अफगान-पाक वार्ता फिर विफल, काबुल का जवाब- 'हमारे पास परमाणु नहीं, पर अफगान झुकते नहीं'
अफगान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख अब्दुल कानी ने पाकिस्तान को तीखा जवाब देते हुए कहा कि यह सच है कि हमारे पास परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन अफगान कभी किसी के सामने झुके नहीं.

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रही शांति वार्ता एक बार फिर गतिरोध का शिकार हो गई है. तुर्की के इस्तांबुल में 25 से 28 अक्टूबर तक चली चार दिनों की दूसरी दौर की बातचीत बिना किसी ठोस नतीजे के खत्म हो गई. दोनों देशों के बीच अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप का दौर इतना बढ़ गया कि बातचीत टूटने की कगार पर पहुंच गई.
पाकिस्तान को लेकर क्या बोला अफगानिस्तान?
वार्ता के विफल होने के बाद अफगान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख अब्दुल कानी ने पाकिस्तान को तीखा जवाब देते हुए कहा कि यह सच है कि हमारे पास परमाणु हथियार नहीं हैं, लेकिन नाटो और अमेरिका के पास तो थे. अमेरिका ने अफगानिस्तान में बीस साल तक हर तरह के हथियारों से लड़ाई लड़ी, लेकिन अफगान कभी किसी के सामने झुके नहीं. आज भी हमारे पास शायद उतने संसाधन न हों, पर आत्मसम्मान और साहस हमसे कोई नहीं छीन सकता.
दरअसल, अफगान-पाक वार्ता की शुरुआत अक्टूबर 2025 की शुरुआत में उस समय हुई थी जब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान स्थित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के ठिकानों पर हवाई हमले किए थे. इन हमलों में दर्जनों लोग मारे गए थे, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव गहराया. इसके बाद 19 अक्टूबर को कतर की राजधानी दोहा में पहली दौर की वार्ता आयोजित की गई थी. इस बैठक में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों ने अस्थायी युद्धविराम और सीमा पर तनाव घटाने पर सहमति जताई थी.
इस्तांबुल में दूसरी बैठक पूरी तरह असफल
हालांकि, इस्तांबुल में हुई दूसरी बैठक पूरी तरह असफल रही. पाकिस्तान ने अफगान तालिबान सरकार से मांग की कि वह टीटीपी जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करे, उनके प्रशिक्षण कैंप नष्ट करे और इसके लिए लिखित गारंटी दे. इसके जवाब में अफगान पक्ष ने साफ कहा कि काबुल सरकार के पास टीटीपी पर पूर्ण नियंत्रण नहीं है और पाकिस्तान स्वयं तीसरे देशों से ड्रोन हमलों की शिकायत कर रहा है.
अफगान प्रतिनिधियों ने यह भी आरोप लगाया कि इस पूरे विवाद में पाकिस्तान अपने भीतर की अस्थिरता का ठीकरा अफगानिस्तान पर फोड़ने की कोशिश कर रहा है. इस आपसी अविश्वास के कारण वार्ता एक बार फिर नतीजों से दूर रह गई.
तुर्की और कतर जैसे मध्यस्थ देशों ने दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोशिशें कीं, लेकिन बातचीत किसी समझौते तक नहीं पहुंच पाई. अब विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक दोनों देश एक-दूसरे की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक क्षेत्र में स्थायी शांति की संभावना बहुत कम है.


