121 सीटें, 3.7 करोड़ वोटर्स, सीमांचल की लड़ाई...बिहार चुनाव के दूसरे चरण का पूरा समीकरण
दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर मतदान होगा. सीमांचल, मगध और तिरहुत में कड़ा मुकाबला है. जातीय समीकरण, मुस्लिम वोट और OBC फैक्टर परिणाम तय करेंगे. चुनाव निर्णायक मोड़ पर है.

पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है. दूसरे और आखिरी चरण की वोटिंग से पहले चुनावी सरगर्मी चरम पर है. रणनीतियां तय हो चुकी हैं, नेताओं के भाषण खत्म हो चुके हैं, सभी दल अब 48 घंटे की मौन अवधि में अपनी आखिरी तैयारियों को दुरुस्त करने में जुट गए हैं. मंगलवार को मतदान होगा और शुक्रवार को नतीजे सामने आएंगे. पहले चरण के रुझानों ने चुनावी समीकरणों को नया आयाम दिया है, जिसे ध्यान में रखकर सभी दल दूसरे चरण में बेहतर प्रदर्शन की कोशिश करेंगे.
दूसरे चरण का गणित
दूसरे चरण में 20 जिलों की 122 सीटों पर वोटिंग होगी. पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान हुआ था. इस बार 1,302 उम्मीदवार मैदान में हैं, जिनमें 136 महिलाएं शामिल हैं. कुल 3.70 करोड़ मतदाता अपने वोट डालेंगे, 1.95 करोड़ पुरुष और 1.74 करोड़ महिलाएं. इनके लिए 45,399 मतदान केंद्र बनाए गए हैं.
पिछले चुनाव 2020 में इन 122 सीटों पर भाजपा ने 42, आरजेडी ने 33, जदयू ने 20, कांग्रेस ने 11 और वाम दलों ने 5 सीटें जीती थीं. 2015 में जदयू-आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन मजबूत स्थिति में था और 80 सीटें जीतकर आगे रहा था.
क्षेत्रीय समीकरण
दूसरे चरण की सीटें बिहार के मध्य, पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में फैली हैं. तिरहुत, सारण और उत्तरी मिथिला भाजपा के पारंपरिक गढ़ रहे हैं. इनमें पूर्वी पश्चिमी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी और सारण शामिल हैं. वहीं जदयू की पकड़ भागलपुर क्षेत्र में मजबूत मानी जाती है.
दूसरी तरफ महागठबंधन का प्रभाव मगध क्षेत्र में गहरा है. गया, औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद और अरवल जिलों में राजद और उसके साथी पार्टनर बेहतर स्थिति में रहे हैं. कांग्रेस इस क्षेत्र में कमजोर है और अपने सहयोगियों पर निर्भर है.
सीमांचल में सियासी संग्राम
इस चरण का सबसे बड़ा केंद्र सीमांचल है. पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार की 24 सीटें राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मानी जाती हैं. सीमांचल में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी रहती है और यही वोट इस क्षेत्र में चुनाव का असली निर्णायक बन जाता है.
2020 में AIMIM ने पांच सीटें जीतकर सीमांचल में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराई थी, हालांकि बाद में उसके चार विधायक राजद में शामिल हो गए. भाजपा ने यहां आठ, जदयू ने चार, कांग्रेस ने पांच और राजद–वाम दलों ने एक-एक सीट जीती थी.
इस बार सीमांचल में सभी दलों ने आक्रामक कैंपेन चलाया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की रैलियों से लेकर राहुल गांधी की ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ तक हर पार्टी ने यहां पूरी ताकत झोंक दी है.
जातीय गणित की भूमिका
बिहार की सियासत में जातीय समीकरण हमेशा अहम रहे हैं. दूसरे चरण में 36 प्रतिशत की हिस्सेदारी वाला अति पिछड़ा वर्ग महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकता है. नीतीश कुमार की राजनीति में यह वर्ग अब तक गेम–चेंजर रहा है.
राहुल गांधी इस बार इस वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. एनडीए यादव वर्चस्व वाले वोट बैंक का मुकाबला करने के लिए गैर यादव ओबीसी पर फोकस कर रहा है. आरा, बक्सर और रोहतास में अनुसूचित जाति वोट भी कई सीटों पर जीत–हार तय करेंगे.
अंतिम मोड़ पर चुनाव
दूसरे चरण की वोटिंग से पहले सभी दलों ने पूरा जोर लगा दिया है. पहले चरण की ऐतिहासिक वोटिंग के बाद अब निगाहें इस चरण पर हैं. यह चरण तय करेगा कि बिहार की अगली सरकार किसकी होगी और किसकी रणनीति जनता के दिल तक पहुंची.


