
वो तवायफ जो अपने बिल्ली का बच्चा होने पर देती थी आलीशान पार्टी, अनोखा शौक पर लुटाती थी दौलत
आज हम आपको एक ऐसी मशहूर तवायफ के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी शोहरत के कई दिलचस्प और अनोखे किस्से हैं. लेकिन इनमें से एक किस्सा खासतौर पर उनकी बिल्ली से जुड़ा हुआ है. ये वो तवायफ हैं जिन्होंने अपनी मधुर आवाज से सबका दिल जीता. इतना ही नहीं इन्होंने भारतीय संगीत को लोकप्रियता भी दिलाई.

गौहर जान, भारतीय संगीत की दुनिया का वह सितारा, जिसने न केवल अपनी मधुर आवाज से सबका दिल जीता बल्कि शास्त्रीय संगीत को तवायफों के कोठों से आम घरों तक पहुंचाया. 6 भाषाओं में 600 से अधिक गाने रिकॉर्ड कर गौहर जान ने न सिर्फ भारतीय संगीत को लोकप्रियता दिलाई बल्कि अपनी आलीशान जीवनशैली और गायकी से अमर हो गई. उनकी शोहरत का आलम यह था कि वह एक रिकॉर्डिंग के लिए 3000 रुपये की फीस लेती थी.
भारत की पहली रिकॉर्डिंग ऑर्टिस्ट गौहर जान ने संगीत की दुनिया को नया आयाम दिया. किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में आयोजित दिल्ली दरबार में प्रस्तुति देकर वह रजवाड़ों और महफिलों की शान बन गई. लेकिन उनके जीवन की कहानी उतार-चढ़ाव और अनगिनत संघर्षों से भरी हुई है.
रिकॉर्डिंग की दुनिया की शुरुआत: "मैं गौहर जान हूं"
1902 में कलकत्ता के एक होटल में रिकॉर्डिंग का एक अस्थायी स्टूडियो बनाया गया. गौहर जान ने वहां अपनी पहली रिकॉर्डिंग दी और गाने के अंत में अपना परिचय देते हुए कहा, "मैं गौहर जान हूं." यह शब्द न केवल उनके नाम को अमर कर गए, बल्कि भारतीय संगीत को भी एक नई पहचान दी.
शाही दरबार में गूंजा उनका संगीत
1911 में दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम के सामने गाना गाने का अवसर गौहर जान को मिला. इस प्रस्तुति के बाद उनकी प्रसिद्धि ने नई ऊंचाइयां छू ली. रजवाड़ों और रियासतों में उन्हें बुलाने की होड़ मच गई. गौहर जान अपने भव्य जीवनशैली के लिए भी जानी जाती थी. उनकी बिल्ली ने जब बच्चे को जन्म दिया, तो उन्होंने 20,000 रुपये खर्च कर शानदार पार्टी दी. चार घोड़ों वाली बग्गी से घूमने और महंगी चीजों का शौक उनकी पहचान बन गई थी.
प्यार में मिली निराशा
अपनी लोकप्रियता के बावजूद, गौहर जान का निजी जीवन संघर्षों से भरा था. उन्होंने कई बार प्यार किया, लेकिन सच्चा साथी नहीं मिल सका. उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब उनके सेक्रेटरी अब्बास ने उन्हें धोखा दिया.
आखिरी समय में अकेली और बेसहारा
अपने अंतिम दिनों में गौहर जान आर्थिक संकट में थी. मैसूर के महाराजा ने उन्हें दरबारी संगीतकार के रूप में नियुक्त किया, लेकिन वह अपनी लड़ाई लड़ने की इच्छा खो चुकी थी. 17 जनवरी 1930 को उन्होंने मैसूर में अकेले दम तोड़ दिया. गौहर जान ने न केवल संगीत के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया, बल्कि उन्होंने उस दौर में महिलाओं के लिए नई मिसाल कायम की. आज भी उनकी आवाज और उपलब्धियां संगीतप्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं.