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कट्टरपंथ के साए में नहीं, कूटनीति के उजाले में मोदी की कनाडा यात्रा

प्रधानमंत्री मोदी की कनाडा यात्रा के दौरान हुए विरोध प्रदर्शनों के बीच, सिख समुदाय के ज़िम्मेदार वर्ग और भारतीय कूटनीति की परिपक्वता ने कट्टरपंथी एजेंडों को हाशिए पर डाल दिया। यह दौरा विरोध नहीं, संवाद की जीत बना।

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

इंटरनेशनल न्यूज: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कनाडा यात्रा जहां वैश्विक कूटनीति की दिशा में एक ठोस कदम थी, वहीं कुछ कट्टरपंथी तत्वों ने इस यात्रा को भटकाने की कोशिश की। लेकिन इस बार नज़रिया बदला—कनाडा का बड़ा सिख वर्ग खुलकर इन गतिविधियों से अलग नज़र आया। पीएम मोदी की यह यात्रा साइप्रस, क्रोएशिया और कनाडा तक फैली थी, जिसमें उनका मकसद द्विपक्षीय सहयोग और वैश्विक व्यापार को मज़बूत करना था। कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी से प्रस्तावित बातचीत में आर्थिक और तकनीकी साझेदारी अहम मुद्दा थी। लेकिन इस अहम दौर में कुछ चुनिंदा प्रदर्शनकारियों ने विरोध की कोशिश की।

कनाडा के अल्बर्टा और कैलगरी में हुए प्रदर्शन में तिरंगे के अपमान की कोशिश की गई। लेकिन इस बार यह भारत विरोध नहीं, लोकतंत्र की गरिमा के विरुद्ध एक शोर बनकर उभरा। कनाडा के स्वतंत्र पत्रकारों ने खुद इन प्रदर्शनकारियों की कट्टरपंथी रणनीति की आलोचना की, और इसे "राजनीतिक भ्रम फैलाने की कोशिश" बताया।

सिख परंपरा के ख़िलाफ़ है यह आंदोलन: समुदाय

पटना साहिब तख्त से लेकर वैंकूवर के कई गुरुद्वारों तक, सिख नेताओं ने साफ़ कर दिया कि वे बच्चों और धार्मिक पहचान को किसी कट्टर एजेंडे में शामिल नहीं करना चाहते। उन्होंने कहा कि जो लोग भारत को बांटने की बात करते हैं, वे सिख परंपरा और गुरु साहिबानों की भावना को नहीं समझते।
इन गुरुद्वारों ने अपने समुदाय को भी सावधान किया कि वह किसी भावनात्मक उकसावे का हिस्सा न बनें। प्रवासी सिख नेताओं ने यह भी कहा कि धर्म की रक्षा का मतलब देशद्रोह नहीं होता। यह परिपक्व रुख बताता है कि सिख पंथ की असली आत्मा भारत की एकता और सार्वभौमिकता से जुड़ी है।

कनाडा में मीडिया की सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल

जब कुछ कट्टरपंथियों ने कवरेज कर रहे पत्रकारों को धमकाया और हमला किया, तो यह सवाल केवल सुरक्षा का नहीं था—बल्कि प्रेस की आज़ादी पर एक चुनौती थी। कनाडा में कई संस्थानों ने इन हमलों की निंदा की और मोदी सरकार की इस बात से सहमति जताई कि ऐसे तत्व लोकतंत्र के दुश्मन हैं। इन घटनाओं ने पत्रकारिता के पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाई है और यह विश्व स्तर पर चिंता का विषय बन गया है। मीडिया संगठनों ने मांग की है कि ऐसे हमलावरों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो। यह साबित करता है कि प्रेस की आज़ादी पर हमला, किसी भी लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है।

कनाडा सरकार का बदला रुख, अब सुरक्षा को प्राथमिकता

मार्क कार्नी की सरकार अब ऐसे चरमपंथी संगठनों पर सख्ती की ओर बढ़ रही है। मोदी सरकार के साथ बातचीत में खालिस्तान समर्थकों की बढ़ती गतिविधियों पर संयुक्त रणनीति बनाने की बात भी एजेंडे में है। कनाडा की नई नीति अब भारत के साथ भरोसे की दिशा में एक ज़रूरी मोड़ ले रही है। यह बदलाव न सिर्फ भारत-कनाडा संबंधों के लिए अहम है, बल्कि विश्व पटल पर चरमपंथ के खिलाफ एक उदाहरण भी है। ओटावा प्रशासन ने साफ कर दिया है कि अब उसकी ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी एजेंडे के लिए नहीं होने दिया जाएगा। आने वाले समय में संयुक्त अभियान और निगरानी तंत्र को और मज़बूत किया जा सकता है।

संप्रभुता से समझौता अब नामुमकिन

भारत ने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत की है, लेकिन अब वह साफ कर चुका है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर किसी भी देश में भारत की अखंडता पर हमला नहीं बर्दाश्त किया जाएगा। मोदी की यात्रा का यह स्पष्ट संदेश था कि भारत अब संवाद के साथ-साथ संप्रभुता की सुरक्षा को लेकर अडिग है। यह संदेश सिर्फ खालिस्तानी एजेंडे के खिलाफ नहीं, बल्कि वैश्विक समुदाय के लिए चेतावनी था कि भारत की सीमाओं और संप्रभु अधिकारों को चुनौती देना अब महंगा पड़ेगा। विदेश मंत्रालय ने यह भी कहा है कि यह भारत के भीतर की बहस नहीं, बल्कि बाहरी हस्तक्षेप का मामला है। अब हर मंच पर भारत अपनी असहमति को खुले शब्दों में सामने रखेगा।

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17 June 2025, 03:33 PM IST

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