BMC चुनाव में मराठी बनाम गैर-मराठी, पहली लिस्ट में BJP ने 70 तो कांग्रेस ने 41 % मराठी उम्मीदवारों को दी जगह
बीएमसी चुनाव 2026 से पहले मुंबई की राजनीति में मराठी बनाम गैर-मराठी की बहस फिर तेज हो गई है. उम्मीदवारों की पहली सूची से साफ है कि दलों ने पहचान और वोट बैंक को प्राथमिकता दी है. शिवसेना (उद्धव) ने मराठी चेहरे आगे किए हैं, जबकि बीजेपी संतुलन साध रही है. वहीं, कांग्रेस और एनसीपी...

महाराष्ट्र : मुंबई महानगरपालिका चुनाव 2026 की आहट के साथ ही सियासी माहौल गरमाने लगा है. जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे ‘मराठी बनाम गैर-मराठी’ की बहस एक बार फिर केंद्र में आ गई है. इस बार मुद्दा सिर्फ खराब सड़कों, जलभराव या शहरी विकास तक सीमित नहीं दिख रहा, बल्कि देश की सबसे समृद्ध नगर निगम की सत्ता की लड़ाई अब पहचान, भाषा और सांस्कृतिक अस्मिता के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है.
टिकट बंटवारे ने खोले सियासी इरादे
उद्धव ठाकरे की शिवसेना का मराठी एजेंडा
शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने एक बार फिर ‘मराठी मानुस’ के मुद्दे को मजबूती से सामने रखा है. पार्टी ने अपनी पहली सूची में अधिकांश टिकट मराठी पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को दिए हैं. यह कदम दर्शाता है कि उद्धव ठाकरे मुंबई में पारंपरिक वोट बैंक को एकजुट रखने और मराठी अस्मिता को चुनाव का प्रमुख आधार बनाने की रणनीति पर चल रहे हैं.
बीजेपी की संतुलित रणनीति
भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में अपेक्षाकृत संतुलन बनाने का प्रयास किया है. पार्टी ने मराठी उम्मीदवारों को प्राथमिकता देने के साथ-साथ अन्य समुदायों को भी प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है. इसका उद्देश्य मुंबई के विविध मतदाता वर्ग, खासकर मराठी और हिंदी भाषी मतदाताओं के बीच संतुलन बनाए रखना माना जा रहा है.
कांग्रेस और NCP की बदली चुनावी दिशा
कांग्रेस और एनसीपी ने इस बार अलग रणनीति अपनाई है. इन दलों ने गैर-मराठी और अल्पसंख्यक समुदायों को अधिक टिकट देकर यह संकेत दिया है कि वे मुंबई की प्रवासी और बहुभाषी आबादी को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों पार्टियां महानगर की कॉस्मोपॉलिटन पहचान को चुनावी मुद्दा बनाकर नए सियासी समीकरण गढ़ने में जुटी हैं.
पहचान की राजनीति में फंसा BMC चुनाव
कुल मिलाकर बीएमसी चुनाव 2026 अब केवल स्थानीय प्रशासन या विकास कार्यों की लड़ाई नहीं रह गया है. यह चुनाव मराठी अस्मिता, भाषाई पहचान और बदलते शहरी वोट बैंक की दिशा तय करने वाला बनता जा रहा है. आने वाले महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता विकास को प्राथमिकता देते हैं या पहचान की राजनीति एक बार फिर चुनावी नतीजों को प्रभावित करती है.


