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भारत बना विश्व का सबसे बड़ा चावल उत्पादक, चीन का टूटा दशकों पुराना वर्चस्व

भारत ने चावल उत्पादन के क्षेत्र में इतिहास रच दिया है. दशकों से शीर्ष पर रहे चीन को पीछे छोड़ते हुए भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश बन गया है, जिससे वैश्विक कृषि संतुलन में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है.

Yogita Pandey
Edited By: Yogita Pandey

नई दिल्ली: भारत ने चावल उत्पादन के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए चीन को पीछे छोड़ दिया है. वर्षों तक वैश्विक चावल उत्पादन पर चीन के प्रभुत्व के बाद अब भारत दुनिया का नंबर-1 चावल उत्पादक देश बन गया है. यह उपलब्धि न केवल कृषि क्षेत्र के लिए गर्व की बात है, बल्कि भारत की वैश्विक खाद्य शक्ति के रूप में बढ़ती भूमिका को भी दर्शाती है.

अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) की दिसंबर 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का चावल उत्पादन 152 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, जबकि चीन का उत्पादन 146 मिलियन मीट्रिक टन रहा. इसके साथ ही वैश्विक चावल उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 28 प्रतिशत से अधिक हो गई है और भारत को अब ‘दुनिया का चावल बादशाह’ कहा जाने लगा है.

यूएसडीए की रिपोर्ट ने की भारत की ताजपोशी

अमेरिकी कृषि विभाग ने अपनी ताजा रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि भारत ने पहली बार चावल उत्पादन में चीन को पीछे छोड़ा है. लंबे समय से यह धारणा बनी हुई थी कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है, लेकिन नए आंकड़ों ने इस सोच को बदल दिया है.

प्राचीन परंपरा से वैश्विक नेतृत्व तक

भारत में चावल की खेती और खपत का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है. चावल की उत्पत्ति की चर्चा होते ही सबसे पहले भारत का नाम लिया जाता है. दुनिया में मौजूद लगभग 1.23 लाख चावल की किस्मों में से करीब 60 हजार किस्में अकेले भारत में पाई जाती हैं, जो इसकी जैव विविधता को दर्शाता है.
हालांकि, उत्पादन के मामले में भारत लंबे समय तक चीन से पीछे रहा, लेकिन अब यह अंतर समाप्त हो चुका है.

विदेश नीति का भी हथियार बना चावल

अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (IRRI) के दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह के अनुसार, भारत का दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक बनना एक बड़ी उपलब्धि है.
उनका कहना है कि भारतीय चावल आज 172 देशों में निर्यात किया जाता है और यह भारत की विदेश नीति का भी एक प्रभावी साधन बन चुका है.

चावल से अरबों की कमाई

वर्ष 2024-25 में भारत ने 4,50,840 करोड़ रुपये के कृषि उत्पादों का निर्यात किया, जिसमें अकेले चावल की हिस्सेदारी करीब 24 प्रतिशत रही.भारत ने बासमती और गैर-बासमती चावल के निर्यात से एक ही साल में 1,05,720 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित की, जो अर्थव्यवस्था में इसकी अहम भूमिका को दर्शाता है.

ताइवान का अहम योगदान और हरित क्रांति

आज जिस रिकॉर्ड उत्पादन पर भारत पहुंचा है, उसकी नींव 1960 के दशक में पड़ी थी. आजादी के समय भारत में चावल का उत्पादन केवल 20.58 मिलियन मीट्रिक टन था, जो 2025 तक बढ़कर 152 मिलियन मीट्रिक टन हो गया.
इस बदलाव में किसानों और वैज्ञानिकों के साथ-साथ ताइवान का भी अहम योगदान रहा.

उस दौर में भारत खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था और पारंपरिक लंबी डंठल वाली किस्मों से प्रति हेक्टेयर केवल 800 किलोग्राम उपज मिलती थी. ताइवान ने अपनी अर्ध-बौनी किस्म ताइचुंग नेटिव-1 (TN1) भारत को उपलब्ध कराई, जिसने हरित क्रांति की नींव रखी.

IR-8: 'चमत्कारी चावल' जिसने तस्वीर बदली

1968 में अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान द्वारा भारत में पेश की गई किस्म IR-8 ने उत्पादन में जबरदस्त उछाल ला दिया. इसकी असाधारण उपज के कारण इसे ‘चमत्कारी चावल’ कहा गया.
इसके बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने इन किस्मों का संकरण कर स्वदेशी किस्में विकसित कीं.

'जया' किस्म और स्वदेशी सफलता

ओडिशा में स्थानीय टी-141 किस्म को ताइचुंग नेटिव-1 के साथ मिलाकर ‘जया’ किस्म विकसित की गई, जो भारत की पहली स्वदेशी अर्ध-बौनी चावल किस्म बनी. इसके तने की लंबाई कम होने से फसल गिरने की समस्या घटी और उत्पादन में बड़ी बढ़ोतरी हुई. इसके बाद भारत ने चावल उत्पादन में पीछे मुड़कर नहीं देखा.

बासमती ने बढ़ाया भारत का वैश्विक रुतबा

भारत दुनिया का सबसे बड़ा बासमती चावल उत्पादक भी है. बासमती चावल का निर्यात 50,000 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच चुका है.पूसा बासमती-1121 दुनिया के सबसे लंबे चावल के दाने का रिकॉर्ड रखता है, जो पकने के बाद 15 से 22 मिमी तक लंबा हो जाता है. इसके अलावा, भारत की कम से कम 15 चावल किस्मों को GI टैग भी मिल चुका है.

अब भी चुनौती बाकी

हालांकि भारत उत्पादन और निर्यात में नंबर-1 बन चुका है, लेकिन प्रति हेक्टेयर उपज के मामले में वह अभी भी चीन से पीछे है.
जहां चीन में औसत उपज करीब 7,100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, वहीं भारत में यह आंकड़ा अभी कम है. यूएसडीए का अनुमान है कि 2025-26 तक भारत की औसत उपज 4,390 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक पहुंच सकती है, जो वैश्विक औसत से अब भी कम है.

विशेषज्ञों का मानना है कि पानी की अधिक खपत और उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती आने वाले वर्षों में भारत के लिए निर्णायक होगी.

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