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‘छावा’ मूवी रिव्यू: विकी कौशल की दमदार परफॉर्मेंस, लेकिन यहां रह गई कहानी अधूरी!  

Chhaava’ Movie Review: विकी कौशल स्टारर ‘छावा’ एक भव्य ऐतिहासिक फिल्म है, जिसमें छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन को दिखाया गया है. विकी ने अपने किरदार के लिए जबरदस्त मेहनत की है, जो उनकी दमदार एक्टिंग और एक्शन सीन्स में साफ नजर आता है. फिल्म के वॉर सीन्स शानदार हैं और सिनेमेटोग्राफी भी लाजवाब है.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

Chhaava’ Movie Review: विकी कौशल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘छावा’ सिनेमाघरों में दस्तक दे चुकी है और दर्शकों को ऐतिहासिक वीरता की झलक दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. छत्रपति संभाजी महाराज के किरदार में विकी ने जिस तरह से खुद को ढाला है, वो काबिले तारीफ है. स्क्रीन पर उनकी उपस्थिति इतनी दमदार है कि हर दृश्य में वह वीरता का एहसास कराते हैं. लेकिन, क्या यह फिल्म एक संपूर्ण ऐतिहासिक गाथा कहने में पूरी तरह सफल हुई?  

2 घंटे 41 मिनट की इस फिल्म में भव्य वॉर सीन्स, शानदार सिनेमेटोग्राफी और दमदार एक्शन दिखाया गया है. हालांकि, फिल्म में कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जो इसे एक मास्टरपीस बनने से रोकती हैं. आइए जानते हैं, ‘छावा’ में क्या बेहतरीन था और कहां यह फिल्म कुछ अधूरी सी रह गई.  

वॉर सीन्स में भव्यता, लेकिन दोहराव से घटी प्रभावशीलता  

इस फिल्म की सबसे बड़ी ताकत इसके एक्शन सीक्वेंस हैं. युद्ध के दृश्यों को जिस बारीकी और भव्यता से दिखाया गया है, वह तारीफ के लायक है. तलवारबाजी, घुड़सवारी, हथियारों का बेहतरीन इस्तेमाल और दमदार कोरियोग्राफी फिल्म की यूएसपी है. विकी कौशल ने इस किरदार के लिए जमकर मेहनत की है, जो उनके एक्शन में साफ झलकता है.  लेकिन, फिल्म में युद्ध के दृश्य जरूरत से ज्यादा बार दोहराए गए हैं, जिससे कई बार दर्शकों को थकान महसूस हो सकती है. अगर कुछ दृश्यों को छोटा किया जाता और कहानी पर ज्यादा फोकस दिया जाता, तो फिल्म का प्रभाव और गहरा हो सकता था.

संभाजी महाराज की कहानी में अधूरापन क्यों?  

फिल्म ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, लेकिन संभाजी महाराज के व्यक्तित्व की गहराई को पूरी तरह से नहीं उभारा गया. उनकी वीरता, संघर्ष और रणनीतियों को बखूबी दिखाया गया, लेकिन उनके व्यक्तिगत जीवन के पहलुओं को पूरी तरह से एक्सप्लोर नहीं किया गया.  

फिल्म देखते समय एक सवाल बार-बार उठता है. संभाजी के छावा बनने की कहानी पर उतना ध्यान क्यों नहीं दिया गया? दिव्या दत्ता के किरदार की छावा से नफरत क्यों थी? यह सवाल अधूरा सा लगता है. वहीं, रश्मिका मंदाना का किरदार भी सिर्फ मराठा महारानी बनने तक सीमित रह गया, उनके और संभाजी महाराज के रिश्ते में और गहराई दिखाई जाती तो दर्शकों से बेहतर कनेक्ट हो पाता.  

रश्मिका का किरदार  

रश्मिका मंदाना, जो महारानी येसुबाई का किरदार निभा रही हैं, उनकी अदाकारी अच्छी है, लेकिन कहीं न कहीं ‘पुष्पा’ की श्रीवल्ली का अक्स उनके किरदार में नजर आता है. एक मराठा महारानी के तौर पर उनका किरदार ताकतवर दिखता है, लेकिन उनके और संभाजी महाराज के बीच का प्यार, उनकी बॉन्डिंग उतनी गहराई से नहीं दिखाई गई.  

फिल्म में कुछ भावनात्मक दृश्य और जोड़े जाते, तो यह किरदार और भी प्रभावशाली हो सकता था. जब संभाजी महाराज को लोहे की सलाखों से प्रताड़ित किया जा रहा था, तब रानी येसुबाई के दर्द को और गहराई से दिखाया जा सकता था.  

औरंगज़ेब का किरदार अधूरा, उसके शासन का डर नहीं दिखा!  

इतिहास में औरंगज़ेब की छवि एक क्रूर शासक की रही है, लेकिन फिल्म में यह किरदार उतना प्रभावशाली नहीं लग रहा. उनकी बेटी के किरदार का महत्व स्पष्ट नहीं किया गया, जबकि ऐतिहासिक दृष्टि से मुगल शासन में राजकुमारियों का राजनीतिक हस्तक्षेप महत्वपूर्ण था. अगर इस पहलू को फिल्म में दिखाया जाता, तो मुगलों के शासन की एक अलग परत खुलती.  

क्या फिल्म ‘छावा’ एक बार देखने लायक है?  

बिल्कुल! विकी कौशल की शानदार परफॉर्मेंस, भव्य सिनेमेटोग्राफी, दमदार वॉर सीन्स और मराठा गौरव की झलक फिल्म को एक बेहतरीन विज़ुअल ट्रीट बनाती है. लेकिन, अगर फिल्म में किरदारों की गहराई पर थोड़ा और काम किया जाता, तो यह और भी यादगार बन सकती थी. फिर भी, अगर आप ऐतिहासिक फिल्मों और पीरियड ड्रामा के फैन हैं, तो यह फिल्म जरूर देखें. 

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23 February 2025, 10:18 AM IST

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