क्या जानबूझकर युद्ध को खींच रहे हैं नेतन्याहू? सत्ता बचाने को लेकर उठा सवाल, समझिए
इजरायल और हमास के बीच चल रहा युद्ध अब देश के इतिहास का सबसे लंबा संघर्ष बन चुका है, जिससे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की मंशा पर सवाल खड़े हो गए हैं. अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बीच यह बहस तेज हो गई है कि क्या नेतन्याहू इस युद्ध को जानबूझकर खींच रहे हैं ताकि अपनी सत्ता को बनाए रखा जा सके? रिपोर्ट्स, गुप्त बैठकों और बदले गए रिकॉर्ड्स में संकेत है कि यह युद्ध अब सिर्फ सुरक्षा नहीं, बल्कि सत्ता की सियासत भी बन गया है.

इज़रायल और हमास के बीच जारी युद्ध ने अब देश के इतिहास का सबसे लंबा संघर्ष बनकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले के बाद शुरू हुए इस युद्ध में हजारों जानें जा चुकी हैं और ग़ज़ा बर्बादी की कगार पर पहुंच चुका है. लेकिन इस युद्ध की आड़ में इज़रायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की राजनीति को लेकर अब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गंभीर बहस शुरू हो गई है. क्या नेतन्याहू जानबूझकर युद्ध को लंबा खींच रहे हैं ताकि सत्ता में बने रह सकें?
द न्यूयॉर्क टाइम्स की एक विस्तृत रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेतन्याहू ने युद्ध को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया है. इस रिपोर्ट में अमेरिका, इज़रायल और अरब दुनिया के 110 अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि युद्ध का विस्तार नेतन्याहू के लिए राजनीतिक पुनरुत्थान साबित हुआ है.
नेतन्याहू का 'राजनीतिक पुनर्जन्म'
अक्टूबर 2023 के हमास हमले में 1,200 से अधिक इज़रायली नागरिकों की मौत हुई थी, जिसे इज़रायल की सैन्य विफलता का सबसे बड़ा उदाहरण माना गया. तब माना जा रहा था कि नेतन्याहू की राजनीतिक जिंदगी खत्म हो जाएगी, लेकिन उन्होंने इस युद्ध को अपनी सत्ता बचाने और फिर से मजबूत पकड़ बनाने के लिए एक अवसर में बदल दिया.
युद्ध खत्म होने का मतलब सत्ता से बाहर होना?
नेतन्याहू की गठबंधन सरकार बेहद कमजोर है और दक्षिणपंथी कट्टरपंथी मंत्रियों पर टिकी हुई है. इन मंत्रियों का मानना है कि ग़ज़ा में यह युद्ध लंबे समय तक चलेगा तभी इज़रायल फिर से यहूदियों की बस्तियां बसाने में सफल होगा. वित्त मंत्री बेज़ालेल स्मोट्रिच ने हाल ही में कहा था कि, "अगर हमास से कोई 'समर्पण समझौता' हुआ तो यह सरकार गिर जाएगी."
युद्ध विराम में जोखिम क्यों?
नेतन्याहू भ्रष्टाचार के आरोपों में 2020 से ट्रायल फेस कर रहे हैं. सत्ता में रहने पर वह अटॉर्नी जनरल पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाए रख सकते हैं, लेकिन यदि युद्ध समाप्त हो गया और सत्ता हाथ से निकल गई तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की संभावना बढ़ जाएगी. इसीलिए विशेषज्ञों का मानना है कि शांति वार्ता की रफ्तार धीमी रखने का मकसद निजी राजनीतिक बचाव है.
अमेरिका में इंटरव्यू, अपने देश के मीडिया से दूरी
अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान नेतन्याहू ने अमेरिकी मीडिया को तीन इंटरव्यू दिए लेकिन इज़रायली प्रेस से कोई संवाद नहीं किया. वहीं, उन्होंने उम्मीद जताई कि "आने वाले कुछ दिनों में हम हमास के साथ संघर्षविराम और बंधक सौदे को अंतिम रूप दे सकते हैं."
सऊदी अरब के साथ शांति समझौते का मौका?
यदि युद्ध समाप्त होता है तो सऊदी अरब के साथ ऐतिहासिक शांति समझौते की संभावना बन सकती है. यह समझौता 1948 में इजरायल की स्थापना के बाद से अब तक कोई भी इजरायली नेता नहीं कर पाया है. लेकिन नेतन्याहू की मौजूदा स्थिति को देखते हुए वे इस दिशा में पहल करते नहीं दिख रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही आलोचना
गाजा में अब तक करीब 55,000 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें लगभग 10,000 बच्चे शामिल हैं. यह युद्ध अब 1948, 1967 और 1973 के युद्धों से भी लंबा हो चुका है. दुनिया भर में इज़रायल की छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा है. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में इजरायल पर 'जनसंहार' के आरोपों पर सुनवाई चल रही है. अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इस युद्ध की लंबी अवधि से नाराज बताए जा रहे हैं.


