2 नेता, 2 आंदोलन: नेपाल 2025 और बांग्लादेश 2024 के बीच क्या हैं समानताएं
नेपाल और बांग्लादेश में युवाओं की अगुवाई में हुए जनआंदोलनों ने सत्ता परिवर्तन कर दिया. शेख हसीना और केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा. आरक्षण नीति, सोशल मीडिया प्रतिबंध, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद विरोध का कारण बने. दमन और मौतों के बावजूद आंदोलनों ने जोर पकड़ा, जिससे युवाशक्ति का असर साफ दिखा.

भारत के पड़ोसी देशों नेपाल और बांग्लादेश इन दिनों गहरी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहे हैं. हाल ही में नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दिया. इससे पहले बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी सत्ता छोड़नी पड़ी. दोनों देशों में हुए ये आंदोलन युवाओं की अगुवाई में सत्ता परिवर्तन का कारण बने.
क्रांति की जननी पार्टी सत्ता से बेदखल
शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग खुद जन आक्रोश का शिकार बनी. छात्रों और युवाओं ने सरकार पर निरंकुश रवैये और भेदभावपूर्ण नीतियों का आरोप लगाया. "स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन" नामक छात्र संगठन ने आंदोलन का नेतृत्व किया. विरोध का केंद्र आरक्षण नीति थी, जिसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को सरकारी नौकरियों और अवसरों में प्राथमिकता दी जाती थी. नई पीढ़ी ने इसे अन्यायपूर्ण माना और विरोध तेज कर दिया. सरकारी दमन में 1,500 से अधिक प्रदर्शनकारी मारे गए, लेकिन आंदोलन थमा नहीं. आखिरकार शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा.
सोशल मीडिया प्रतिबंध से उठी लहर
नेपाल में विरोध की शुरुआत सोशल मीडिया बैन के खिलाफ हुई. जेनरेशन जेड ने आंदोलन का नेतृत्व किया और जल्द ही यह भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ बड़े जनआंदोलन में बदल गया.
प्रदर्शनकारियों ने नेताओं पर नेपोकिड्स (Nepokids) यानी सत्ताधारियों के बच्चों और रिश्तेदारों को सत्ता और पदों पर तरजीह देने का आरोप लगाया. आम जनता ने महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया. पुलिस और सेना की गोलीबारी में 19 लोगों की जान गई, लेकिन यह दमन भी आंदोलन को रोक नहीं पाया. नतीजतन, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा.
युवाओं की निर्णायक भूमिका
दोनों ही देशों में आंदोलनों की कमान युवाओं ने संभाली. बांग्लादेश में छात्र संगठनों ने शासन की नीतियों को चुनौती दी, जबकि नेपाल में सोशल मीडिया की नई पीढ़ी सड़कों पर उतर आई. यह स्पष्ट हो गया कि युवा शक्ति अब दक्षिण एशिया की राजनीति का सबसे बड़ा बदलावकारी कारक है.
क्रूर बल से नहीं थमा आक्रोश
बांग्लादेश और नेपाल की सरकारों ने आंदोलनकारियों पर कठोर कार्रवाई की, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई. लेकिन इन मौतों ने आंदोलनों को और तेज कर दिया. ढाका में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर धावा बोल दिया, जबकि काठमांडू में सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया गया. अंततः दोनों प्रधानमंत्रियों को पद छोड़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं मिला.


