सूजन की जड़ पर सीधा वार करती है ये डाइट, एक्सपर्ट से जानें कैसे करें शुरुआत
हाल के वर्षों में एंटी-इंफ्लेमेटरी डाइट को काफी लोकप्रियता मिली है. इसे शरीर की अंदरूनी सूजन को कम करने वाला उपाय माना जाता है. लेकिन क्या वाकई यह डाइट इतना असरदार है? एक्सपर्ट्स की राय जानना ज़रूरी है.

Lifestyle News: सूजन शरीर की एक सामान्य प्रक्रिया है जो चोट, संक्रमण या बाहरी हमले से लड़ने के लिए होती है. लेकिन जब यह सूजन लंबे समय तक बनी रहती है यानी क्रॉनिक इंफ्लेमेशन बन जाती है, तो यह डायबिटीज़, हार्ट डिज़ीज़, आर्थराइटिस और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियों की जड़ बन सकती है. एंटी-इंफ्लेमेटरी डाइट में पालक, ब्रोकली, बेरीज़, ओमेगा-3 वाली मछलियाँ, हल्दी और ऑलिव ऑयल जैसी चीज़ों को प्रमुखता दी जाती है. वहीं, प्रोसेस्ड फूड्स, मीठा और डीप फ्राई चीज़ों से परहेज़ किया जाता है.
किन लोगों को सबसे ज़्यादा फ़ायदा होता है?
यह डाइट खास तौर पर उन लोगों के लिए कारगर मानी जाती है जो ऑटोइम्यून डिज़ीज़, जोड़ों के दर्द, स्किन डिज़ऑर्डर या मोटापे से जूझ रहे हों। फिटनेस से जुड़े लोग भी इस डाइट को रिकवरी के लिए अपनाते हैं। यह एक लाइफस्टाइल बदलाव है, न कि चमत्कारी इलाज। अचानक सब कुछ छोड़ना ज़रूरी नहीं, बल्कि धीरे-धीरे हेल्दी विकल्पों की ओर बढ़ना ज़रूरी है। यह डाइट उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद मानी जाती है जो दवाओं पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। बुजुर्गों को गठिया और सूजन की तकलीफ में इससे राहत मिल सकती है। स्किन एलर्जी और अस्थमा से पीड़ित लोग भी इसका लाभ महसूस करते हैं। यहां तक कि बच्चों में भी यह डाइट इम्यून सिस्टम मजबूत करने में मददगार हो सकती है।
एंटी-इंफ्लेमेटरी डाइट के दौरान क्या करें, क्या न करें
इस डाइट को अपनाने का मूल मंत्र है—संतुलन और निरंतरता। मौसमी फल, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, ग्रीन टी, नट्स, मछली और साबुत अनाज को नियमित आहार में शामिल करना फायदेमंद है। तले हुए, अत्यधिक मीठे, प्रोसेस्ड फूड और शराब से जितनी दूरी बनाएंगे, उतना शरीर का सूजन स्तर कम होगा। पर्याप्त पानी पीना और समय पर सोना-खाना भी इस डाइट का जरूरी हिस्सा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कोई सज़ा नहीं, बल्कि समझदारी से जीने का तरीका है। खाना पकाने में रिफाइंड तेल की जगह ऑलिव ऑयल या सरसों तेल जैसे बेहतर विकल्प अपनाए जा सकते हैं। चावल की जगह क्विनोआ या ब्राउन राइस और फ्राइड स्नैक्स की जगह भुनी हुई चीजें बेहतर रहती हैं। सबसे ज़रूरी यह है कि ये बदलाव धीरे-धीरे और स्थायी रूप से अपनाए जाएं।
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
पोषण विशेषज्ञों का मानना है कि अकेली डाइट बीमारियों का पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन यह लक्षणों को नियंत्रण में रखने में मददगार होती है। इसका पालन करने से वजन संतुलित रहता है, इम्यून सिस्टम बेहतर होता है और शरीर में मौजूद सूजन को मापने वाले मार्कर जैसे CRP स्तर में गिरावट आती है। केवल खानपान ही नहीं, बल्कि अच्छी नींद, नियमित व्यायाम और मानसिक तनाव को कम करना भी इसके प्रभाव को बढ़ाता है। रिसर्च के अनुसार, यह डाइट न्यूरोलॉजिकल बीमारियों जैसे माइग्रेन या डिप्रेशन के मामलों में भी कारगर पाई गई है। हार्मोनल असंतुलन, खासकर महिलाओं में, को भी यह डाइट नियंत्रित कर सकती है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि इसे अपनाने से पहले व्यक्ति को अपनी जीवनशैली और स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखकर योजना बनानी चाहिए। डाइट की सफलता का राज इसके लंबे समय तक पालन में ही छिपा है।


