संयुक्त राष्ट्र के कानून तार-तार, युद्ध में ताकतवर देशों की मनमानी चरम पर
दुनिया आज 'वारिंग स्टेट्स पीरियड' जैसे दौर में है, जहां ताकतवर देश खुलेआम अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं. अमेरिका-इजराइल द्वारा ईरान पर हमले, रूस का यूक्रेन पर आक्रमण और गाजा में इजराइल की कार्रवाई वैश्विक नियमों और मानवाधिकारों की गंभीर अनदेखी को दर्शाते हैं.

आज की दुनिया में हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसे कई जानकार प्राचीन चीन के 'वारिंग स्टेट्स पीरियड' जैसा मानते हैं. उस दौर की तरह ही आज भी वैश्विक शक्तियां एक-दूसरे से टकरा रही हैं, सैन्य कार्रवाई हो रही है और निर्दोष नागरिक इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं. लेखिका मार्गरेट एटवुड ने 30 साल पहले जो लिखा था—"युद्ध इसलिए होते हैं क्योंकि उन्हें शुरू करने वाले जीतने का दावा करते हैं"—वह पंक्तियां आज के हालात पर सटीक बैठती हैं.
21 जून को अमेरिका ने B-2 बमवर्षकों के जरिए ईरान के परमाणु ठिकानों पर 30,000 पाउंड के बम गिराए. यह ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है. इससे पहले 2003 में जॉर्ज बुश ने इराक पर हमला किया था, लेकिन उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से अनुमति लेने का प्रयास किया था. ट्रंप ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की. इससे साफ है कि अब अमेरिका जैसे देश अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की परवाह भी नहीं कर रहे.
नेतन्याहू की नीति और इज़राइल की कार्रवाइयां
इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू पहले ही ईरान के वैज्ञानिकों और जनरलों की हत्याएं करवा चुके हैं. अब अमेरिका भी उसी राह पर चल पड़ा है. गाजा में इज़राइल की कार्रवाइयों ने तो सारी सीमाएं तोड़ दी हैं, जहां महीनों से फिलिस्तीनियों पर बमबारी हो रही है.
रूस, यूक्रेन और कानून का मजाक
रूस ने 2022 में यूक्रेन पर हमला किया और इसे 'आत्मरक्षा' का नाम दिया, जबकि यूक्रेन ने न तो रूस पर हमला किया था और न ही धमकी दी थी. यह स्पष्ट रूप से संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन है, जो किसी देश की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ बल प्रयोग को प्रतिबंधित करता है.
कमजोर होती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था
जिनेवा कन्वेंशन और संयुक्त राष्ट्र चार्टर जैसे दस्तावेजों को अब सिर्फ नाम के लिए ही माना जा रहा है. अमेरिका और इज़राइल जैसे ताकतवर देश जब चाहें हमला कर देते हैं और बाकी दुनिया चुप्पी साधे देखती रहती है. चिली के युवा राष्ट्रपति गैब्रियल बोरिक ने साहस दिखाते हुए अमेरिका की निंदा की और कहा, "ताकतवर होने का मतलब यह नहीं कि आप इंसानियत के नियम तोड़ें."
क्या खत्म हो जाएगी नियम आधारित व्यवस्था?
अब ऐसा दौर आ चुका है जहां सिर्फ ताकत मायने रखती है. कमजोर देश या तो चुपचाप सहते हैं या मिटा दिए जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अगर यह सिलसिला नहीं रुका, तो अगली पीढ़ी एक बेहद खतरनाक और अस्थिर दुनिया में जिएगी.


