अब हर वोट से पहले होगी जांच? वोटर ID वेरिफिकेशन पर पूरे देश में मचेगा बवाल!
बिहार से उठी वोटर लिस्ट जांच की आंच अब देशभर में फैलने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल हुई है, जिसमें मांग की गई है कि हर राज्य में फर्जी वोटरों की पहचान और लिस्ट की वेरिफिकेशन अनिवार्य हो।

National News: बिहार से शुरू हुई वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन की बहस अब राष्ट्रीय बहस में बदलती दिख रही है। जहां एक तरफ इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं, वहीं अब वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इसके पक्ष में एक नई याचिका दाखिल कर दी है। उन्होंने मांग की है कि बिहार की तरह देश के हर राज्य में वोटर लिस्ट की गहन जांच अनिवार्य होनी चाहिए। यह पहली बार है जब इस प्रक्रिया के समर्थन में कोई याचिका कोर्ट तक पहुंची है। अश्विनी उपाध्याय ने 8 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के समक्ष पेश होकर अनुरोध किया कि उनकी याचिका को भी बिहार मामले के साथ 10 जुलाई को सुना जाए। कोर्ट ने उन्हें पहले याचिका की तकनीकी खामियों को ठीक करने का निर्देश दिया। यदि कमियां दूर हो जाती हैं, तो रजिस्ट्री द्वारा इसे लिस्ट में डाला जाएगा।
वोट सिर्फ नागरिकों का अधिकार
अपनी याचिका में उपाध्याय ने कहा कि वोट डालना सिर्फ भारतीय नागरिकों का अधिकार है और यह सुनिश्चित करना केंद्र और चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है। उन्होंने दावा किया कि आजादी के बाद कई जिलों और तहसीलों की जनसंख्या में बड़ा बदलाव अवैध घुसपैठ, जबरन धर्म परिवर्तन और जनसंख्या विस्फोट की वजह से हुआ है। इसके चलते वोटर लिस्ट में फर्जी नाम जुड़ने की आशंका है, जिसे हटाना जरूरी है।
अनुच्छेऔर 326 का हवालाद 324
उपाध्याय की याचिका में संविधान के अनुच्छेद 324(1) का उल्लेख है, जो चुनाव आयोग को चुनावों पर निगरानी और नियंत्रण का अधिकार देता है। वहीं अनुच्छेद 326 प्रत्येक योग्य नागरिक को मतदान का अधिकार सुनिश्चित करता है। उनका कहना है कि पारदर्शी और शुद्ध वोटर लिस्ट लोकतंत्र की बुनियाद है. उसेमजबूत करना हर हाल में जरूरी है।
विपक्ष के आरोप और सियासी घमासान
दूसरी ओर विपक्ष इस प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा है। विपक्षी दलों का आरोप है कि वोटर लिस्ट से लाखों लोगों के नाम जानबूझकर हटाए जा रहे हैं और यह मतदाता अधिकारों का उल्लंघन है। उनके मुताबिक कई लोग अपनी नागरिकता से जुड़े दस्तावेज पेश नहीं कर पाएंगे, जिससे उन्हें वोट देने से वंचित किया जा सकता है।
SIR पर खड़ा सवाल
विपक्ष यह भी पूछ रहा है कि साल 2002 से अब तक 13 मुख्य चुनाव आयुक्त आए, लेकिन किसी ने ‘स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन’ यानी SIR की पहल क्यों नहीं की? सिर्फ मौजूदा चीफ इलेक्शन कमिश्नर ज्ञानेश कुमार के कार्यभार संभालने के बाद ही इसे क्यों सक्रिय किया गया?


