बिजली संशोधन बिल: किसानों को मिलेगी बेहतर सप्लाई और पारदर्शी सब्सिडी, जानें क्या बदलेगा
भारत के बिजली क्षेत्र में किसान दशकों से सस्ती बिजली के नाम पर धोखा खा रहे हैं. कागजों पर सब्सिडी, हकीकत में अंधेरा, खराब लाइनें और रात-दिन अनिश्चित सप्लाई. लेकिन अब नया बिजली संशोधन बिल इस जाल को तोड़ दिया है.

नई दिल्ली: भारत के बिजली क्षेत्र में लंबे समय से बढ़ती सब्सिडी, घाटे और अव्यवस्था का बोझ रहा है. इस अव्यवस्थित ढांचे में किसान हमेशा एक उलझन में फंसे दिखे कागजों पर उन्हें सस्ती बिजली मिलती है, लेकिन वास्तविकता में उन्हें खराब सप्लाई, अनियमित समय और कमजोर अवसंरचना का सामना करना पड़ता है.
लेकिन अब बिजली (संशोधन) बिल इस चक्र को तोड़ने के में प्रयास है. कुछ किसान संगठनों को जहां शुल्क बढ़ने और निजीकरण का डर है, वहीं बिल के प्रावधान एक बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करते हैं. एक ऐसा ढांचा, जो किसानों को अधिक विश्वसनीय सप्लाई, मजबूत संरक्षण और पारदर्शी सब्सिडी उपलब्ध कराता है.
किसानों के लिए भरोसेमंद रास्ता
कई दशकों से ग्रामीण भारत की सबसे बड़ी बिजली समस्या टैरिफ नहीं, बल्कि विश्वसनीयता रही है. किसान अक्सर झेलते रहे हैं-
-
आधी रात या सुबह-सुबह बिजली सप्लाई
-
वोल्टेज में लगातार उतार-चढ़ाव
-
मोटर के बार-बार जलने की समस्या
-
पंपों का नुकसान
-
तीन-फेज सप्लाई में अनियमितता
इन सबका मूल कारण स्पष्ट है वित्तीय संकट से जूझती डिस्कॉम कंपनियां, जो न तो नेटवर्क सुधार पाती हैं और न ही स्थिर सप्लाई दे पाती हैं.
कैसे मदद करेगा बिल
वित्तीय स्थिरता बढ़ने और सब्सिडी समय पर मिलने से डिस्कॉम को मौका मिलेगा. ग्रामीण फीडरों को अपग्रेड करने, वोल्टेज नियंत्रण सुधारने, आउटेज कम करने, और बिजली सप्लाई को किसानों के अनुकूल समय पर देने का जो बेहतर वित्तीय स्थिति सीधे बेहतर सेवा में बदलती है और इसका पहला लाभ किसानों को मिलता है.
सब्सिडी हुई और मजबूत
लोगों का सबसे बड़ा भ्रम यह है कि बिल किसानों की सब्सिडी खत्म कर देगा. ऐसा बिल में कहीं नहीं कहा गया है. इसके उलट, बिल सब्सिडी को और पारदर्शी और जवाबदेह बनाता है. अब राज्यों को सब्सिडी सीधे डिस्कॉम को ट्रांसफर करनी होगी, टैरिफ में छुपाकर नहीं.
किसानों के लिए इसके फायदे
-
राज्य समय पर सब्सिडी देने के लिए बाध्य होंगे
-
डिस्कॉम वित्तीय संकट में नहीं फंसेंगे
-
बिजली कटौती या अनियमितता कम होगी
-
सब्सिडी राजनीतिक घोषणा नहीं, बल्कि पक्की गारंटी बनेगी
-
किसानों के लिए इसका मतलब है स्थिरता, न कि अनिश्चितता.
प्रतिस्पर्धा का मतलब निजीकरण नहीं
बहुतों को यह भी डर है कि वितरण में प्रतिस्पर्धा का मतलब निजीकरण है, लेकिन बिल कहीं भी राज्य की संपत्ति बेचने की अनिवार्यता नहीं बताता.
प्रतिस्पर्धा का वास्तविक अर्थ है-
-
कई सेवा प्रदाताओं का विकल्प
-
सेवा की गुणवत्ता में सुधार
-
प्रदर्शन का मूल्यांकन
-
उपभोक्ताओं विशेषकर किसानों की शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई
किसानों का असल मुद्दा क्या है?
किसानों के लिए असल मुद्दा यह नहीं कि बिजली कौन दे रहा है बल्कि यह कि बिजली कैसी दी जा रही है. विश्वसनीय, सस्ती और समय पर या नहीं. जहां एकाधिकार विफल रहा, प्रतिस्पर्धा सुधार ला सकती है. विरोध स्वाभाविक, लेकिन बिल लाभ अधिक देता है कई किसान यूनियनों की चिंताएं जायज हैं. पूर्व नीतिगत अनुभवों ने भरोसा कमजोर किया है. लेकिन सुधारों को पूरी तरह नकारना किसानों को उसी पुरानी अव्यवस्था में फंसा रहने पर मजबूर करेगा. यह बिल पारदर्शी सब्सिडी, मजबूत सप्लाई और जवाबदेही वाले ढांचे की नींव रखता है.
किसान बिल को और मजबूत कैसे बना सकते हैं?
-
बिल का विरोध करने के बजाय किसान संगठन इन महत्वपूर्ण संशोधनों की मांग कर सकते हैं—
-
कृषि सब्सिडी की कानूनी गारंटी
-
न्यूनतम तय घंटों की निर्बाध कृषि बिजली
-
वोल्टेज उतार-चढ़ाव और मोटर नुकसान पर मुआवजा
-
पारदर्शी शिकायत समाधान प्रणाली
-
ग्रामीण बिजली ढांचे के समयबद्ध आधुनिकीकरण की गारंटी
-
ये सुझाव न केवल व्यावहारिक हैं, बल्कि किसानों के हित में अनिवार्य भी


