'देश को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी...' जब राजीव गांधी ने 1990 में आरक्षण प्रस्ताव का किया था विरोध
मोदी सरकार ने आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल करने का निर्णय लिया है, जिसे वंचित और पिछड़े वर्गों के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है. इस घोषणा के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे अपनी पार्टी की सफलता बताया. यह फैसला न सिर्फ वर्तमान राजनीतिक विमर्श को प्रभावित कर रहा है, बल्कि 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों पर हुए विवादों और राजनीतिक दलों के बदले रुख को भी नई रोशनी में ला रहा है.

नरेंद्र मोदी सरकार ने ऐलान किया है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े शामिल किए जाएंगे. इस निर्णय को समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. इस घोषणा के तुरंत बाद कांग्रेस नेता और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने दावा किया कि यह फैसला उनकी पार्टी के दबाव का नतीजा है.
जाति जनगणना का ऐलान और राजनीतिक पृष्ठभूमि
यह निर्णय पहलगाम आतंकी हमले के कुछ ही दिनों बाद आया है, जिसमें 25 पर्यटकों और एक कश्मीरी नागरिक की जान गई थी. इस घटना के बाद देश में सुरक्षा और सामाजिक न्याय के सवाल एक साथ उठ खड़े हुए हैं. जातिगत आंकड़े शामिल करने का फैसला सामाजिक संतुलन की दिशा में एक रणनीतिक प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
मंडल आयोग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जाति आधारित नीतियों की जड़ें 1978 में गठित मंडल आयोग तक जाती हैं. बीपी मंडल के नेतृत्व में इस आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की गई थी. यह रिपोर्ट कई सालों तक ठंडी पड़ी रही. जब 1990 में वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस सिफारिश को लागू कर देश में एक बड़ा राजनीतिक भूचाल ला दिया.
राजीव गांधी का विरोध और अब राहुल गांधी का समर्थन
विडंबना यह है कि उस समय विपक्ष में रहे राजीव गांधी ने मंडल आयोग की सिफारिशों का जोरदार विरोध किया था. उन्होंने 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा को सामने रखते हुए तर्क दिया कि आरक्षण से सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि वर्ग विभाजन को बढ़ावा मिलेगा. अब उनके बेटे राहुल गांधी उसी मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने का दावा कर रहे हैं. उन्होंने जाति आधारित जनगणना को ऐतिहासिक कदम बताया और कहा कि इससे हाशिए पर रहे वर्गों को वास्तविक प्रतिनिधित्व मिलेगा.
राजनीतिक दलों के बदले रुख
1990 में जिस भाजपा ने आरक्षण के साथ 'क्रीमी लेयर' की सीमा तय करने की मांग की थी, आज वही पार्टी जाति जनगणना की हिमायत कर रही है. कांग्रेस, जो कभी आरक्षण पर सवाल उठाती थी, अब उसे सामाजिक न्याय का औजार मान रही है. यह रुख बदलाव केवल राजनीतिक व्यावहारिकता की ओर इशारा करता है, न कि स्थायी वैचारिक प्रतिबद्धता की ओर.
जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार का फैसला भारत की राजनीति में एक नए मोड़ का संकेत है. भाजपा जहां इसे सामाजिक न्याय की दिशा में प्रतिबद्धता के रूप में पेश कर रही है, वहीं कांग्रेस इसे अपनी रणनीतिक जीत बता रही है. 1990 के दौर से 2025 तक, मुद्दे वही हैं, लेकिन दृष्टिकोण और दावे पूरी तरह बदल चुके हैं.


