गांव का बेटा बना देश का सितारा...उड़ता चीता बना अनिमेष कुजूर, रचा इतिहास
झारखंड के एक छोटे से गांव से निकलकर देश का गौरव बनने वाले अनिमेष कुजूर की कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है. कभी नंगे पांव खेतों और उबड़-खाबड़ रास्तों पर दौड़ने वाला यह लड़का आज भारत का "उड़ता चीता" कहलाता है. न संसाधन थे, न ट्रेनिंग की सुविधा... लेकिन हौसले ऐसे थे कि सपनों को जमीन से आसमान तक पहुंचा दिया.

छत्तीसगढ़ के एक छोटे से गांव घुइटानगर से निकले 22 वर्षीय अनिमेष कुजूर आज भारत के सबसे तेज धावक बन चुके हैं. मात्र 10.18 सेकंड में 100 मीटर की दौड़ पूरी कर उन्होंने गुरिंदरवीर सिंह का रिकॉर्ड तोड़ा और भारतीय एथलेटिक्स में एक नई क्रांति की शुरुआत की. अब वे सिर्फ देश नहीं, बल्कि विश्व पटल पर भारत की पहचान बनाने की राह पर हैं.
मोनाको डायमंड लीग में हिस्सा लेने वाले पहले भारतीय स्प्रिंटर बनकर अनिमेष ने इतिहास रच दिया है. यहां उन्होंने 200 मीटर U-23 स्पर्धा में भाग लिया और दुनिया के दिग्गज एथलीट्स के सामने भी आत्मविश्वास से दौड़े. हालांकि वे केवल 0.10 सेकंड से पोडियम से चूक गए, लेकिन उनका प्रदर्शन भारत के लिए गर्व का विषय बना.
गांव से लेकर ग्लोबल मंच तक
कोविड लॉकडाउन के दौरान जब दुनिया ठहर सी गई थी, तब अनिमेष का करियर दौड़ने लगा. शुरुआत फुटबॉल से हुई, लेकिन गांव के पास आर्मी के जवानों के साथ ट्रैक पर दौड़ते हुए उनकी स्पीड ने लोगों को चौंका दिया. किसी ने उन्हें लोकल रेस में भाग लेने की सलाह दी और वहीं से एथलेटिक्स की दुनिया में उनका प्रवेश हुआ.
जब कोच और खिलाड़ी की जिद ने इतिहास रचा
अनिमेष के कोच मार्टिन ओवेन्स बताते हैं, "वह बहुत बड़ा लड़का था, और खुद को ट्रेनिंग में लेने की जिद कर रहा था. हम दोनों में आज तक बहस होती है कि किसने किससे गुजारिश की थी!" HPC (हाई परफॉर्मेंस सेंटर) में आने के बाद अनिमेष ने पहले ही टूर्नामेंट में U-23 200 मीटर दौड़ जीत ली.
तकनीकी सुधार से बना तेज धावक
ओवेन्स याद करते हैं, "जब वह हमारे पास आया तो उसकी बॉडी काफी सख्त थी. हमने महीनों तक मोबिलिटी और फ्लेक्सिबिलिटी पर काम किया. वह बेहद विनम्र और मेहनती था, इसीलिए हमने उसे चुना."
राष्ट्रीय रिकॉर्ड और मोनाको का सफर
2025 के नेशनल गेम्स में अनिमेष ने धीमी शुरुआत के बावजूद 10.28 सेकंड का समय निकाला और रिकॉर्ड तोड़ दिया. फिर ग्रीस में ड्रोमिया मीट में उन्होंने इसे सुधारकर 10.18 सेकंड कर दिया भारत का अब तक का सबसे तेज 100 मीटर. मोनाको डायमंड लीग में उन्होंने 20.55 सेकंड में 200 मीटर दौड़ी, हालांकि ये उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ (20.32) नहीं था. परंतु -1.9 m/s की हेडविंड और लगातार तीन रेसों की थकावट को देखते हुए, यह प्रदर्शन अत्यंत सराहनीय रहा.
विश्व चैंपियनशिप की तैयारी
सीधी क्वालिफिकेशन के लिए उन्हें 100 मीटर में 10.00 और 200 मीटर में 20.16 का समय चाहिए. कोच ओवेन्स कहते हैं, "अगर सही वक्त, सही रेस और सही परिस्थितियां मिलें, तो भारत का कोई भी टॉप 5 धावक यह कर सकता है." अनिमेष भी आत्मविश्वास से कहते हैं, "नेशनल गेम्स में मैं 10 सेकंड से नीचे जा सकता था, लेकिन शुरुआत खराब थी. कोच ने कहा है समय लगेगा, लेकिन हम 10 सेकंड से कम और 20.00 से कम दौड़वाएंगे."
आदर्शों से सीख, खुद को गढ़ने की ललक
मोनाको में ओलंपिक चैंपियनों नोहा लायल्स और लेत्सिले टेबोगो को देखकर अनिमेष ने उनकी वॉर्मअप रूटीन, व्यवहार और फोकस को करीब से समझा. उन्होंने कहा, "मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा, और अब अपनी ट्रेनिंग में लागू करूंगा."
अब लक्ष्य: नई सीमाओं को तोड़ना
अब वे जर्मनी के बोखुम में ट्रेनिंग करेंगे और फिर भारत लौटकर और मीट्स में हिस्सा लेंगे. उनका मिशन स्पष्ट है—विश्व चैंपियनशिप के लिए योग्यता और एक नया इतिहास रचना. एक समय था जब भारत के नाम पर किसी को स्प्रिंट में उम्मीद नहीं होती थी, लेकिन आज अनिमेष जैसे एथलीट उस सोच को बदल रहे हैं.


