आख़िर इस मजार के सामने क्यों थम जाता है भगवान जगन्नाथ का रथ? वजह जानकर रह जाएंगे दंग
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान एक रहस्यमयी विराम हर साल आता है। रथ एक मुस्लिम महिला की मजार के सामने खुद-ब-खुद रुक जाता है। ना कोई बाधा, ना कोई आदेश—फिर भी रथ थमता है। आइए जानें इसके पीछे का रहस्य।

Regional News: पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा को विश्व की सबसे भव्य धार्मिक यात्राओं में गिना जाता है। लेकिन इस यात्रा में एक घटना हर बार दोहराई जाती है—भगवान जगन्नाथ का रथ बीबी हाज़रा की मजार के सामने आकर रुक जाता है। न कोई तकनीकी खराबी, न रास्ते में रुकावट—फिर भी भारी-भरकम लकड़ी का रथ खुद थम जाता है। भक्त यह देखकर अवाक रह जाते हैं। यह विराम कोई संयोग नहीं, बल्कि हर साल दोहराया जाने वाला ईश्वरीय संकेत है। लोककथाओं के अनुसार, बीबी हाज़रा एक मुस्लिम महिला थीं, लेकिन भगवान जगन्नाथ की अनन्य भक्त। वो वर्षों तक रथ यात्रा के दौरान भक्तों को पानी पिलाती रहीं—धर्म, जाति की परवाह किए बिना। उनकी सेवा भावना इतनी प्रभावशाली थी कि कहा जाता है, भगवान जगन्नाथ आज भी उन्हें नमन करने के लिए रथ रोकते हैं।
उनकी मजार आज भी यात्रा मार्ग में स्थित है और लाखों लोग उनके चरणों में शीश झुकाते हैं। बीबी हाज़रा ने कभी खुद को धर्म की दीवारों में कैद नहीं किया। उन्होंने सिर्फ मानवता को पूजा का नाम दिया। श्रद्धालु उन्हें ‘मां हाज़रा’ कहकर सम्मान देते हैं। कई भक्त तो रथ यात्रा में उनके दर्शन किए बिना आगे नहीं बढ़ते। पुरी की मिट्टी में आज भी उनकी करुणा की खुशबू महसूस होती है।
एकता का प्रतीक बन चुका है यह ठहराव
भगवान जगन्नाथ का यह विराम आज सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है। एक हिंदू देवता का रथ एक मुस्लिम महिला की मजार पर रुकता है—ये दृश्य दुनिया को धर्म की सीमाओं से परे भक्ति की ताकत बताता है। पुजारी न रथ रोकते हैं, न भक्त—रथ खुद ही थम जाता है। यह एक मौन श्रद्धांजलि होती है उस आत्मा को जिसने निःस्वार्थ सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाया। हर साल जब रथ वहीं रुकता है, तो हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोग उस क्षण को साथ जीते हैं। यह पल नारे नहीं, नम्रता सिखाता है। इसमें न राजनीति बोलती है, न पंथ—सिर्फ आस्था बोलती है। बच्चे, बूढ़े, महिलाएं—हर कोई इस चमत्कार का गवाह बनता है। यह रुकावट नहीं, एक आध्यात्मिक पुल है।
विज्ञान भी हैरान, आस्था जीतती है
इंजीनियरों ने कई बार रथ के रुकने की वजह जानने की कोशिश की। लेकिन ना ढलान, ना रुकावट, ना कोई तकनीकी कारण—फिर भी रथ वहीं रुकता है। और केवल तब आगे बढ़ता है जब मजार पर पूजा की जाती है। यह दृश्य एक चमत्कार बन चुका है—जहां विज्ञान चुप हो जाता है और आस्था बोल उठती है। जांचकर्ताओं ने ज़मीन की बनावट, चक्कों के गुरुत्व, और रस्सियों के तनाव तक को मापा। लेकिन हर गणना नाकाम रही। भक्त इसे 'भगवान की मर्जी' कहते हैं और वही अंतिम सत्य मानते हैं। यह घटना हर वर्ष उन्हीं वैज्ञानिकों को भी श्रद्धालु बना देती है। कैमरे कैद कर लेते हैं, पर विश्वास उस फ्रेम से बाहर बहता है।
सच्ची भक्ति की पहचान
बीबी हाज़रा की मजार पर रथ का रुकना केवल श्रद्धा नहीं, बल्कि ये दर्शाता है कि ईश्वर हर दिल की सच्ची भावना को पहचानता है। यह घटना बताती है कि भक्ति न जाति देखती है, न धर्म—वो सिर्फ प्रेम और सेवा देखती है। भक्ति जब निष्कलंक होती है, तो ईश्वर स्वयं झुकते हैं। बीबी हाज़रा ने साबित किया कि प्रेम और सेवा ही सच्चे धर्म हैं। ना मंदिर जरूरी था, ना कुरान—बस एक निश्छल मन था, जिसने भगवान को बांध दिया। आज भी उस मजार पर खड़े होकर हवा तक श्रद्धा से भारी लगती है। और रथ? वह वही करता है जो भगवान चाहते हैं—रुककर श्रद्धांजलि देना।


