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बंकिम दा नहीं, बंकिम बाबू कहिए....लोकसभा में भाषण के दौरान TMC सांसद ने PM मोदी को टोका

संसद में वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष चर्चा हुई, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी ने की. बंकिम चंद्र को “बंकिम दा” कहने पर सौगत रॉय ने आपत्ति जताई, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने सम्मानपूर्वक “बंकिम बाबू” कहा. मोदी ने वंदे मातरम को स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा बताया और कहा कि यह गीत राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है, जो 2047 के विकास संकल्प को मजबूती देता है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : संसद के शीतकालीन सत्र में सोमवार का दिन ऐतिहासिक रहा, जब राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा आयोजित की गई. इस चर्चा की शुरुआत लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिन्होंने इस अवसर को देश के सांस्कृतिक और स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास का महत्वपूर्ण पड़ाव बताया.

‘बंकिम दा’ बनाम ‘बंकिम बाबू’ 

आपको बता दें कि चर्चा के दौरान वातावरण तब थोड़ी देर के लिए चुटीला हो गया, जब प्रधानमंत्री मोदी ने गीत के रचयिता और विख्यात बंगाली साहित्यकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को संबोधित करते हुए "बंकिम दा" कहा. इस पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने आपत्ति जताते हुए कहा कि बंगाली सांस्कृतिक संदर्भ में “दा” (जिसका अर्थ बड़ा भाई होता है) जैसे संबोधन का उपयोग किसी सांस्कृतिक प्रतीक या आदर्श व्यक्तित्व के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता. उन्होंने सुझाव दिया कि प्रधानमंत्री को “बंकिम बाबू” कहना चाहिए.

क्या सौगत रॉय को दादा कह सकते हैं ?
प्रधानमंत्री मोदी ने तुरंत रॉय की भावना का सम्मान करते हुए सुधार स्वीकार किया. मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा, “मैं बंकिम बाबू ही कहूँगा. आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ.” इसके बाद मज़ाकिया अंदाज में उन्होंने यह भी पूछा कि क्या वे सौगत रॉय को “दादा” कह सकते हैं या इस पर भी कोई ऐतराज होगा, जिस पर सदन में हँसी का माहौल बन गया.

वंदे मातरम की सांस्कृतिक शक्ति
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में वंदे मातरम के महत्व को केवल राजनीतिक प्रतीक तक सीमित न बताते हुए कहा कि यह गीत स्वतंत्रता संग्राम का एक पवित्र “युद्धघोष” था. उनके अनुसार, इसने उस दौर के भारतीयों में उपनिवेशवादी शासन से मुक्ति के लिए साहस, तप, त्याग और एकता की भावना जगाई. उन्होंने कहा कि यह गीत केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक ऐसी प्रेरणा थी जिसने भारत के हर हिस्से को जोड़ने का कार्य किया उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक.

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक मील के पत्थरों का संगम
प्रधानमंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि वंदे मातरम की वर्षगांठ के साथ-साथ देश कई अन्य ऐतिहासिक अवसर मना रहा है—संविधान के 75 वर्ष, सरदार पटेल और बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती, और गुरु तेग बहादुर का 350वाँ शहीदी दिवस. उन्होंने कहा कि इन सभी अवसरों के बीच वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ हमारे इतिहास, आदर्शों और स्वतंत्रता के संघर्ष को पुनः स्मरण करने का अवसर देती है.

राजनीति से परे, राष्ट्र के लिए एक साझा सम्मान
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि इस विशेष सत्र में न सरकार का नेतृत्व महत्वपूर्ण है, न विपक्ष का अस्तित्व यह अवसर राष्ट्र के लिए एक साझा श्रद्धांजलि का है. उन्होंने कहा, “हम सब यहाँ वंदे मातरम के प्रति सामूहिक कृतज्ञता व्यक्त करने आए हैं. इसकी प्रतिध्वनि ने ही हमें एक किया है.” उन्होंने उम्मीद जताई कि यह गीत आने वाले समय में भी देशवासियों को स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों को साकार करने की दिशा में प्रेरित करता रहेगा और 2047 तक भारत को आत्मनिर्भर, सशक्त और विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प को मजबूत करेगा.

यह विशेष चर्चा संसद के उस शीतकालीन सत्र का हिस्सा थी, जिसकी शुरुआत 1 दिसंबर से हुई है और जो 19 दिसंबर तक जारी रहेगा. इस सत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों के साथ-साथ यह सांस्कृतिक और ऐतिहासिक चर्चा भी प्रमुख रही.

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08 December 2025, 03:46 PM IST

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