एक तरफ रूस-चीन, दूसरी तरफ अमेरिका का दबाव... RIC में भारत की भूमिका पर टिकी दुनियाभर की नजरें
व्लादिमीर पुतिन एशिया में एक नए शक्ति संतुलन की योजना के तहत भारत-चीन-रूस (RIC) गठबंधन को दोबारा सक्रिय करना चाहते हैं. अमेरिका और Quad के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए रूस ने भारत को S-500 और SU-57 जैसी सैन्य तकनीकों की पेशकश की है. लेकिन चीन से तनाव और अमेरिका के दबाव के बीच भारत की विदेश नीति एक कठिन मोड़ पर आ गई है.

भारत अब उस वैश्विक मोड़ पर आ चुका है, जहां उसे संतुलन साधने की कला को बखूबी निभाना होगा. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक बार फिर एशिया में एक त्रिपक्षीय गठबंधन RIC (रूस-भारत-चीन) को सक्रिय करने की कोशिशें तेज कर दी हैं, जो अमेरिका के प्रभाव को चुनौती देने के मकसद से उठाया गया कूटनीतिक कदम है. वहीं, दूसरी ओर अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में खटास आने लगी है, जिससे भारत की विदेश नीति की असली परीक्षा शुरू हो चुकी है.
पुतिन की योजना का मकसद एशिया में चीन और भारत को एक मंच पर लाकर पश्चिमी दबदबे को कमजोर करना है. लेकिन इस प्रयास के केंद्र में भारत की भूमिका निर्णायक है, और यही वो बिंदु है जो नई दिल्ली के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण है – क्या वह अमेरिका और Quad में बने रहकर रूस और चीन से दूरी बनाए, या फिर पुराने दोस्त रूस की नई रणनीति का हिस्सा बने?
पुतिन की नई चाल
रूसी राष्ट्रपति पुतिन, अमेरिका के खिलाफ कूटनीतिक मोर्चा खोलने की तैयारी में हैं. उनकी योजना RIC (Russia-India-China) संवाद को फिर से सक्रिय करने की है. यह पहल भारत और चीन को एक साथ लाकर एशिया में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने की रणनीति का हिस्सा है. लेकिन भारत-चीन के रिश्तों की जमीनी हकीकत को देखते हुए, यह कदम जटिल साबित हो सकता है. चीन की पाकिस्तान के साथ साझेदारी और सीमा पर तनाव भारत के लिए RIC में साझेदारी को अव्यवहारिक बना रहे हैं.
अमेरिका का बदलता रुख और ट्रंप की खुली नाराजगी
जो बाइडेन प्रशासन के दौरान भारत-अमेरिका संबंधों में जिस गर्मजोशी की झलक दिखी थी, वह डोनाल्ड ट्रंप की वापसी के बाद फीकी पड़ने लगी है. अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लटनिक ने हाल ही में भारत की कुछ नीतियों को लेकर नाराजगी जताई, जिनमें रूस से सैन्य खरीद और ब्रिक्स में भारत की सक्रियता प्रमुख हैं. लटनिक ने ब्रिक्स को डॉलर के वर्चस्व के खिलाफ बताया और कहा, “अमेरिका में दोस्त बनाने का यह तरीका नहीं है.” यह भारत के लिए स्पष्ट संकेत है कि वाशिंगटन अब नई दिल्ली के रुख को बारीकी से देख रहा है.
पुराने रिश्तों को फिर से संजोने की कोशिश
भारत को लुभाने के लिए रूस एक बार फिर अपने रणनीतिक हथियार सौदों का सहारा ले रहा है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, रूस ने भारत को अत्याधुनिक S-500 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की पेशकश की है. इसके अलावा SU-57 स्टील्थ फाइटर जेट के 100% सोर्स कोड की पेशकश भी की गई है, जो ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के लिहाज से अहम हो सकता है. लेकिन अगर भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो अमेरिका की नाराजगी और प्रतिबंधों का खतरा साफ नजर आता है.
भारत के लिए 'दो नावों' पर सवारी
Quad (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के साथ भारत की सैन्य साझेदारी लगातार बढ़ रही है. अमेरिका के रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने हाल ही में भारत के साथ और गहरा सहयोग करने की बात कही, जिसमें 'टाइगर ट्रायम्फ' और 'टॉसन सेबर' जैसे सैन्य अभ्यास शामिल हैं. वहीं, रूस का दावा है कि भारत सिर्फ आर्थिक कारणों से Quad में शामिल है, लेकिन पर्दे के पीछे इसे सैन्य गठबंधन में बदला जा रहा है.
JNU प्रोफेसर का विश्लेषण
JNU के प्रोफेसर राजन कुमार ने RIC को लेकर रूस की उम्मीदों को 'कोरी कल्पना' करार दिया है. उन्होंने कहा, “यह वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में प्रासंगिक नहीं है.” हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि पश्चिम देश भारत-चीन संबंधों को 'बांटकर शासन' की नीति से देख रहे हैं. उन्होंने आगाह किया कि ट्रंप प्रशासन की मौजूदा संरक्षणवादी नीति के चलते अमेरिका पर पूरी तरह निर्भर रहना भारत के हित में नहीं होगा.
बहुध्रुवीय संतुलन की जरूरत
भारत आज उस कूटनीतिक चौराहे पर है, जहां उसे Quad की रणनीतिक साझेदारी, रूस के पुराने संबंधों और चीन की आक्रामकता के बीच सामंजस्य बिठाना होगा. यह दशक भारत की विदेश नीति के लिहाज से बेहद निर्णायक साबित हो सकता है. भारत को ऐसा संतुलन बनाना होगा जो उसकी सुरक्षा, स्वायत्तता और दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों के लिए अनुकूल हो.


