क्या है मधुश्रावणी व्रत? पूरे 15 दिन तक मिथिलांचल में रहती है रौनक, जानिए मान्यता
श्रावण मास में मिथिलांचल की नवविवाहिताओं द्वारा मनाया जाने वाला मधुश्रावणी व्रत आस्था, परंपरा और प्रेम का प्रतीक है. यह व्रत पति की दीर्घायु और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना के लिए पूरे श्रद्धा से किया जाता है. तो चलिए इस पर्व का खासियत जानते हैं.

श्रावण मास में मिथिलांचल की सांस्कृतिक परंपराओं में एक अनूठा और भावनात्मक पर्व है मधुश्रावणी व्रत, जो नवविवाहित महिलाओं के लिए विशेष रूप से समर्पित होता है. यह पर्व न केवल आध्यात्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि नवविवाहिता के वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और पति की दीर्घायु के लिए भी विशेष रूप से किया जाता है.
इस अवसर पर सोलह श्रृंगार किए हुए नवविवाहिता सखियों संग बगीचों में जाती हैं, जहां वे बांस के नए डाला को फूलों और पत्तों से सजाकर पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा करती हैं. बिहार के सीतामढ़ी समेत समूचे मिथिला क्षेत्र में यह पर्व पूरे श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है.
सिर्फ नवविवाहिताएं करती हैं यह व्रत
मधुश्रावणी व्रत विशेष रूप से नवविवाहित महिलाओं द्वारा किया जाता है और यह आमतौर पर विवाह के पहले वर्ष में ही निभाया जाता है. यह व्रत 13 से 15 दिनों तक चलता है. परंपरा के अनुसार, नवविवाहिताएं अपनी सखियों के साथ फूल लोढ़ने (तोड़ने) जाती हैं, और फिर हंसी-ठिठोली करते हुए घर लौटती हैं, जहां वे विधिपूर्वक पूजा करती हैं.
महिला पुरोहित कराती हैं पूजा
मधुश्रावणी की एक अनूठी विशेषता यह है कि इस व्रत की पूजा महिला पुरोहित कराती हैं. यह एकमात्र पर्व है, जिसमें पुरुष ब्राह्मण की जगह महिला ब्राह्मण पूजा विधि संपन्न कराती हैं. पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती और नाग देवता की विशेष आराधना की जाती है. व्रत भले मायके में किया जाता है, लेकिन पूजा की सभी सामग्री और श्रृंगार की वस्तुएं ससुराल से आती हैं.
मां पार्वती से सीखा जाता है दांपत्य जीवन का सार
पूरे व्रत काल के दौरान नवविवाहिताओं को मां पार्वती, भगवान शंकर, नाग देवता और अन्य देवी-देवताओं की कथाएं सुनाई जाती हैं. इन कथाओं के माध्यम से उन्हें सुखद वैवाहिक जीवन जीने की कला सिखाई जाती है. कजरी और ठुमरी जैसी पारंपरिक लोकधुनों के जरिए मां गौरी को प्रसन्न किया जाता है. यही नहीं, महिलाएं हर शाम भजन-कीर्तन कर भगवान शिव से अपने पति के दीर्घायु जीवन का आशीर्वाद मांगती हैं.
परंपराएं जो जोड़ती हैं रिश्तों की डोर
इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि व्रती मायके में रहकर पूजा करती हैं, लेकिन उनका हर संबंध ससुराल से जुड़ा होता है — श्रृंगार पेटी से लेकर पूजा सामग्री तक. यह न केवल वैवाहिक जीवन के प्रति समर्पण को दर्शाता है, बल्कि ससुराल और मायके के रिश्तों को भी मजबूती देता है.
नाग देवता की होती है विशेष पूजा
मधुश्रावणी में नाग देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि नाग देवता को प्रसन्न करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. एक नवविवाहिता प्रीति कुमारी बताती हैं, "श्रावण मास में नाग देवता की पूजा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और नवविवाहिताओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देते हैं." पूजा के दौरान महिलाएं बासी फूलों से नाग-नागिन की पूजा करती हैं, जिसे शुभ माना जाता है.
समृद्ध परंपरा का अद्भुत उत्सव
मधुश्रावणी व्रत मिथिलांचल की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का एक अद्वितीय उदाहरण है, जो नवविवाहिता को न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ता है, बल्कि उसे पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारियों और मर्यादाओं को भी सिखाता है. यह पर्व हर वर्ष सावन में सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक एकता का अद्भुत प्रतीक बनकर सामने आता है.


