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कहां से आया सिंदूर शब्द? जानें इसकी संस्कृत जड़ें और धार्मिक महत्व

सिंदूर भारतीय संस्कृति में सिर्फ सौंदर्य प्रसाधन नहीं, बल्कि एक गहरी भावनात्मक और धार्मिक परंपरा का प्रतीक है. संस्कृत शब्द ‘सिंदूरा’ से निकले इस लाल चूर्ण का प्रयोग विवाह के बाद महिलाओं की मांग में किया जाता है, जो सुहाग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है. तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

भारतीय संस्कृति में सिंदूर सिर्फ एक सजावटी पाउडर नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और धार्मिक प्रतीक है. विवाह के बाद जब किसी महिला की मांग में सिंदूर भरा जाता है, तो वो पल सिर्फ एक रस्म नहीं रह जाता, बल्कि उसके जीवन की नई शुरुआत का प्रतीक बन जाता है. यही वजह है कि सिंदूर भारतीय समाज में सुहाग का प्रतीक माना जाता है और इसका भावनात्मक महत्व बेहद गहरा होता है.

उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक भारत के हर हिस्से में शादी के समय सिंदूर दान की परंपरा निभाई जाती है. चाहे वो बंगाल हो या बिहार, केरल हो या महाराष्ट्र, सिंदूर भारतीय दुल्हन की पहचान बन चुका है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस लाल रंग के पाउडर को 'सिंदूर' क्यों कहा गया? इसे पहले कैसे बनाया जाता था? और आज इसके निर्माण में क्या बदलाव आए हैं? आइए, जानते हैं सिंदूर से जुड़ी 3 खास बाते.

1. कहां से आया 'सिंदूर' शब्द?

‘सिंदूर’ शब्द आज हमारी आम बोलचाल का हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसकी जड़ें संस्कृत में हैं. संस्कृत में इसे 'सिंदूरा' कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है लाल रंग का चूर्ण. समय के साथ इसका उच्चारण बदलते हुए सिंदूर बन गया. यह शब्द न केवल भारतीय भाषाओं में, बल्कि रीति-रिवाजों और धार्मिक ग्रंथों में भी अपनी जगह बनाए हुए है.

2. प्राचीन भारत में कैसे बनता था सिंदूर?

आज भले ही सिंदूर के निर्माण में कैमिकल और सिंथेटिक तत्वों का प्रयोग होता हो, लेकिन प्राचीन भारत में इसे पूरी तरह प्राकृतिक चीजों से बनाया जाता था. सिंदूर बनाने की पारंपरिक विधि में मुख्यतः तीन चीजें इस्तेमाल होती थी, हल्दी, नींबू का रस, फिटकरी. इन तीनों को मिलाकर लाल रंग उत्पन्न किया जाता था. कुछ खास मामलों में इसमें केसर और चंदन भी मिलाए जाते थे, ताकि इसकी खुशबू और गुणवत्ता बढ़ सके. यह सिंदूर त्वचा के लिए भी सुरक्षित होता था और धार्मिक दृष्टिकोण से भी पवित्र माना जाता था.

3. आज के सिंदूर में क्या बदला?

आधुनिक दौर में सिंदूर का निर्माण बड़े पैमाने पर फैक्ट्रियों में होता है, जहां प्राकृतिक तत्वों की जगह सिंथेटिक मटेरियल का उपयोग होता है. अब इसमें टैल्क, कैल्शियम कार्बोनेट, सिंथेटिक डाई, लेड और मरकरी जैसे तत्व डाले जाते हैं, जो इसकी शेल्फ लाइफ बढ़ाते हैं और बड़े स्तर पर उत्पादन को आसान बनाते हैं. हालांकि, ये सभी तत्व त्वचा और स्वास्थ्य के लिहाज से हमेशा सुरक्षित नहीं माने जाते.

सिंदूर का बदलता स्वरूप

समय के साथ सिंदूर के उपयोग के तरीके जरूर बदले हैं, लेकिन उसका सांस्कृतिक और भावनात्मक महत्व आज भी जस का तस बना हुआ है. अब महिलाएं हर रोज सिंदूर न लगाएं, लेकिन तीज, करवा चौथ, पूजा-पाठ जैसे खास मौकों पर उनकी मांग में सिंदूर जरूर नजर आता है. यह न केवल एक विवाहित महिला की पहचान है, बल्कि उसके जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आस्था का प्रतीक भी है.

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07 May 2025, 02:07 PM IST

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