‘उदयपुर फाइल्स’ पर भड़का मुस्लिम संगठन, जमीयत उलेमा ने तीन हाईकोर्ट में दाखिल की याचिका
फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ के ट्रेलर रिलीज़ होते ही विवादों का सिलसिला शुरू हो गया है. मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि इस फिल्म के ज़रिए इस्लाम, देवबंद और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के लिए दिल्ली, मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में एक साथ याचिका दाखिल की है.

फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स’ का ट्रेलर रिलीज होते ही विवादों में घिर गया है. मुस्लिम संगठनों ने इसे एक समुदाय विशेष को बदनाम करने वाला बताया है और इस पर तुरंत प्रतिबंध लगाने की मांग की है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली, मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की गुहार लगाई है.
मौलाना मदनी का आरोप है कि इस फिल्म के जरिए इस्लाम, मुसलमानों और देवबंद जैसे धार्मिक शिक्षण संस्थानों की छवि को जानबूझकर धूमिल किया गया है. उन्होंने सेंसर बोर्ड पर अपने ही नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह फिल्म देश में सांप्रदायिक तनाव और नफरत फैलाने की सोची-समझी साजिश है.
फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा का विवादित बयान
फिल्म के ट्रेलर में नूपुर शर्मा के उस विवादित बयान को दिखाया गया है, जिसको लेकर पूरे देश में बवाल मच गया था और जिसके चलते बीजेपी ने उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया था. साथ ही ट्रेलर में देवबंद को कट्टरपंथ का गढ़ बताते हुए वहां के उलेमा के विरुद्ध कई तीखे संवाद दिखाए गए हैं. मुस्लिम संगठनों का कहना है कि ये बातें पूरी तरह भ्रामक हैं और इससे एक समुदाय के प्रति नफ़रत फैल सकती है.
मौलाना अरशद मदनी की तीन हाईकोर्टों में याचिका
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली, मुंबई और गुजरात हाईकोर्ट में संविधान की धारा 226 के तहत याचिकाएं दायर की हैं. इन याचिकाओं में केंद्र सरकार, सेंसर बोर्ड, जॉनी फायर फॉक्स मीडिया प्रा. लि. और एक्स कार्प्स को पक्षकार बनाया गया है. याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील फुज़ैल अय्यूबी द्वारा तैयार की गई है, जिसका डायरी नंबर है: E-4365978/2025.
मौलाना मदनी की प्रतिक्रिया
मौलाना मदनी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “यह फिल्म देश में अमन और सांप्रदायिक सौहार्द को आग लगाने के लिए बनाई गई है. इसके जरिए एक वर्ग विशेष, उसके उलेमा और धार्मिक शैक्षणिक संस्थानों की छवि को नुक़सान पहुंचाने की साजिश रची गई है.” उन्होंने सेंसर बोर्ड पर सवाल उठाते हुए कहा, “यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि इस फिल्म के पीछे कुछ ताकतें और लोग हैं जो एक विशेष समुदाय की छवि को खराब कर देश की बहुसंख्यक आबादी के बीच उनके खिलाफ जहर भरना चाहते हैं.”
“सेंसर बोर्ड बना सांप्रदायिक ताकतों की कठपुतली”
मौलाना ने कहा कि सेंसर बोर्ड ने फिल्म को पास कर सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 5B और 1991 की सार्वजनिक प्रदर्शन शर्तों का उल्लंघन किया है. “ऐसा लगता है कि सेंसर बोर्ड अब सांप्रदायिक शक्तियों के हाथों की कठपुतली बन गया है.”उन्होंने आगे कहा कि यह पहली बार नहीं है जब बोर्ड ने किसी विवादास्पद फिल्म को हरी झंडी दी है.
ट्रेलर में मौजूद संवेदनशील विषय और विवादास्पद दृश्य
फिल्म के 2 मिनट 53 सेकंड लंबे ट्रेलर में 'ज्ञानवापी मस्जिद' जैसे मामलों का उल्लेख है, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट और जिला अदालतों में विचाराधीन हैं. याचिका में कहा गया है कि ये विषय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 में दिए गए नागरिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. ट्रेलर के संवादों और दृश्यों को "मुस्लिम-विरोधी" बताया गया है, जिनसे देश के सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंच सकता है.