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बलूचिस्तान में नया खेल शुरू...लश्कर-ए-तैयबा और ISIS-K ने मिलाया हाथ, क्षेत्रीय शांति पर मंडराया खतरा

ISI-supported terrorism : पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा और आईएसके के बीच खतरनाक आतंकी गठबंधन सामने आया है, जिसे आईएसआई का समर्थन प्राप्त है. बलूचिस्तान में इनका निशाना बलूच विद्रोही और अफगान तालिबान के असहयोगी गुट हैं. हाल ही में लीक तस्वीरों और घटनाओं से इस साजिश का खुलासा हुआ है. यह गठबंधन न केवल क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है, बल्कि भारत और अफगानिस्तान के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौती भी बन सकता है.

Utsav Singh
Edited By: Utsav Singh

ISI-supported terrorism : पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई लंबे समय से आतंकवादी गुटों को अपने रणनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती रही है. अब बलूचिस्तान से एक नया खतरा सामने आया है – लश्कर-ए-तैयबा और इस्लामिक स्टेट खोरासान प्रांत (आईएसके) का गठबंधन. इस गठबंधन का उद्देश्य है बलूच अलगाववादियों और अफगान तालिबान के उन गुटों को निशाना बनाना, जो इस्लामाबाद के नियंत्रण से बाहर हैं. यह एक छद्म युद्ध की शुरुआत मानी जा रही है, जिसे आईएसआई अपने संरक्षण में अंजाम दे रही है.

तस्वीरों ने खोली साजिश की परतें

हाल ही में लीक हुई एक तस्वीर ने इस गठबंधन की सच्चाई को उजागर कर दिया है. फोटो में आईएसके के बलूचिस्तान समन्वयक मीर शफीक मेंगल, लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर राणा मोहम्मद अशफाक को पिस्तौल भेंट करते नजर आते हैं. यह प्रतीकात्मक दृश्य, आतंक के गठबंधन की औपचारिकता को दिखाता है. राणा अशफाक लश्कर के विस्तार में लगा हुआ है और नए ट्रेनिंग सेंटर खोल रहा है, वहीं मीर शफीक मेंगल आईएसआई का पुराना एजेंट है, जो लंबे समय से बलूच राष्ट्रवादियों पर हमलों में शामिल रहा है.

मेंगल: आतंक का पुराना चेहरा
मीर शफीक मेंगल कोई नया चेहरा नहीं है. वह पूर्व केयरटेकर मुख्यमंत्री नासिर मेंगल का बेटा है और 2010 से ही एक निजी किलर स्क्वॉड चला रहा है, जो बलूच नेताओं की हत्याओं में लिप्त रहा है. 2015 से वह आईएसके के लिए सुरक्षित घर, हथियार और फंडिंग की व्यवस्था करता आ रहा है. पाकिस्तान की जॉइंट इन्वेस्टिगेशन टीम की रिपोर्टों में भी उसका नाम प्रमुखता से दर्ज है.

आईएसआई की "आतंकी फैक्ट्री"
आईएसआई ने 2018 तक बलूचिस्तान में दो बड़े आईएसके कैंप – मस्तुंग और खुजदार – स्थापित किए. मस्तुंग कैंप का प्रयोग बलूच विद्रोहियों के खिलाफ, जबकि खुजदार का उपयोग अफगान सीमा पार अभियानों के लिए किया जा रहा है. 2023 में अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद आईएसआई ने इस गठबंधन को पुनः सक्रिय किया और लश्कर को भी इसमें जोड़ा गया.

मार्च 2025: गठबंधन का औपचारिक आरंभ
मार्च 2025 में बलूच विद्रोहियों ने मस्तुंग कैंप पर बड़ा हमला किया, जिसमें 30 आतंकी मारे गए. इसके बाद आईएसआई ने लश्कर-ए-तैयबा को मैदान में उतारा. जून 2025 में राणा अशफाक बलूचिस्तान पहुंचे और सैफुल्लाह कसूरी ने 'जिरगा' बुलाया, जिसमें बलूच अलगाववादियों के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया गया. इस मुलाकात के बाद मेंगल और अशफाक की फोटो सामने आई, जो इस गठबंधन की पुष्टि करती है.

लश्कर की पुरानी मौजूदगी
बलूचिस्तान में लश्कर की उपस्थिति नई नहीं है. क्वेट्टा में ‘मर्कज ताकवा’ नामक ट्रेनिंग कैंप 2002 से 2009 तक सक्रिय रहा, जिसमें अफगान जिहाद से लौटे लड़ाके प्रशिक्षण देते थे. यासीन भटकल जैसे आतंकी भी यहीं से प्रशिक्षित हुए. अब वही नेटवर्क नए चेहरे और गठबंधन के साथ फिर सक्रिय होता दिखाई दे रहा है.

दक्षिण एशिया की शांति के लिए बड़ा खतरा
इस नए आतंकी गठबंधन ने अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और भारत के कश्मीर क्षेत्र की शांति को गंभीर खतरे में डाल दिया है. पाकिस्तान, दुनिया को दिखाने के लिए आईएसके को ‘दाएश’ के रूप में पेश करता है, लेकिन पर्दे के पीछे उसका उपयोग अपने भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए कर रहा है. यह पूरा अभियान ‘प्लॉज़िबल डिनायबिलिटी’ के सिद्धांत पर आधारित है, जिससे पाकिस्तान कभी भी अपनी भूमिका से इनकार कर सके. अब भारत और अफगानिस्तान के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे इस उभरते गठबंधन और आईएसआई की गुप्त गतिविधियों को लेकर सतर्क रहें. यदि समय रहते कार्रवाई नहीं की गई, तो यह आतंकी गठजोड़ पूरे दक्षिण एशिया को एक बार फिर हिंसा और अस्थिरता की आग में झोंक सकता है.

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07 October 2025, 05:04 PM IST

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