छठ महापर्व का आज से ‘नहाय-खाय’, जानें इस दिन का महत्व और कद्दू-भात की विशेषता
आज, 25 अक्टूबर से छठ महापर्व की धूमधाम शुरू हो रही है, जो सूर्य उपासना और अटूट आस्था का अनमोल संगम है. इस पर्व का पहला दिन, जिसे नहाय-खाय कहते हैं, उत्साह और पवित्रता का प्रतीक है. इस दिन व्रती महिलाएं बड़े उत्साह के साथ व्रत की शुरुआत करती हैं, नहा-धोकर और नियमों का पालन करते हुए.

नई दिल्ली: छठ महापर्व की शुरुआत आज से ‘नहाय-खाय’ के साथ हो गई है. यह चार दिवसीय पर्व खासतौर पर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा के लिए प्रसिद्ध है. इस दिन का महत्व न केवल शारीरिक शुद्धता में है, बल्कि मानसिक संकल्प और धार्मिक अनुशासन में भी है. छठ व्रत की शुरुआत का यह पहला दिन व्रतियों के लिए एक नई ऊर्जा और आत्मशुद्धि का प्रतीक है. खासकर ‘कद्दू भात’ का प्रसाद इस दिन के अनुष्ठान का अभिन्न हिस्सा है, जो इस दिन को विशेष बनाता है.
सूर्य उपासना की शुरुआत
‘नहाय-खाय’ के साथ सूर्य देव की उपासना की शुरुआत होती है. छठ पूजा का उद्देश्य न सिर्फ सूर्य देव और छठी मैया की आराधना करना है, बल्कि यह व्रत व्रतियों को शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध रखने का भी माध्यम है. इस दिन से व्रती अपने मन, वचन और क्रिया को पूर्णतः शुद्ध करने का संकल्प लेते हैं.
नहाय-खाय की शुरुआत
‘नहाय-खाय’ का अर्थ है स्नान करके भोजन ग्रहण करना. यह दिन छठ महापर्व की शुरुआत का प्रतीक है, जब व्रती अपने शरीर और मन को शुद्ध करने के लिए पवित्र जल से स्नान करते हैं. इस दिन व्रती विशेष रूप से गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करते हैं, और यदि यह संभव नहीं हो तो घर पर गंगाजल का प्रयोग किया जाता है. स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर वे छठ पूजा का संकल्प लेते हैं, जिससे व्रत की पवित्रता कायम रहती है.
छठ पूजा में पवित्रता का महत्व
इस दिन घर और रसोई की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है. छठ पूजा में शुद्धता सबसे महत्वपूर्ण होती है, और इसलिए इस दिन घर के हर कोने की सफाई की जाती है. प्रसाद बनाने के लिए भी नए और स्वच्छ बर्तनों का उपयोग किया जाता है.
सात्विक भोजन और कद्दू भात का महत्व
नहाय-खाय के दिन व्रती केवल एक बार सात्विक भोजन करते हैं, जिसमें कद्दू-भात (या लौकी-भात) का विशेष महत्व है. यह प्रसाद मुख्य रूप से अरवा चावल, चने की दाल, और कद्दू या लौकी की सब्जी से तैयार किया जाता है.
सात्विकता और शुद्धता: कद्दू-भात को बिना लहसुन और प्याज के शुद्ध घी या सरसों के तेल और सेंधा नमक में पकाया जाता है. यह भोजन पवित्रता और सात्विकता का प्रतीक होता है, जो व्रत की शुरुआत के लिए उपयुक्त है.
स्वास्थ्य और पोषण: कद्दू एक ऐसी सब्जी है जिसमें पानी की अधिकता होती है, जो व्रति को चार दिन के कठिन व्रत के दौरान जल, ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है. इससे व्रति का शरीर लंबा उपवास सहने के लिए तैयार हो जाता है.
कद्दू भात का पारंपरिक महत्व
लोक मान्यताओं के अनुसार कद्दू को एक पवित्र फल माना जाता है, और इस कारण से इसे छठ पूजा के प्रसाद में खास महत्व दिया जाता है. यह न केवल शुद्धता और स्वास्थ्य को बनाए रखता है, बल्कि इस पारंपरिक प्रसाद का सेवन व्रतियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है.
नहाय-खाय के दिन के खास नियम
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व्रती सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं और घर को शुद्ध करते हैं.
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भोजन केवल मिट्टी या कांसे के बर्तनों में पकाया जाता है.
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लकड़ी या मिट्टी के चूल्हे का उपयोग खाना पकाने के लिए किया जाता है.
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इस दिन लहसुन, प्याज और नमक का उपयोग नहीं किया जाता.
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प्रसाद पहले सूर्य देव और देवी अन्नपूर्णा को अर्पित किया जाता है, फिर व्रति भोजन ग्रहण करते हैं.
Disclaimer: ये धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता.


