Shani Sadesati: साढ़ेसाती और ढैय्या से बचाएगा दशरथकृत शनि स्तोत्र, पढ़िए पूरी पौराणिक कथा
शनि साढ़ेसाती के दौरान दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है. पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह स्तोत्र स्वयं अयोध्या नरेश दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए रचा था. पद्म पुराण में वर्णित इस स्तोत्र का पाठ करने से शनि दोषों से मुक्ति मिलती है और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है.

Shani Sadesati: शनिवार का दिन शनिदेव की आराधना और पूजा-अर्चना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है. उन्हें कर्म और न्याय का देवता कहा गया है. मान्यता है कि जो व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या या अन्य दोषों से पीड़ित होता है, उसके लिए दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायक सिद्ध होता है. यह स्तोत्र राजा दशरथ द्वारा शनिदेव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से रचा गया था. इसका उल्लेख पद्म पुराण में भी मिलता है.
कहा जाता है कि राजा दशरथ ने शनिदेव की दृष्टि से अपने राज्य की रक्षा करने के लिए इस स्तुति की रचना की थी. यह स्तोत्र न सिर्फ शनि दोषों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि व्यक्ति को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करता है.
शनि दोषों से मुक्ति दिलाने वाला स्तोत्र
पौराणिक कथाओं के अनुसार, दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और जातक को कष्टों से मुक्ति मिलती है. यह स्तोत्र खासकर उन लोगों के लिए बेहद प्रभावी माना गया है जो शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या से गुजर रहे होते हैं.
पद्म पुराण में उल्लेखित है कहानी
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, अयोध्या के राजा दशरथ को ज्योतिषियों ने बताया कि शनिदेव कृत्तिका नक्षत्र के अंत में पहुंच चुके हैं और अब वे रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे. यदि वे रोहिणी का भेदन करेंगे तो पृथ्वी पर बारह वर्षों का अकाल पड़ जाएगा. यह सुनकर राजा दशरथ अत्यंत चिंतित हो गए और शनिदेव से मिलने आकाशमार्ग से पहुंचे.
राजा दशरथ की स्तुति से प्रसन्न हुए शनिदेव
जब राजा दशरथ ने शनिदेव की स्तुति की, तो वे प्रसन्न हो गए और उन्हें वरदान मांगने को कहा. राजा दशरथ ने कहा, "जब तक सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी विद्यमान हैं, आप कृपया रोहिणी नक्षत्र का भेदन न करें." इस पर शनिदेव ने उन्हें वरदान दिया और वचन दिया कि वे भविष्य में रोहिणी नक्षत्र का भेदन नहीं करेंगे.
शनिदेव की पूजा का विशेष फल
शनिदेव ने कहा, "जो भी विधिपूर्वक मेरी पूजा करेगा, मैं उसे कभी कोई कष्ट नहीं दूंगा और उसकी सदैव रक्षा करूंगा." उन्होंने आगे कहा कि यदि किसी की कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में स्थित हैं, तो उसे कष्ट मिल सकता है. लेकिन यदि वह श्रद्धा और भक्ति के साथ लोहमयी शनिप्रतिमा का शमी पत्रों से पूजन करे, तिल मिश्रित उड़द-भात, लोहा, काली गौ या काला वृषभ ब्राह्मण को दान करे, और दशरथकृत शनि स्तोत्र का पाठ करे, "तो मैं उसे कभी भी पीड़ा नहीं दूंगा."
शनि साढ़ेसाती और ढैय्या में विशेष लाभ
शनि साढ़ेसाती और ढैय्या जैसे दोष जीवन में अनेक प्रकार के मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक संकट ला सकते हैं. लेकिन पौराणिक मान्यता और अनुभवी ज्योतिषियों की सलाह के अनुसार, दशरथकृत शनि स्तोत्र का नियमित पाठ इन सभी समस्याओं से राहत दिला सकता है. इस स्तोत्र का प्रभाव शनिदेव की कृपा को प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय माना जाता है.
Disclaimer: ये आर्टिकल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है, JBT इसकी पुष्टि नहीं करता है.


