जब पाकिस्तान की मक्कारी का भारतीय सेना ने दिया मुंहतोड़ जवाब, आज भी है यादगार
1999 का कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक घटना के रूप में याद किया जाता है, जब पाकिस्तान ने शांति वार्ता के बावजूद भारत के खिलाफ साजिश रच दी थी.

भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में हुआ कारगिल युद्ध आज भी इतिहास के पन्नों में एक ऐसे पल के रूप में दर्ज है, जब पाकिस्तान की मक्कारी का भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया. उस समय भारत दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा था, लेकिन पाकिस्तान ने पीठ में छुरा घोंपने में कोई कसर नहीं छोड़ी. और जब भारतीय सेना ने जवाब दिया, तो बोफोर्स तोपों की गरज से दुश्मन के मंसूबे ध्वस्त हो गए.
आज जब पाकिस्तान फिर से अपनी हरकतों पर उतर आया है तो देश को एक बार फिर 1999 की उस विजय की याद दिलाना जरूरी हो गया है, जब भारत ने साबित किया था कि अगर कोई उसकी सरहदों की तरफ आंख उठाकर देखेगा, तो जवाब सिर्फ शब्दों में नहीं, हथियारों से दिया जाएगा.
पाकिस्तान की नापाक साजिश
1999 की शुरुआत में जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ शांति वार्ता की पहल कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना और आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के कारगिल सेक्टर में ऊंचाई वाले भारतीय पोस्टों पर कब्जा करने की साजिश रच डाली. फरवरी से ही घुसपैठ शुरू हो चुकी थी, जिसका पता मई में चरवाहों के जरिए चला.
जब भारतीय सेना को सच्चाई का अंदेशा हुआ, तो यह साफ हो गया कि यह सिर्फ आतंकियों की करतूत नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सेना और पैरा मिलिट्री की सोची-समझी साजिश थी.
भारत की निर्णायक रणनीति
10 मई 1999 को भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' की शुरुआत की. करीब 40,000 जवानों ने द्रास, बटालिक और कारगिल सेक्टर में मोर्चा संभाला. दुश्मन की हर चाल को जवाब देने के लिए भारतीय वायुसेना भी मैदान में उतरी—26 मई से मिग-21, मिग-27 और मिराज-2000 जैसे लड़ाकू विमानों ने दुश्मन के ठिकानों पर अचूक हमले किए.
बोफोर्स तोपों की गूंज ने बदल दिया युद्ध का रुख
कारगिल की बर्फीली ऊंचाइयों पर छिपे पाकिस्तानी सैनिकों को बाहर निकालना आसान नहीं था. यहां बोफोर्स तोपों ने अहम भूमिका निभाई. इन स्वीडिश तोपों ने 155 mm के गोले दागकर दुश्मन के ठिकानों को तहस-नहस कर दिया. इन्हीं की मदद से भारतीय जवानों ने दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ाई कर टोलोलिंग (13 जून) और टाइगर हिल (4 जुलाई) पर फिर से तिरंगा फहराया.
नवाज शरीफ ने लिया अमेरिका का सहारा
भारत की आक्रामक कार्रवाई और युद्ध में लगातार हार को देखते हुए नवाज शरीफ को 11 जुलाई को अमेरिका की मदद लेनी पड़ी. उन्होंने एकतरफा सीजफायर की घोषणा कर दी और अपनी सेना को पीछे हटने का आदेश दिया. हालांकि, कुछ पाकिस्तानी दस्ते तब भी लड़ाई पर अड़े रहे. आखिरकार,26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने पूरे कारगिल क्षेत्र को पाकिस्तानी घुसपैठियों से मुक्त कर दिया. इसी दिन को हर साल 'कारगिल विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है.
आज फिर वही चेतावनी
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले और पाकिस्तान की तरफ से दी गई युद्ध की धमकी के बाद भारत एक बार फिर पूरी तैयारी में है. अगर दुश्मन फिर से कोई नापाक हरकत करता है, तो इस बार अंजाम 1999 से भी ज्यादा बुरा होगा.


