भारत की खामोशी ने बढ़ाई अमेरिका की बेचैनी, टैरिफ संग्राम ने रिश्तों को खतरनाक मोड़ पर ला खड़ा किया
भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ विवाद गहराता जा रहा है। मोदी सरकार की खामोशी अब वॉशिंगटन के लिए सबसे बड़ी पहेली बन गई है। जर्मन अखबार ने इसे दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का नया संकेत बताया है।

International News: अमेरिका ने भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया, जिससे कुल टैक्स 50 प्रतिशत तक पहुंच गया। इस कदम ने व्यापारिक जगत में हलचल मचा दी है। भारतीय उद्योगपति इसे चिंता से देख रहे हैं, मगर सरकार राष्ट्रीय हित से समझौता करने को तैयार नहीं। कई निर्यातक कह रहे हैं कि इससे उनकी लागत बढ़ जाएगी और विदेशी बाज़ार में प्रतिस्पर्धा घटेगी। छोटे व्यापारियों पर भी इसका सीधा असर पड़ सकता है। आर्थिक जानकार मानते हैं कि ये फैसला सिर्फ कारोबार नहीं बल्कि भरोसे पर भी चोट है। भारत सरकार फिलहाल इस दबाव को राष्ट्रीय सम्मान से जोड़कर देख रही है।
कई बार अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चुप रहना ही सबसे बड़ा बयान होता है। मोदी सरकार ने टैरिफ मुद्दे पर कोई तेज़ प्रतिक्रिया नहीं दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह चुप्पी एक सोच-समझी रणनीति है, जो अमेरिका के दबाव को बेअसर बना रही है।
ट्रंप की नाराज़गी
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप रूस से भारत की तेल खरीद पर खासे नाराज़ बताए जाते हैं। उनका मानना है कि भारत को वॉशिंगटन की नीति का समर्थन करना चाहिए। मगर दिल्ली ने साफ कर दिया है कि ऊर्जा सुरक्षा किसी दबाव के आगे बलिदान नहीं की जाएगी।
वियतनाम की मिसाल
जर्मन अखबार ने उदाहरण दिया कि वियतनाम के साथ ट्रंप ने बिना ठोस समझौते के डील घोषित कर दी थी। भारत नहीं चाहता कि वह किसी ऐसे अधूरे सौदे का हिस्सा बने। यही वजह है कि दिल्ली हर क़दम बेहद सतर्कता से उठा रही है।
कृषि पर रस्साकशी
अमेरिका भारत से चाहता है कि वह अपने कृषि बाज़ार को अमेरिकी कंपनियों के लिए खोल दे। लेकिन मोदी सरकार जानती है कि यह फैसला किसानों की रोज़ी-रोटी पर भारी पड़ सकता है। यही कारण है कि भारत दबाव के बावजूद पीछे नहीं हट रहा।
रिश्तों में नई दरार
भारत की स्वतंत्र नीति और अमेरिका की दबाव वाली राजनीति के बीच खाई और चौड़ी हो रही है। टैरिफ और ऊर्जा को लेकर दोनों देशों का टकराव अब सिर्फ व्यापार का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का भी हिस्सा बन चुका है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह तनातनी और गहरी हो सकती है। भारत का रुख साफ है कि वह किसी भी क़ीमत पर अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा। यही खामोशी आगे चलकर दुनिया को बड़ा संदेश देने वाली है।


