शी जिनपिंग से मिले नेपाली PM केपी शर्मा ओली, उठाया लेपुलेख का मुद्दा...पर बीजिंग ने पलट दी कहानी
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात के दौरान लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत-चीन व्यापार पर आपत्ति जताई, इसे नेपाल का हिस्सा बताया. हालांकि, चीनी सरकार के आधिकारिक रीडआउट में इस मुद्दे का कोई उल्लेख नहीं किया गया. इससे नेपाल को कूटनीतिक झटका लगा है, जबकि चीन ने केवल सामान्य सहयोग और नीतिगत समर्थन की बातें उजागर कीं.

KP Sharma Oli China visit: नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली इन दिनों चीन की यात्रा पर हैं, जहाँ वे तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन 2025 में 'डायलॉग पार्टनर' के रूप में हिस्सा ले रहे हैं. 30 अगस्त को उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की, जिसमें कई मुद्दों पर चर्चा हुई. सबसे अहम मुद्दा था लिपुलेख दर्रे के माध्यम से भारत और चीन के बीच हो रहे सीमा व्यापार पर नेपाल की आपत्ति.
लिपुलेख को नेपाल का हिस्सा बताते हुए जताई आपत्ति
चीन ने रीडआउट में नहीं किया लिपुलेख का जिक्र
हालांकि इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर चीन की प्रतिक्रिया चौंकाने वाली रही. चीनी विदेश मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक रीडआउट में लिपुलेख विवाद का कोई उल्लेख तक नहीं किया गया. इसके बजाय बैठक में केवल सामान्य राजनयिक चर्चाओं और सहयोग की बातों को शामिल किया गया. इससे संकेत मिलता है कि चीन ने जानबूझकर नेपाल की आपत्ति को नजरअंदाज कर दिया, जिससे ओली को कूटनीतिक झटका लगा है.
चीन के साथ रिश्तों को लेकर ओली का सकारात्मक रुख
चीनी रीडआउट के अनुसार, प्रधानमंत्री ओली ने बैठक में चीन के साथ संबंधों की सराहना की. उन्होंने कहा कि नेपाल और चीन ने हमेशा एक-दूसरे के हितों का सम्मान किया है और विश्वास का रिश्ता बनाए रखा है. उन्होंने ‘वन चाइना पॉलिसी’ का समर्थन करते हुए ताइवान की स्वतंत्रता का विरोध भी किया और आश्वासन दिया कि नेपाल की धरती का इस्तेमाल चीन के खिलाफ किसी भी गतिविधि के लिए नहीं होने दिया जाएगा.
ओली ने किया BRI समेत कई चीनी पहलों का समर्थन
बैठक के दौरान ओली ने चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव, ग्लोबल सिक्योरिटी इनिशिएटिव और ग्लोबल सिविलाइजेशन इनिशिएटिव का समर्थन करने की बात कही. उन्होंने उम्मीद जताई कि इन पहलों के तहत नेपाल और चीन के बीच सहयोग और मजबूत होगा. हालांकि, इन तमाम कूटनीतिक विनम्रताओं के बीच लिपुलेख विवाद का चीनी दस्तावेज़ों से गायब होना, नेपाली राजनीति में सवाल खड़े कर रहा है.
नेपाल की आवाज अनसुनी, चीन की चुप्पी से बढ़ी बेचैनी
प्रधानमंत्री ओली की चीन यात्रा का उद्देश्य केवल सहयोग बढ़ाना ही नहीं, बल्कि विवादित लिपुलेख मुद्दे को ज़ोर देकर उठाना भी था. लेकिन चीन द्वारा इसे रीडआउट से पूरी तरह बाहर रखना, यह दर्शाता है कि बीजिंग इस विषय पर कोई सार्वजनिक रुख अपनाने से बच रहा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि नेपाल इस कूटनीतिक अनदेखी पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देता है.


