score Card

अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को मिली ऑनलाइन पोस्ट करने की इजाजत, सुप्रीम कोर्ट ने जांच टीम को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बड़ी राहत देते हुए उन्हें ऑनलाइन पोस्ट और लेख लिखने की इजाजत दे दी है. कोर्ट ने हरियाणा सरकार की एसआईटी को फटकार लगाते हुए जांच में देरी और दिशा भटकाने पर कड़ा रुख अपनाया है.

Shivani Mishra
Edited By: Shivani Mishra

Ashoka University professor: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जांच कर रही एसआईटी को कड़ी फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि जांच टीम खुद को गुमराह कर रही है और जांच का रुख गलत दिशा में जा रहा है. कोर्ट ने प्रोफेसर को ऑनलाइन पोस्ट या लेख लिखने की अनुमति दी है, बशर्ते वह विचाराधीन मामलों पर टिप्पणी न करें.

जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्य बागची की पीठ ने साफ किया कि प्रोफेसर को मई 21 के आदेश की शर्तों के संदर्भ में किसी भी प्रकार की गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रोफेसर के खिलाफ दर्ज मामलों में गिरफ्तारी पर दी गई अंतरिम राहत आगे भी जारी रहेगी.

ऑनलाइन पोस्ट की मिली छूट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया, "हम 21 मई के आदेश के पैरा 6 में लगाए गए प्रतिबंधों को स्पष्ट करते हुए यह कहते हैं कि याचिकाकर्ता किसी भी ऑनलाइन पोस्ट, लेख या राय व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन विचाराधीन मामलों पर टिप्पणी नहीं करेंगे. गिरफ्तारी पर दी गई अंतरिम राहत जारी रहेगी."

जांच टीम की दिशा पर उठाए सवाल

पीठ ने एसआईटी से तीखे सवाल पूछे, "हम यह जानना चाहते हैं कि एसआईटी क्यों खुद को गुमराह कर रही है?" कोर्ट ने जांच टीम से पूछा कि जिस काम को दो दिनों में निपटाया जा सकता था, उसके लिए दो महीने क्यों मांगे गए. इसके साथ ही कोर्ट ने आदेश दिया कि एसआईटी अधिकतम चार हफ्तों में जांच पूरी करके रिपोर्ट पेश करे.

मोबाइल फोन की जब्ती पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल

कोर्ट ने हरियाणा सरकार द्वारा गठित एसआईटी की आलोचना करते हुए पूछा कि प्रोफेसर का मोबाइल फोन जब्त करने का औचित्य क्या था, खासकर जब उसमें से कोई भी सामग्री केस से जुड़ी नहीं थी. पीठ ने कहा, "हम जांच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, लेकिन यह सही दिशा में होनी चाहिए. केवल दो पोस्ट या लेख हैं जिनके आधार पर दो एफआईआर दर्ज की गई हैं. हमने एसआईटी से केवल यह कहा था कि वह इन पोस्ट्स की भाषा की जांच करे और बताए कि किस लाइन या पैराग्राफ में अपराध सिद्ध होता है."

बार-बार समन जारी करने पर जताई नाराजगी

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि चूंकि प्रोफेसर महमूदाबाद पहले ही जांच में सहयोग कर चुके हैं और अपने पर्सनल डिवाइसेज़ जमा कर चुके हैं, इसलिए उन्हें बार-बार समन करना उचित नहीं है. पीठ ने कहा, "हम केवल यह जानना चाहते हैं कि एसआईटी ने डिवाइसेज क्यों जब्त किए हैं? हम उन्हें बुलाएंगे."

कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसी जांच में कोई अलग अपराध सामने आता है, तो उसके लिए अलग एफआईआर होनी चाहिए. कोर्ट ने कहा, "मान लीजिए कि किसी धोखाधड़ी के मामले की जांच में किसी व्यक्ति द्वारा हत्या का पता चलता है, तो हत्या के लिए अलग एफआईआर दर्ज की जाएगी. एसआईटी कहती है कि वह केवल सामग्री की जांच कर रही है."

calender
16 July 2025, 02:36 PM IST

ताजा खबरें

ट्रेंडिंग वीडियो

close alt tag