लोकल टैलेंट को नजरअंदाज कर रही अमेरिकी कंपनियां, ट्रंप को उल्टी पड़ी H-1B वीजा की चाल
अमेरिकी बिजनेसमैन जेम्स फिशबैक ने भारत और चीन जैसे देशों से स्किल्ड वर्कर्स की भर्ती पर बैन की मांग की है. उनका आरोप है कि अमेरिकी कंपनियां स्थानीय टैलेंट को नजरअंदाज कर H-1B वीजा से सस्ते विदेशी कर्मचारियों को भर्ती कर रही हैं.

नई दिल्ली : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में H-1B वीजा के नए आवेदनों की फीस बढ़ा दी है, जिससे भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका में काम करने का सपना और महंगा हो सकता है. इस फैसले के बीच अब अमेरिकी बिजनेस जगत से एक और बड़ी बहस छिड़ गई है विदेशी, खासकर भारतीय कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर.
विदेशी स्किल्ड हायरिंग पर लगे बैन
अमेरिकी कंपनियां अमेरिकियों को नजरअंदाज कर रही
फिशबैक ने आरोप लगाया कि बड़ी टेक कंपनियां अमेरिकी नागरिकों के साथ धोखा कर रही हैं. वे स्थानीय उम्मीदवारों के लिए जॉब विज्ञापन तो छापती हैं, लेकिन उन्हें इतना छिपाकर रखती हैं कि कोई आवेदन ही न कर पाए. इसके बाद वे आसानी से किसी फॉरेन वर्कर को H-1B वीजा के तहत हायर कर लेती हैं. उन्होंने कहा कि इससे योग्य अमेरिकी नागरिक न केवल नौकरी से वंचित रह जाते हैं, बल्कि उनके आत्मसम्मान और जीवन के उद्देश्य पर भी असर पड़ता है.
इमिग्रेशन पर फुल बैन की मांग
फिशबैक ने कहा कि अब समय आ गया है कि अमेरिका लीगल स्किल्ड इमिग्रेशन पर भी रोक लगाए. उन्होंने कहा, “अमेरिका की ताकत इस बात में नहीं है कि हम क्या इम्पोर्ट करते हैं, बल्कि इसमें है कि हमारे पास पहले से क्या मौजूद है.” उनके अनुसार, लाखों अमेरिकी आज अंडर-एम्प्लॉयड हैं, कम सैलरी पर काम कर रहे हैं या पूरी तरह बेरोजगार हैं, जबकि कंपनियां सस्ते विदेशी वर्कर्स को प्राथमिकता दे रही हैं.
विदेशी कर्मचारियों से अपने देश में रहने की अपील
फिशबैक ने भारत, चीन और अन्य देशों के युवाओं से अपील की कि वे अपने देश में रहकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करें. उन्होंने कहा, “मैं आपको दोष नहीं देता कि आप अमेरिका आना चाहते हैं, लेकिन आपके देशों को आपकी जरूरत है. वहीं रहिए, कुछ मूल्यवान बनाइए, और अपने देश को मजबूत कीजिए जैसे हम अमेरिका को फिर से ग्रेट बना रहे हैं.”
H-1B वीजा पर बहस जारी
H-1B वीजा अमेरिकी कंपनियों को विशेष भूमिकाओं के लिए विदेशी कर्मचारियों को रखने की अनुमति देता है. हर साल भारतीय नागरिक इस वीजा के सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से एक होते हैं. टेक कंपनियों का तर्क है कि उन्हें उच्च कुशल कर्मचारियों की जरूरत है, इसलिए वे ग्लोबल हायरिंग पर निर्भर हैं. वहीं, फिशबैक जैसे आलोचकों का कहना है कि यह नीति अमेरिकी वर्कर्स को किनारे कर रही है और अमेरिकी रोजगार बाजार को कमजोर बना रही है.


