देश जारी किया है कि वे 90 दिनों के भीतर बनने या आयात होने वाले प्रत्येक नए मोबाइल में संचार साथी को प्री-इंस्टॉल सुनिश्चित करें. आदेश के मुताबिक, यह ऐप भारत में उपयोग के लिए तैयार हर नए हैंडसेट में पहले से मौजूद होना चाहिए.
वहीं जो हैंडसेट पहले ही बन चुके हैं और बाजार में बिक्री के चरण में हैं, उनमें यह ऐप सॉफ्टवेयर अपडेट के जरिए अनिवार्य रूप से इंस्टॉल करवाना होगा. इस निर्देश के बाद मोबाइल उद्योग जगत में भी हलचल बढ़ गई है, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी सरकारी ऐप को सार्वभौमिक रूप से प्री-लोड करने की बाध्यता दी गई है.
सरकार का तर्क
सरकार ने इस आदेश का बचाव करते हुए कहा है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उठाया गया है. अधिकारियों के अनुसार, फर्जी और डुप्लीकेट IMEI नंबर देश में तेजी से बढ़ रहे हैं. चोरी, ब्लैकलिस्टेड और सेकंड-हैंड फोन की बिक्री भी लगातार बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में किसी फोन को ट्रेस करना बेहद मुश्किल हो जाता है.
सरकार का दावा है कि संचार साथी ऐप IMEI वेरिफिकेशन और ट्रैकिंग सिस्टम को मजबूत करेगा, जिससे चोरी के उपकरणों को पकड़ा जा सकेगा और सुरक्षा एजेंसियों का काम सरल होगा. सरकार ने साफ कहा कि यह ऐप जासूसी के लिए नहीं, सुरक्षा के लिए है.
विपक्ष का हमला
सरकार के तर्कों के विरोध में विपक्ष ने इस कदम को गंभीर खतरा बताया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता केसी वेणुगोपाल ने इस आदेश को “पूरी तरह असंवैधानिक” कहा और दावा किया कि अनइंस्टॉल न होने वाला सरकारी ऐप नागरिकों पर निगरानी का नया तंत्र निजता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है. उन्होंने याद दिलाया कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का हिस्सा है और सरकार को इस आदेश को तुरंत वापस लेना चाहिए.
कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम ने तो इसे पेगासस प्लस प्लस करार दिया, जबकि शिवसेना (UBT) की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने इसे BIG BOSS सर्विलांस मोमेंट बताते हुए कहा कि सरकार गलत तरीके से नागरिकों के फोन में झांकने की कोशिश कर रही है. उन्होंने चेतावनी दी कि जनता और विपक्ष इसका कड़ा विरोध करेंगे.
सरकार बनाम विपक्ष
संचार साथी ऐप को लेकर यह विवाद अब केवल तकनीकी मुद्दा नहीं रहा. यह निजता, विश्वास, सरकारी निगरानी और नागरिक अधिकारों के बीच खड़े संतुलन की बहस बन चुका है. सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा का तर्क दे रही है, जबकि विपक्ष इसे लोकतांत्रिक अधिकारों पर खतरा मान रहा है. आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक टकराव और बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं.


