महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे का दलित दांव, बाबा साहेब के पोते की पार्टी के साथ किया गठबंधन
महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ उस समय देखने को मिला जब उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे, लंबे अंतराल के बाद एक साथ मंच साझा करते नजर आए. करीब दो दशक से अधिक समय बाद दोनों नेताओं की यह एकजुटता राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का प्रमुख विषय बन गई है. बीते सप्ताह आयोजित एक साझा रैली में जब दोनों ने मंच पर एक-दूसरे का हाथ थामकर जनता के सामने एकता का प्रदर्शन किया, तो यह स्पष्ट संदेश गया कि अब वे अपने पुराने मतभेदों को भुलाकर फिर से साथ आ चुके हैं.

महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा मोड़ तब आया जब दो दशक से ज्यादा समय बाद उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे एक ही मंच पर दिखाई दिए. बीते सप्ताह दोनों नेताओं ने एक साझा रैली की, जिसमें मंच पर एक साथ हाथ उठाकर यह संदेश दिया कि वे अब फिर एक हो चुके हैं. इस एकता ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, खासकर शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के लिए यह संकेत काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. दरअसल, मराठी अस्मिता के जिस मुद्दे पर शिंदे राजनीति कर रहे थे, अब उसी मोर्चे पर ठाकरे बंधु एक साथ खड़े हो गए हैं, जिससे शिंदे की रणनीति को चुनौती मिलती दिख रही है.
दलित कार्ड खेलकर शिंदे का जवाबी वार
उद्धव और राज ठाकरे की एकता से बने दबाव के बीच एकनाथ शिंदे ने भी अपनी सियासी रणनीति को धार देने के लिए नया दांव चला है. उन्होंने दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश की है और इसी उद्देश्य से डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के पोते आनंदराज आंबेडकर की पार्टी रिपब्लिकन सेना से गठबंधन कर लिया है. यह घोषणा शिंदे और आंबेडकर ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में की. इस दौरान शिंदे ने कहा कि यह दो आंदोलनों की एकता है—एक तरफ बालासाहेब ठाकरे की विचारधारा वाली शिवसेना और दूसरी ओर डॉ. आंबेडकर की विचारधारा पर आधारित रिपब्लिकन सेना. शिंदे ने इसे ‘सड़क पर अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले दो संगठनों का एक होना’ बताया और इसे ‘खुश होने का दिन’ करार दिया.
दलित और मराठी एकता का नया समीकरण
शिंदे और आनंदराज आंबेडकर के बीच हुए इस गठबंधन को ‘शिवशक्ति और भीमशक्ति की एकता’ बताया जा रहा है. शिंदे का उद्देश्य अब सिर्फ मराठी अस्मिता को ही नहीं बल्कि दलित समुदाय के बीच अपनी स्वीकार्यता को भी मजबूत करने का है. यह गठबंधन विशेष रूप से आगामी नगर निगम और जिला परिषद चुनावों को ध्यान में रखते हुए किया गया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह सिर्फ एक वैचारिक मेल नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कदम भी है.
संविधान और आम आदमी का जिक्र
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एकनाथ शिंदे ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को लेकर भावुक बयान दिया. उन्होंने कहा कि वे खुद मुख्यमंत्री बन पाए, यह आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान की देन है. उन्होंने यह भी कहा कि आज नरेंद्र मोदी जैसे व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री हैं, तो इसका श्रेय भी उस संविधान को जाता है जिसने हर वर्ग को समान अवसर देने का मार्ग प्रशस्त किया. शिंदे ने खुद को आम आदमी बताते हुए कहा कि जब वह मुख्यमंत्री थे तब भी आम नागरिकों की तरह ही काम करते थे और अब उपमुख्यमंत्री के तौर पर भी उनकी प्राथमिकता आम जनता की सेवा है.
प्रकाश आंबेडकर की अलग राह
गौरतलब है कि भीमराव आंबेडकर के एक और पोते, प्रकाश आंबेडकर, भी सक्रिय राजनीति में हैं, लेकिन उनका राजनीतिक संगठन अलग है. उनकी पार्टी का नाम है बहुजन वंचित अघाड़ी, जो रिपब्लिकन सेना से भिन्न विचारधारा और रणनीति अपनाती है. इससे महाराष्ट्र की दलित राजनीति में एक तरह की प्रतिस्पर्धा भी दिखाई देती है, जहां अब दो आंबेडकर परिवार के सदस्य अलग-अलग राजनीतिक गठजोड़ों के साथ मैदान में हैं.
राजनीतिक परिदृश्य में नई हलचल
एक ओर ठाकरे बंधुओं की एकता मराठी अस्मिता को केंद्र में लाने का प्रयास है, वहीं दूसरी ओर एकनाथ शिंदे का यह नया गठबंधन मराठी और दलित राजनीति को मिलाकर एक नया समीकरण बनाने की कोशिश है. अब देखना यह है कि यह सियासी संतुलन किस ओर झुकेगा क्या ठाकरे बंधुओं की मराठी एकता ज्यादा प्रभावी सिद्ध होगी या फिर शिंदे की दलित-मराठी साझेदारी चुनावी गणित में भारी पड़ेगी?


