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'हमें इस पर गर्व है', एक ही महिला से शादी करने के बाद क्या बोले हिमाचल के दो भाई?

हिमाचल के सिरमौर में हट्टी जनजाति के दो भाइयों ने एक ही महिला से बहुपति प्रथा के तहत शादी की. यह परंपरा ट्रांस-गिरि क्षेत्र में आज भी सामाजिक रूप से मान्य है. विवाह आपसी सहमति से हुआ और ‘जोड़ीदारा’ नामक राजस्व कानून द्वारा मान्यता प्राप्त है. यह प्रथा पारिवारिक एकता और कृषि व्यवस्था से जुड़ी मानी जाती है.

Yaspal Singh
Edited By: Yaspal Singh

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई गांव में एक अनोखा विवाह समारोह देखने को मिला, जहां हट्टी जनजाति के दो भाइयों, प्रदीप और कपिल नेगी ने एक ही महिला सुनीता चौहान से विवाह किया. यह विवाह हिमाचल के ट्रांस-गिरि क्षेत्र में अब भी जीवित बहुपति (Polyandry) परंपरा के अनुसार संपन्न हुआ, जो विशेषकर हट्टी समुदाय में सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है.

आपसी सहमति से लिया गया निर्णय

प्रदीप नेगी ने मीडिया से बातचीत में बताया कि उन्होंने यह निर्णय पूरी पारदर्शिता और आपसी सहमति से लिया है. उन्होंने कहा, “यह हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा है और हमें इस पर गर्व है.” कपिल, जो विदेश में नौकरी करते हैं, ने कहा कि वे एक संयुक्त परिवार के रूप में अपनी पत्नी के लिए समर्थन और प्रेम सुनिश्चित करेंगे.

समारोह में उमड़ा जनसैलाब

यह तीन दिवसीय विवाह समारोह 12 जुलाई से शुरू हुआ, जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया. समारोह के दौरान स्थानीय लोकगीतों और पारंपरिक नृत्यों का प्रदर्शन किया गया. इस आयोजन के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए हैं, जिसे लेकर देशभर में बहस छिड़ गई है.

सुनीता की स्पष्ट सहमति

सुनीता चौहान ने बताया कि उन्हें इस प्रथा की जानकारी थी और उन्होंने अपनी स्वेच्छा से विवाह स्वीकार किया. उन्होंने कहा कि वह इस रिश्ते का सम्मान करती हैं और इसे सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारी के रूप में निभाना चाहती हैं. बता दें कि सुनीता सिरमौर के कुन्हाट गांव की रहने वाली हैं.

‘जोड़ीदारा’ को मिली कानूनी मान्यता

हिमाचल प्रदेश के राजस्व कानूनों में इस प्रकार की बहुपति शादियों को 'जोड़ीदारा' के नाम से मान्यता दी गई है. बधाना गांव में पिछले छह वर्षों में ऐसे कम से कम पाँच विवाह हो चुके हैं. हालांकि, शिक्षा, शहरीकरण और बदलते सामाजिक मूल्यों के चलते इस प्रथा का चलन धीरे-धीरे घट रहा है.

हट्टी समुदाय और परंपरा की जड़ें

हट्टी समुदाय, जिसे 2022 में अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला है, मुख्य रूप से हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर बसे गांवों में निवास करता है. ट्रांस-गिरि क्षेत्र में करीब 450 गांव हैं, जहां इस समुदाय के लगभग तीन लाख लोग रहते हैं.

सामूहिक सुरक्षा से जुड़ी परंपरा

हट्टी समिति के महासचिव कुंदन सिंह शास्त्री ने बताया कि यह प्रथा उन इलाकों में विकसित हुई जहां भौगोलिक अलगाव और संसाधनों की कमी थी. बहुपति विवाह से न केवल संयुक्त परिवार की एकता बनी रहती है, बल्कि यह कृषि भूमि के प्रबंधन और सुरक्षा के लिए भी कारगर मानी जाती है.

नजदीकी क्षेत्रों में भी रही प्रचलित

उत्तराखंड का जौनसार बाबर और हिमाचल का किन्नौर जैसे आदिवासी क्षेत्र भी कभी ऐसी ही परंपराओं का पालन करते थे. हालांकि अब वहां इसका चलन काफी कम हो गया है.

 

 

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20 July 2025, 04:45 PM IST

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