अमेरिकी बिल के बीच भारत ने दिखाया दम, रूस बना नंबर 1 तेल सप्लायर
भारत अपनी 88% कच्चे तेल की जरूरत आयात से पूरी करता है, और बीते तीन वर्षों से रूस उसका प्रमुख सप्लायर बन गया है. 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बीच रूस ने छूट दी, जिससे भारतीय रिफाइनरों ने बड़े पैमाने पर रूसी तेल खरीदा.

अमेरिका में प्रस्तावित एक विधेयक ने वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में हलचल मचा दी है. यह बिल उन देशों पर 500 फीसदी तक टैरिफ लगाने की बात करता है, जो अब भी रूसी तेल का आयात कर रहे हैं. इसका मकसद रूस के तेल निर्यात को रोकना और यूक्रेन के खिलाफ जारी युद्ध के संसाधनों को सीमित करना है. इस कानून को लेकर भारत में खासा चर्चा है, क्योंकि भारत इस वक्त रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है. जून 2025 में भारत का रूसी कच्चे तेल आयात 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया, जो कुल तेल आयात का 43.2 फीसदी है.
भारत ने साफ कर दिया है कि वह केवल सस्ते और विश्वसनीय स्रोत से ही तेल खरीदेगा, भले ही वह रूस हो या कोई और. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी वाशिंगटन में स्पष्ट कहा कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं करेगा और इस मसले पर अमेरिकी सांसदों से चर्चा की गई है. यह बयान ऐसे समय आया है जब बिल के प्रमुख प्रस्तावक, रिपब्लिकन सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने कहा कि ट्रंप ने उन्हें जुलाई के बाद विधेयक को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है.
अमेरिका के दबाव में नहीं झुकेगा भारत
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह विधेयक कानून बनता है, तो भारत को रूसी तेल खरीद घटाकर पश्चिम एशिया या अन्य स्रोतों से आयात बढ़ाना पड़ सकता है. इससे तेल की लागत बढ़ सकती है और अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता भी प्रभावित हो सकती है. फिलहाल भारतीय रिफाइनर 'वेट एंड वॉच' की नीति अपना रहे हैं.
रूस से तेल खरीद जारी
रूसी तेल की लोकप्रियता का बड़ा कारण उसकी प्रतिस्पर्धी कीमत और लचीली लॉजिस्टिक्स है. जून में भारत ने रूस से 2.08 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल खरीदा, जो जुलाई 2024 के बाद सबसे ज्यादा है. वहीं, इराक से 893,000 बीपीडी, सऊदी से 581,000 बीपीडी और यूएई से 490,000 बीपीडी आयात किया गया. अमेरिका छठे स्थान पर रहा.
अमेरिकी बिल के बीच भारत ने दिखाया दम
भविष्य में भारत तेल आपूर्ति को विविध बनाते हुए अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और अमेरिका से सीमित मात्रा में खरीद बढ़ा सकता है, लेकिन अमेरिकी तेल अभी भी महंगा और लॉजिस्टिक रूप से चुनौतीपूर्ण है. ऐसे में, जब तक कोई बड़ा भू-राजनीतिक परिवर्तन नहीं होता, भारत और रूस के बीच तेल व्यापार निकट भविष्य में जारी रहने की संभावना है.


