'लोकतंत्र के तीनों पिलर समान हैं, कोई और होता तो अनुच्छेद 142 लागू करता', CJI बीआर गवई ने क्यों कही ये बात
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने महाराष्ट्र दौरे के दौरान राज्य प्रशासन द्वारा स्वागत में प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि शीर्ष अधिकारियों की अनुपस्थिति संवैधानिक पदों के बीच सम्मान की कमी को दर्शाती है. गवई ने प्रोटोकॉल को महज औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र के स्तंभों के बीच आपसी सम्मान का प्रतीक बताया. उन्होंने अनुच्छेद 142 का हवाला देते हुए इसके महत्व को रेखांकित किया. गवई भारत के केवल दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश हैं.

भारत के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने महाराष्ट्र की हालिया यात्रा के दौरान राज्य प्रशासन द्वारा अपेक्षित सम्मान नहीं मिलने पर चिंता जताई है. रविवार को महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि जब वे पहली बार मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद मुंबई पहुंचे, तो राज्य सरकार के शीर्ष अधिकारी जैसे कि मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (DGP) या मुंबई पुलिस आयुक्त उनकी अगवानी के लिए मौजूद नहीं थे.
संवैधानिक पदों के बीच आपसी सम्मान ज़रूरी: गवई
मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने वक्तव्य में इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र के तीनों स्तंभ न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका को एक-दूसरे के प्रति सम्मान दिखाना चाहिए. उन्होंने कहा, “अगर महाराष्ट्र का एक नागरिक देश का मुख्य न्यायाधीश बनता है और वह पहली बार अपने गृह राज्य आता है, तो प्रोटोकॉल के तहत राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति अपेक्षित होती है. यदि उन्हें ऐसा उचित नहीं लगा, तो उन्हें इस पर विचार करना चाहिए.”
प्रोटोकॉल सिर्फ औपचारिकता नहीं, सम्मान का प्रतीक
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि प्रोटोकॉल केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह संवैधानिक पदों के बीच परस्पर सम्मान का प्रतीक है. उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक संस्था द्वारा दूसरी संस्था को दिया गया यह सम्मान लोकतंत्र की मर्यादा को बनाए रखता है. गवई ने इस विषय पर टिप्पणी करते हुए मजाकिया अंदाज़ में कहा, “अगर मेरी जगह कोई और होता, तो अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल करने पर विचार कर सकता था.”
अनुच्छेद 142 की संदर्भ में व्याख्या
मुख्य न्यायाधीश गवई ने अपने वक्तव्य में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 का ज़िक्र किया, जो सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह न्याय को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कोई भी आदेश दे सके. इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी भी पक्ष को बुलाने, कार्रवाई रोकने या निर्देश जारी करने का अधिकार रखता है. यह प्रावधान भारतीय न्यायपालिका की शक्ति का परिचायक है, जिसे मुख्य न्यायाधीश ने प्रतीकात्मक रूप में प्रयोग किया.
छोटे मुद्दे नहीं, पर जागरूकता जरूरी
गवई ने यह भी कहा कि वे ऐसे मामलों में सामान्यतः नहीं बोलते, लेकिन इस बार उन्होंने इसलिए ज़िक्र किया ताकि लोग जानें कि संवैधानिक पदों का सम्मान क्यों ज़रूरी है. उनके अनुसार, यह विषय छोटा हो सकता है, लेकिन इसका व्यापक असर लोकतांत्रिक ढांचे की स्थिरता पर पड़ता है.
दूसरी बार कोई दलित बना CJI
पिछले महीने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभालने वाले बीआर गवई इस पद पर आसीन होने वाले केवल दूसरे दलित हैं. इससे पहले न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन ने 2007 में यह पद संभाला था. गवई की नियुक्ति को सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.


