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मध्य पूर्व में बारूद की नई लकीर, क्या इस्लामिक आर्मी से भड़केगी धर्मयुद्ध की चिंगारी?

मध्य पूर्व में एक नया इस्लामिक सैन्य गठबंधन बन रहा है। ईरान, पाकिस्तान और तुर्की मिलकर इजरायल के खिलाफ 'इस्लामिक यूनाइटेड आर्मी' की तैयारी में हैं। सऊदी अरब की भूमिका को लेकर भी अटकलें तेज़ हैं।

Lalit Sharma
Edited By: Lalit Sharma

International News: मध्य पूर्व की जमीं पर एक नई जंग की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है। ईरान ने पाकिस्तान और तुर्की के साथ मिलकर एक इस्लामिक यूनाइटेड आर्मी का प्रस्ताव पेश किया है। इस नई सैन्य इकाई का मुख्य निशाना इजरायल बताया जा रहा है। तेहरान में धार्मिक और सैन्य नेताओं की गोपनीय बैठकों के बाद यह गठबंधन सामने आया है। ईरान का मानना है कि गाज़ा की लड़ाई अब सिर्फ फिलिस्तीन की नहीं रही, बल्कि इसे पूरे इस्लामिक वर्ल्ड का साझा युद्ध बनना चाहिए। इस गठबंधन को केवल निंदा या विरोध से आगे बढ़ाकर एक हथियारबंद जवाब देने की योजना बनाई जा रही है।

पाकिस्तान का ISI और सेना मुख्यालय पहले से एक्टिव

हालांकि पाकिस्तान ने इस योजना पर कोई औपचारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन अंदरखाने गतिविधियां तेज़ हो चुकी हैं। आईएसआई के अधिकारी पहले ही ईरान से इस मुद्दे पर समन्वय बैठक कर चुके हैं। रावलपिंडी में सेना मुख्यालय में दो बार गुप्त ब्रीफिंग हो चुकी है, जिनमें 'इस्लामिक फोर्सेज' के लॉजिस्टिक मॉडल पर चर्चा की गई। पाकिस्तान युद्ध में सीधे शामिल नहीं होगा, लेकिन ड्रोन तकनीक, हथियार सप्लाई और ट्रेनिंग जैसे सहयोग के लिए तैयार बताया जा रहा है। यह सहयोग 'इस्लामी एकता' के नाम पर दिया जाएगा, जबकि असल उद्देश्य गहरा रणनीतिक है।

तुर्की भी तैयार, एर्दोगन ने दिया 'पवित्र कर्तव्य' का नाम

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन पहले से ही इजरायल विरोधी बयानों के लिए प्रसिद्ध हैं। अब उन्होंने इस प्रस्तावित आर्मी को "पवित्र दायित्व" बताते हुए खुले समर्थन के संकेत दिए हैं। तुर्की, जो NATO का सदस्य है, अब पश्चिम से अपनी दूरी बना रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, तुर्की एयर सपोर्ट, ड्रोन वॉरफेयर और साइबर इंटेलिजेंस में सहयोग देगा। तुर्की संसद में इजरायल के खिलाफ कार्रवाई को लेकर प्रस्ताव तक रखा गया है। एर्दोगन खुद इस गठबंधन का चेहरा बनना चाहते हैं ताकि उनकी इस्लामी नेतृत्व की छवि और मजबूत हो।

सऊदी अरब का मौन समर्थन, जनता का दबाव बना रहा असर

सऊदी अरब खुलकर सामने नहीं आया है, लेकिन अंदर ही अंदर हलचल ज़रूर है। प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान अमेरिकी रिश्तों को बिगाड़ना नहीं चाहते, पर जनता के गुस्से को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते। गज़ा में मारे गए बच्चों और मस्जिदों की तबाही ने अरब जनमानस को भड़का दिया है। रियाद में हुई एक गुप्त मीटिंग में सऊदी इंटेलिजेंस ने गठबंधन का समर्थन किया है। हालांकि सऊदी सीधे सेना नहीं भेजेगा, लेकिन फंडिंग, मेडिकल सप्लाई और मीडिया सपोर्ट देने की योजना पर विचार कर रहा है।

इजरायल चौकन्ना, अमेरिका ने दी कड़ी चेतावनी

इस गठबंधन की सुगबुगाहट के बाद इजरायल की खुफिया एजेंसियों ने अलर्ट जारी कर दिया है। अमेरिका ने साफ कहा है कि अगर इजरायल पर हमला हुआ, तो वो हस्तक्षेप करेगा। अमेरिकी युद्धपोत पहले ही रेड सी और खाड़ी में तैनात हैं। इजरायल के पास अत्याधुनिक रक्षा प्रणाली है, लेकिन इस्लामिक आर्मी की संयुक्त चुनौती को वह हल्के में नहीं ले रहा। दो मोर्चों—गज़ा और नई इस्लामिक आर्मी—पर जंग लड़ना उसके लिए आसान नहीं होगा।

सोशल मीडिया पर उबाल, उम्मा के हथियार का नारा गूंजा

जैसे ही इस आर्मी की चर्चा सामने आई, सोशल मीडिया पर उबाल आ गया। #IslamicArmy और #FreePalestine जैसे हैशटैग ट्विटर, टेलीग्राम और टिकटॉक पर ट्रेंड करने लगे। फिलिस्तीन से लेकर पाकिस्तान तक लोग इस आर्मी को "उम्मा का हथियार" बताने लगे। युवाओं में इतना जोश है कि कई खुद को वॉलंटियर करने के लिए तैयार बैठे हैं। सोशल मीडिया अब इस गठबंधन का सबसे ताकतवर प्रचार माध्यम बन चुका है।

क्या ये सिर्फ गठबंधन है या जंग की शुरुआत?

सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या यह गठबंधन सिर्फ एक राजनीतिक स्टंट है या सच में एक नई जंग की शुरुआत? मध्य पूर्व पहले से ही यमन, सीरिया और गज़ा की आग में जल रहा है। अगर यह इस्लामिक यूनाइटेड आर्मी सक्रिय हुई, तो यह केवल इजरायल ही नहीं, पूरी वैश्विक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। संयुक्त राष्ट्र ने संयम बरतने की अपील की है, लेकिन जमीनी हालात कुछ और कहानी बयां कर रहे हैं।

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16 June 2025, 06:24 PM IST

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