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HC के तरीके में कुछ तो गड़बड़ है...करूर भगदड़ मामले में सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी

करूर भगदड़ में 41 मौतों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट की कार्यवाही पर यह कहते हुए गंभीर सवाल उठाए कि प्रक्रिया में गड़बड़ी दिखती है. अदालत ने पूछा कि चेन्नई बेंच ने मदुरै क्षेत्र का मामला क्यों लिया और बिना मांग के SIT क्यों बनाई.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

नई दिल्ली : करूर में हुए भीषण भगदड़ हादसे जिसमें विजय की पार्टी तमिलागा वेत्रि कझगम (TVK) के एक राजनीतिक कार्यक्रम के दौरान 41 लोगों की मौत हुई के बाद मद्रास हाई कोर्ट की कार्यवाही पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं. गुरुवार को सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने कहा कि जिस तरह हाई कोर्ट ने इस मामले को संभाला, उसमें “कुछ न कुछ गलत ज़रूर है.” यह टिप्पणी उस रिपोर्ट को देखने के बाद की गई जिसे उच्चतम न्यायालय ने अक्टूबर में मद्रास हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से मांगा था.

जुरिडिक्शन को लेकर SC की असहमति

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि करूर का मामला, जो सामान्यतः मदुरै बेंच के अधिकार क्षेत्र में आता है, चेन्नई बेंच ने कैसे अपने हाथ में ले लिया. रिपोर्ट में दिए गए स्पष्टीकरण की समीक्षा के बाद पीठ ने संकेत दिया कि प्रक्रिया का पालन सही प्रकार से नहीं हुआ लगता. अदालत का कहना था कि रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट एक ऐसी स्थिति की ओर इशारा करती है जो न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करती है.

SIT गठन से लेकर विरोधाभासी आदेशों तक...
सुप्रीम कोर्ट पहले ही इस बात पर चिंता जता चुका है कि हाई कोर्ट की चेन्नई बेंच ने एक ऐसे याचिका में, जिसमें सिर्फ राजनीतिक रैलियों के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे, पूरी तरह तमिलनाडु पुलिस के अधिकारियों वाली SIT क्यों बना दी. इसी बीच, उसी दिन मदुरै बेंच ने मामले को CBI को सौंपने से इनकार कर दिया, जिससे दोनों बेंचों के आदेश आपस में टकरा गए. शीर्ष अदालत ने कहा कि इन विरोधाभासी निर्णयों से न्यायिक प्रक्रिया में भ्रम की स्थिति पैदा हुई.

“गलत प्रथा हो तो बदलनी होगी”: न्यायमूर्ति माहेश्वरी
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पी. विल्सन ने दलील दी कि हाई कोर्ट उस विषय से जुड़े सभी मुद्दों पर आदेश देने की परंपरा रखता है. इस पर न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि कोई परंपरा गलत है, तो उसे जारी नहीं रखा जा सकता.

CBI जांच पर पुनर्विचार की मांग ठुकराई
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि 13 अक्टूबर के आदेश में संशोधन किया जाए, जिसमें CBI जांच की निगरानी के लिए पूर्व न्यायाधीश अजय रस्तोगी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति बनाने और समिति में शामिल होने वाले दो वरिष्ठ IPS अधिकारियों को “तमिलनाडु के मूल निवासी न होने” की शर्त रखी गई थी. इस शर्त को लेकर राजनीतिक विवाद भी भड़का था.हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस हिस्से को बदलने से इनकार कर दिया.

“हमें सुने बिना ही CBI को जांच दे दी गई”...
तमिलनाडु सरकार ने पिछले सप्ताह दाखिल अपने हलफ़नामे में आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन किया है, क्योंकि जांच को CBI को सौंपने का आदेश राज्य का पक्ष सुने बिना दे दिया गया. सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता TVK ने न तो CBI जांच की मांग की थी और न ही SIT पर कोई आपत्ति जताई थी, इसलिए जांच एजेंसी बदलने का कोई आधार ही नहीं था. हलफ़नामे में यह भी कहा गया कि किसी आरोपी—यहाँ TVK के महासचिव आधव अर्जुना—को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने खिलाफ होने वाली जांच के लिए एजेंसी चुन सके.

“गैर–मूल निवासी” शर्त पर संविधान उल्लंघन का आरोप
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को भी असंवैधानिक बताया जिसमें यह कहा गया था कि निगरानी समिति के IPS अधिकारी “तमिलनाडु के मूल निवासी नहीं” होने चाहिए. हलफ़नामे में कहा गया कि यह भेदभाव अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, क्योंकि किसी अधिकारी की जन्मभूमि के आधार पर उसकी निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाना उचित नहीं है. यही मुद्दा 15 अक्टूबर को तमिलनाडु विधानसभा में भी उठा, जहाँ मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने कहा कि सरकार इस शर्त के खिलाफ उचित कदम उठाएगी.

आयोग की कार्यवाही पर लगी रोक बरकरार
राज्य ने यह भी निवेदन किया कि न्यायमूर्ति अरुणा जगदीशन की अध्यक्षता वाले जांच आयोग की कार्यवाही पर लगी रोक हटाई जाए, क्योंकि आयोग केवल भविष्य के सुझाव देगा और CBI जांच में बाधा नहीं बनेगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने न रोक हटाई और न ही इस संदर्भ में कोई नया आदेश जारी किया.

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12 December 2025, 03:55 PM IST

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