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Sunday, 04 December 2022
ॐलोक आश्रम: 75 साल के बाद भी भारत इतना पीछे क्यों है? भाग-3
Saturday, 03 December 2022
ॐलोक आश्रम: 75 साल के बाद भी भारत इतना पीछे क्यों है? भाग-2
Friday, 02 December 2022
ॐलोक आश्रम: 75 साल के बाद भी भारत इतना पीछे क्यों है? भाग-1
हम अगर भारत का मूल्यांकन करें कि हमें आजाद हुए 75 साल हो गए हैं और हम विश्व में कहां खड़े हैं तो हमें इसके पहले की बहुत सारी परिस्थितियों को देखना पड़ेगा। 75 साल के पहले क्या स्थिति थी। 75 साल के पहले लगभग 100 साल तक अंग्रेजों ने हम पर राज किया।
Sunday, 27 November 2022
ॐलोक आश्रम: आसक्ति क्यों उत्पन्न होती है?
भगवदगीता में भगवान कृष्ण ने हमें जीवन जीने का तरीका बताया। जीवन को जीने के तरीके को बताते हुए भगवान कहते हैं कि हमें जीवन को इस तरह से जीना चाहिए कि नए कर्मों में आसक्ति न हो और जो पुराने कर्म हमने अर्जित किए हुए हैं वो धीरे-धीरे विगलित हो जाएं।
Saturday, 26 November 2022
ॐलोक आश्रम: 75 साल में आध्यात्म ने कितनी प्रगति की है? भाग-4
युवाओं को यही संदेश है कि जीवन में अगर ऊपर बढ़ना है आगे बढ़ना है तो सबसे पहले अपनी जड़ों से जुड़ें, अपने मूल्यों से जुड़ें अपने मूल्यों को पहचाने। अपनी सभ्यता-संस्कृति से जुड़ें। क्योंकि अगर पेड़ केवल ऊपर रहेगा उसकी जड़े गहरी नहीं होंगी तो कभी ऊपर नहीं जा सकता।
Wednesday, 23 November 2022
ॐलोक आश्रम: 75 साल में आध्यात्म ने कितनी प्रगति की है? भाग 1
भौतिकता और आध्यात्मिकता ये दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर कोई व्यक्ति भूखा है उसके पास खाने को कुछ नहीं है। बीमार है पर उसके पास इलाज का सामान नहीं है। किसी का बच्चा बीमार है। किसी के बच्चे की शिक्षा की व्यवस्था नहीं है। ऐसे व्यक्ति से हम उम्मीद नहीं कर सकते कि वो
Tuesday, 22 November 2022
ॐलोक आश्रम: मोक्ष की अवधारणा क्या है? भाग-3
ईश्वर संसार में कहीं बाहर नहीं है वहां जाकर उसे प्राप्त करना है। यह आत्मा ही ईश्वर है। ईश्वर का अंश होने के कारण ईश्वर है। ईश्वर होने के कारण ईश्वर है। जो कुछ भी इस संसार में वह ईश्वरीय है। वह ईश्वर का ही है वह ईश्वर ही है। जो कुछ भी संसार में है वो ईश्वर में ही अवस्थित है क्योंकि ईश्वर के अलावा किसी और का अस्तित्व नहीं।
Sunday, 20 November 2022
ॐलोक आश्रम: मोक्ष की अवधारणा क्या है? भाग-1
मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण, अर्हत ये ऐसे शब्द हैं जो सनातन परंपरा में ही मिलते हैं। जीवन का सर्वोत्कृष्ट सुख सर्वोत्कृष्ट आनंद जिस अवस्था में मिलता है, जिस अवस्था में व्यक्ति पहुंच जाता है। उस अवस्था में व्यक्ति का पहुंचना उसकी संकल्पना, उसको सच करके दिखाना।