ये तो बिल्कुल रूस जैसी सोच... क्रेमलिन ने ट्रंप की नई सुरक्षा रणनीति का किया समर्थन
रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का स्वागत किया है. मॉस्को ने कहा कि यह नीति क्रेमलिन के विचारों से मेल खाती है. ठंडी जंग खत्म होने के बाद अमेरिका के किसी सुरक्षा डॉक्यूमेंट को रूस ने इतनी खुलकर और इतने जोश के साथ सराहा नहीं था ये अब तक का सबसे बड़ा ग्रीन सिग्नल है.

नई दिल्ली: रूस ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का स्वागत किया है और कहा है कि यह डॉक्यूमेंट कई मायनों में क्रेमलिन के विचारों से मेल खाता है. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यह पहली बार है जब मॉस्को ने किसी अमेरिकी रणनीति डॉक्यूमेंट की इतनी खुलकर प्रशंसा की है.
इस रणनीति में ट्रंप की फ्लेक्सिबल रियलिज़्म की अवधारणा को प्रमुखता दी गई है और मोनरो डॉक्ट्रिन को पुनर्जीवित करने का संकेत दिया गया है, जो पश्चिमी गोलार्ध को अमेरिकी प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखता है. रणनीति में यूरोप के सभ्यतागत विघटन की चेतावनी दी गई है, वहीं यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने हेतु वार्ता को अमेरिका का मुख्य हित बताया गया है. रणनीति में यह भी कहा गया है कि वाशिंगटन रूस के साथ रणनीतिक स्थिरता बहाल करना चाहता है. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने सरकारी टीवी पत्रकार पावेल जारूबिन से कहा कि डॉक्यूमेंट में जो बदलाव हमें दिखते हैं, वे कई मायनों में हमारी दृष्टि से मेल खाते हैं.
ट्रंप की रणनीति को रूस ने बताया...
अमेरिकी रणनीति में नाटो के लगातार विस्तार की धारणा और वास्तविकता, दोनों को समाप्त करने की बात कही गई है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए पेस्कोव ने कहा कि यह रुख क्रेमलिन को उत्साहजनक लगा. उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अमेरिकी डीप स्टेट की सोच ट्रंप से अलग है. ट्रंप कई बार कह चुके हैं कि लंबे समय से नीति निर्धारण प्रणाली में मौजूद अधिकारी उन नेताओं को चुनौती देते हैं जो पुराने ढर्रे को बदलने की कोशिश करते हैं. 2014 में क्रीमिया के रूस द्वारा कब्जे और 2022 में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद से अमेरिकी सुरक्षा रणनीतियाँ रूस को एक अस्थिर करने वाली शक्ति के रूप में पेश करती रही हैं. लेकिन मीडिया से बातचीत में पेस्कोव ने कहा कि रूस को सीधे खतरे के रूप में दिखाने के बजाय रणनीतिक स्थिरता पर सहयोग की बात करना एक सकारात्मक बदलाव है.
इंडो-पैसिफिक को बड़ा भू-राजनीतिक संघर्ष क्षेत्र बताया
रणनीति में इंडो-पैसिफिक को आर्थिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रमुख केंद्र बताया गया है. दस्तावेज के अनुसार, अमेरिका और उसके सहयोगी चीन के साथ ताइवान को लेकर संभावित संघर्ष रोकने के लिए अपनी सैन्य क्षमताओं को मजबूत करेंगे. रूस, जिस पर यूक्रेन युद्ध के कारण कड़े प्रतिबंध लगे हैं, ने यूरोप द्वारा रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने के बाद चीन के साथ अपने कूटनीतिक संबंध मजबूत किए हैं.
मार्च में मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में ट्रंप ने कहा था कि इतिहास के एक छात्र के रूप में, जो कि मैं हूं और मैंने यह सब देखा है. पहली बात जो आप सीखते हैं वह यह है कि आप नहीं चाहते कि रूस और चीन एक साथ हों.
अमेरिका-रूस
वैश्विक मुद्दों पर वाशिंगटन और मॉस्को का इस तरह का सामंजस्य बेहद असामान्य है. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद दोनों देशों ने पूर्व सोवियत गणराज्यों से परमाणु हथियार रूस वापस लाने में सहयोग किया था. 11 सितंबर 2001 के हमलों के बाद भी दोनों देशों ने संक्षिप्त समय के लिए तालमेल दिखाया था.
शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ अमेरिका को ढहती हुई पूंजीवादी शक्ति बताता था, जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने USSR को evil empire कहा था. 1991 के बाद दोनों देशों के बीच साझेदारी की उम्मीद तो जगी, लेकिन 1990 के दशक में नाटो विस्तार के लिए अमेरिकी समर्थन से तनाव बढ़ा. 1999 में व्लादिमीर पुतिन के सत्ता में आने के बाद यह तनाव और गहराया.


