श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2025: लड्डू गोपाल का जन्म... जानिए पंचामृत स्नान की परंपरा, शुभ मुहूर्त और स्नान की पूरी विधि
जन्माष्टमी 2025 पूरे भारत में श्रद्धा के साथ मनाई जा रही है. भक्त लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान कराते हैं और खीरे से उनका प्रतीकात्मक जन्म कराते हैं, जिसे 'नाल छेदन' कहा जाता है. मध्यरात्रि 12:04 से 12:45 बजे तक का शुभ मुहूर्त होता है. पूजा में पंचामृत स्नान, वस्त्र, श्रृंगार और आरती की जाती है, जो भक्ति और भाव से भरी होती है.

Janmashtami 2025 Muhurat : जन्माष्टमी का पर्व भारत में श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह विशेष दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है, जब भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और रात्रि 12 बजे विशेष पूजा के साथ बाल रूप में श्रीकृष्ण यानी लड्डू गोपाल का जन्म कराते हैं. यह पर्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो भक्तों को भक्ति और प्रेम से भर देता है.
शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र और आधी रात के समय हुआ था. इस परंपरा को जीवंत बनाए रखने के लिए भक्तजन खीरे से भगवान का प्रतीकात्मक जन्म कराते हैं. इस प्रक्रिया में, पूजा के समय खीरे को पहले स्नान कराया जाता है और फिर चांदी के सिक्के से उसका डंठल काटा जाता है, जिसे "नाल छेदन" कहा जाता है. यह गर्भनाल काटने का प्रतीक होता है. खीरे को थोड़ा चीरकर उसके अंदर से बाल गोपाल की मूर्ति निकाली जाती है और “जय कन्हैया लाल की” के नारे लगाए जाते हैं. यह प्रक्रिया मध्यरात्रि 12:04 बजे से लेकर 12:45 बजे तक के शुभ मुहूर्त में की जाती है.
पंचामृत स्नान, एक पवित्र प्रक्रिया
श्रृंगार और आरती, भाव से भरी पूजा
स्नान के बाद बाल गोपाल को साफ-सुथरे वस्त्र पहनाए जाते हैं. उनके सिर पर मोरपंख से सजी पगड़ी रखी जाती है और हाथ में बांसुरी दी जाती है. फिर उन्हें गुलाब के फूल अर्पित किए जाते हैं और पूरे भक्ति भाव से उनकी आरती उतारी जाती है. पूजा के समय श्रीकृष्ण मंत्रों का जाप भी किया जाता है जिससे वातावरण पवित्र और सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है.
जन्माष्टमी केवल एक त्यौहार नहीं...
जन्माष्टमी केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को याद करने और उन्हें अपने जीवन में उतारने का एक पावन अवसर है. यह दिन प्रेम, भक्ति और आत्मिक शुद्धि का प्रतीक होता है, जब हर घर और मंदिर में 'जय कन्हैया लाल की' के स्वर गूंजते हैं और भक्त अपने आराध्य के स्वागत में लीन हो जाते हैं.


