जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद में आएगा महाभियोग प्रस्ताव, 100 से अधिक सांसदों ने किए दस्तखत
केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने को तैयार है. आग और नकदी की बरामदगी से उपजा विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां वर्मा ने जांच प्रक्रिया को अनुचित बताया. अब तक 100 से अधिक सांसदों का समर्थन प्रस्ताव को मिला है, जिससे यह मुद्दा संसद में गरमा सकता है.

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने रविवार को स्पष्ट किया कि सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव संसद के आगामी सत्र में पेश करने की योजना बना रही है. उन्होंने पत्रकारों से कहा कि अब तक 100 से अधिक सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर चुके हैं, जिससे इसके सफल पारित होने की संभावनाएं मजबूत होती दिख रही हैं. हालांकि उन्होंने समय सीमा की पुष्टि नहीं की, लेकिन आश्वासन दिया कि समय निर्धारित कर इसकी जानकारी दी जाएगी.
आग और नकदी की बरामदगी
यह विवाद मार्च 2025 में तब शुरू हुआ जब न्यायमूर्ति वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लग गई. घटना के दौरान परिसर से कथित रूप से जली या आंशिक रूप से जली नकदी बरामद हुई, जिसने मामले को सनसनीखेज बना दिया. दिल्ली उच्च न्यायालय के जज वर्मा ने इस आरोप का बार-बार खंडन किया और इस घटना को उनकी जाती फंसाने की साजिश बताया.
न्यायिक कार्यों से दूरी
आग लगने की घटना के बाद उनका इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरण हुआ और तब से उन्हें किसी भी न्यायिक कार्य की जिम्मेदारी नहीं दी गई है. उन्होंने न तो इच्छानुसार सेवानिवृत्ति ली है और न इस्तीफा दिया है. न्यायमूर्ति वर्मा ने इसे अनुचित और अवांछित कार्यवाही करार दिया.
सर्वोच्च न्यायालय में याचिका
हाल ही में न्यायमूर्ति वर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने उस आतंकपूर्ण जांच रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग की है, जिसमें उन्हें सरकारी आवास से नकदी पाने का दोषी बताया गया था. अपनी लंबी याचिका में उन्होंने कहा है कि यह प्रक्रिया असंवैधानिक, प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.
प्रक्रिया में बड़ी कमियां
याचिका में यह भी कहा गया है कि औपचारिक शिकायत के बिना ही जांच आरंभ कर दी गई थी. घटना के समय जस्टिस वर्मा और उनका परिवार दिल्ली में मौजूद नहीं था, जो लोग घर में थे, उनसे भी नहीं पूछताछ की गई. दिल्ली अग्निशमन विभाग और पुलिस ने न तो नकदी जब्त की और न ही कोई पंचनामा तैयार किया.
प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन
न्यायाधीश ने आरोप लगाया है कि आंतरिक जांच समिति ने उनके पक्ष की नहीं सुनी और कुछ भी स्पष्ट साबित करने का अवसर नहीं दिया. उन्होंने सीसीटीवी फुटेज, गवाहों से तकरार और किसी भी तरह का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराया. दूसरी ओर, जांच रिपोर्ट अनुमानों पर आधारित थी और अंतिम रिपोर्ट उनके पक्ष से प्रकाॢशित होने से पहले मीडिया में लीक कर दी गई, जिससे उनकी प्रतिष्ठा को अपूरणीय क्षति पहुंची.
पहलुओं की जांच पर प्रश्न
याचिका में यह भी बताया गया कि जांच में नकदी किसने रखी, कितनी राशि थी, धन का स्रोत, और आग लगने का वास्तविक कारण जैसे बुनियादी पहलुओं की व्यापक जांच नहीं की गई. मानो तैयारशुदा निष्कर्ष अनुकूल होते ही बाहर आन कर दुनिया को दिखा दिए गए.
समितियों की रिपोर्ट्स
एक शीर्ष अदालत-नियुक्त समिति ने जांच के दौरान 10 प्रत्यक्षदर्शियों के नाम जारी किए, जिन्होंने स्टोर रूम में नकदी पाया था. लेकिन वही समिति आंतरिक जांच को गुप्त रखकर सार्वजनिक सुनवाई नहीं करवा सकी. इसके परिणामस्वरूप यशवंत वर्मा ने जांच प्रक्रिया को एकतरफा और अन्यायपूर्ण बताया.
संसद में बहस सरकार का वोटबैंक मजबूत है क्योंकि महाभियोग प्रस्ताव पर अब तक 100 से ज़्यादा सांसदों का समर्थन मिल चुका है. इसमें कांग्रेस के 40 सांसद, जिनमें राहुल गांधी का नाम भी शामिल है, ने दस्तखत किए हैं. सूत्रों के अनुसार, सभी दलों को हस्ताक्षरों का कोटा दिया गया था. माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव मानसून सत्र में लोकसभा में पेश किया जा सकता है, जिससे संसद की कार्यवाही न्यायपालिका की जवाबदेही और न्यायाधीशों की निष्पक्षता को नए संदर्भ में परख सकती है.


