MANREGA का मिला नया स्वरूप, मोदी सरकार ने बदला नाम...बढ़ाई रोजगार गारंटी के दिन
मोदी सरकार ने मनरेगा का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ कर दिया और रोजगार की गारंटी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन कर दी. इस बदलाव का उद्देश्य ग्रामीण परिवारों को अधिक स्थायी आय, बेहतर रोजगार सुरक्षा और गांवों में विकास कार्यों को गति देना है.

नई दिल्ली : मोदी सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (MGNREGA) का नाम बदलकर अब इसे पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना कर दिया है. इस योजना का उद्देश्य गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों को रोजगार और स्थिर आय प्रदान करना है. केंद्रीय कैबिनेट ने इसके साथ ही काम के दिनों की संख्या बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिससे अब हर वर्ष 125 दिन का रोजगार गारंटी के तहत मिलेगा. पहले यह केवल 100 दिनों तक सीमित था.
यूपीए-1 सरकार द्वारा शुरू की गई थी योजना
नए बदलाव और लाभ
इस योजना के नाम बदलने और काम के दिनों को बढ़ाने का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की स्थायित्व और आर्थिक सुरक्षा को और मजबूत करना है. अब साल में 125 दिन काम के अधिकार के तहत ग्रामीण परिवारों को अधिक अवसर मिलेंगे. इससे न केवल उनकी आजीविका सुरक्षित होगी, बल्कि ग्रामीण विकास और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा.
सामाजिक सुरक्षा का एक मजबूत स्तंभ
सरकार का मानना है कि यह बदलाव ग्रामीण परिवारों के लिए दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित करेगा और रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ गांवों में समग्र विकास की दिशा में काम करेगा. इसे लागू करने के बाद योजना और अधिक प्रभावी और व्यापक हो जाएगी. इससे यह स्पष्ट होता है कि पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना भारत में ग्रामीण रोजगार और सामाजिक सुरक्षा का एक मजबूत स्तंभ बन रही है.
पहचान को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक कदम
हालांकि केंद्र सरकार ने इसे केवल प्रशासनिक सुधार बताया है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस कदम को कई तरह से देखा जा रहा है. कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि मनरेगा का नाम बदलना एक प्रतीकात्मक संदेश भी है, जिसके माध्यम से सरकार गांधीजी की विचारधारा को ग्रामीण विकास से जोड़कर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता मजबूत करना चाहती है. विपक्ष की ओर से यह सवाल भी उठाया जा रहा है कि क्या नाम बदलने से योजना के क्रियान्वयन में कोई बड़ा सुधार आएगा या यह केवल राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है. लेकिन सरकार का तर्क है कि योजना के प्रति जनता के भावनात्मक जुड़ाव और पहचान को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक कदम था.


