पाकिस्तान की धरती पर गूंजेंगे संस्कृत के श्लोक, महाभारत-गीता का भी पढ़ाया जायेगा पाठ
पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ने आज़ादी के 77 साल बाद पहली बार अपने ऑफिशियल एकेडमिक करिकुलम में संस्कृत भाषा को शामिल किया है। इसका दोनों देशों की साझी संस्कृति और इतिहास से गहरा जुड़ाव है।

नई दिल्ली: पाकिस्तान की लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने स्वतंत्रता के 77 साल बाद पहली बार संस्कृत भाषा को अपने आधिकारिक शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल किया है. यह निर्णय पाकिस्तान में शास्त्रीय भाषा के पुनरुद्धार के रूप में देखा जा रहा है, जो दोनों देशों की साझा संस्कृति और इतिहास से गहरा संबंध रखता है.
इस पहल की शुरुआत पहले एक तीन महीने की सप्ताहांत वर्कशॉप (Three-month weekend workshops) के रूप में हुई थी, जिसमें छात्रों, शोधकर्ताओं, वकीलों और शिक्षाविदों ने भाग लिया. भारी सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद विश्वविद्यालय ने इसे एक नियमित चार-क्रेडिट कोर्स के रूप में आधिकारिक रूप देना तय किया.
संस्कृत मे बढ़ रही छात्रों की रुचि
कोर्स का नेतृत्व डॉ. शाहिद रशीद कर रहे हैं, जिन्होंने स्वयं सालों तक संस्कृत का अध्ययन किया है. उन्होंने बताया कि शुरुआत में छात्रों को यह कठिन भाषा लग रही थी, लेकिन जैसे-जैसे उन्होंने इसके तार्किक व्याकरण को समझा, उनकी रुचि और उत्साह बढ़ा. कई छात्रों को यह जानकर आश्चर्य हुआ कि उर्दू और स्थानीय भाषाओं के बहुत से शब्द संस्कृत से ही आए हैं.
डॉ. रशीद के अनुसार, संस्कृत सीखने का लक्ष्य सिर्फ भाषा सीखना नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की दर्शन, साहित्य और आध्यात्मिक परंपराओं को मूल रूप में समझना भी है.
साझा सांस्कृतिक विरासत का सम्मान
गुरमानी सेंटर के डायरेक्टर डॉ. अली उस्मान कासमी का कहना है कि पाकिस्तान में पुरानी संस्कृत दस्तावेज़ों का एक बड़ा संग्रह पंजाब यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी में मौजूद है, जिसका उपयोग दशकों से केवल विदेशी शोधकर्ता करते रहे हैं. अब स्थानीय विद्वान भी इस समृद्धता से जुड़ सकेंगे.
डॉ. कासमी ने यह भी जोर देकर कहा कि संस्कृत किसी एक धर्म या समुदाय तक सीमित नहीं है. यह एक ऐसी भाषा है जिसने क्षेत्र की सांस्कृतिक, दार्शनिक और साहित्यिक धरोहर को आकार दिया है.
महाभारत-गीता पर आधारित कोर्स
LUMS विश्वविद्यालय महाभारत और भगवद गीता पर विशेष कोर्स की भी योजना बना रहा है, ताकि छात्र इन महान ग्रंथों के श्लोकों और संदेशों का अध्ययन कर सकें. इसके माध्यम से पाकिस्तान में संस्कृत और शास्त्रीय अध्ययन के क्षेत्र में नए विद्वानों का विकास होने की उम्मीद जताई जा रही है.
डॉ. कासमी का मानना है कि अगर यह पहल इसी तरह बढ़ती रही, तो आने वाले 10–15 वर्षों में पाकिस्तान में संस्कृति और शास्त्रीय भाषा के क्षेत्र में एक नई पीढ़ी के विशेषज्ञ तैयार होंगे, जो महाभारत-गीता जैसे ग्रंथों पर शोध कर सकेंगे.
लाहौर यूनिवर्सिटी का ऐतिहासिक कदम
विश्वविद्यालय का लक्ष्य 2027 तक संस्कृत को एक पूरा साल का कोर्स बनाना है, जिससे और अधिक छात्रों को यह पारंपरिक भाषा सीखने का मौका मिल सके. इस पहल को दक्षिण एशियाई सांस्कृतिक पुल के रूप में भी देखा जा रहा है, जो भाषाई और बौद्धिक समृद्धि को बढ़ावा देगा.
संक्षेप में, पाकिस्तान में संस्कृत की पढ़ाई की यह शुरुआत एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक बदलाव की ओर कदम है, जो दोनों देशों की साझा विरासत की महत्ता को उजागर करती है और शैक्षणिक सहयोग के नए अवसर खोलती है.


