आर्थिक सहायता या आतंक को सहारा? IMF की पाकिस्तान नीति पर विवाद
IMF द्वारा पाकिस्तान को दी गई 1 अरब डॉलर की आर्थिक मदद पर सवाल उठ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह सहायता अनजाने में चरमपंथी तत्वों और आतंक के बुनियादी ढांचे को मजबूती दे सकती है. मदद से पहले पारदर्शिता और जवाबदेही की शर्तें तय होना जरूरी है.

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पाकिस्तान को बेलआउट पैकेज के तहत 1 अरब डॉलर की किस्त जारी की है. इसे देखकर ऐसा लग सकता है कि यह सिर्फ आर्थिक मदद है, लेकिन इसके पीछे कुछ गंभीर सवाल छिपे हैं. क्या IMF अनजाने में ऐसे देश को मदद दे रहा है, जिसका अतीत आतंकवाद से जुड़ा रहा है?
इस बहस का केंद्र हैं पाकिस्तान सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी. आलोचक कहते हैं कि IMF को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद के बेटे हैं. महमूद वही व्यक्ति हैं जो पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम में शामिल थे, लेकिन बाद में उन पर आतंकियों से संबंध रखने के आरोप लगे.
सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद का विवादास्पद अतीत
महमूद ने "उम्मा तामीर-ए-नौ" (UTN) नाम से एक संगठन बनाया, जिस पर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने अल-कायदा और तालिबान को समर्थन देने के आरोप लगाए और उसे आतंकी संगठन घोषित किया. एक रिपोर्ट के अनुसार, 9/11 हमले से कुछ हफ्ते पहले महमूद और उनके साथी ने कंधार में ओसामा बिन लादेन और अयमान अल-जवाहिरी से मुलाकात की थी. माना जाता है कि इस दौरान उन्होंने परमाणु तकनीक से जुड़ी जानकारियां साझा की थीं.
इसके अलावा, महमूद की संस्था ने जैश-ए-मोहम्मद और अल-रशीद ट्रस्ट जैसे आतंकी संगठनों के साथ मिलकर काम किया. उन्होंने तालिबान को पैसे और अन्य मदद भी दी थी. विशेषज्ञों का मानना है कि महमूद ने पाकिस्तान में तालिबान के लिए एक तरह से "गुप्त राजदूत" का काम किया.
IMF की मदद पर सवाल
अब सवाल उठता है कि ऐसे व्यक्ति का बेटा पाकिस्तान की सेना का चेहरा कैसे बन सकता है? और क्या IMF को पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने से पहले उसकी सरकार और सेना में मौजूद कट्टरपंथी सोच की जांच नहीं करनी चाहिए? विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना शर्त दी गई मदद कट्टरपंथी विचारों को मजबूती दे सकती है. यह सिर्फ रिश्तेदारी का मामला नहीं, बल्कि एक बड़ी संस्थागत समस्या है, जिसमें आतंकवाद के प्रति नरमी दिखाई देती है.
भारत को मिली धमकी और बढ़ती चिंता
हाल ही में अल-कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट (AQIS) ने भारत को धमकियां दी हैं. इससे यह साफ होता है कि आज भी पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में चरमपंथी विचारधारा सक्रिय है.
IMF को अब सावधानी से मदद देनी चाहिए
यह लेख IMF की मदद के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह कहता है कि मदद सशर्त होनी चाहिए. IMF को पाकिस्तान से यह पक्का सबूत लेना चाहिए कि वह लोकतंत्र, शांति और कट्टरपंथ से दूरी बनाने के लिए गंभीर है.
अंत में, दुनिया को यह तय करना होगा कि वह सुधार की राह पर चल रहे देश की मदद कर रही है या अनजाने में आतंकवाद को ताकत दे रही है. IMF को भी खुद से यह सवाल पूछना चाहिए – यह कर्ज किसकी मदद कर रहा है: आम जनता की या फिर चरमपंथी ताकतों की?


