गंभीर युग की टर्निंग पिचें, मेहमान टीम के लिए बनीं आसान, जानें अपने ही घर में चमक खो रही टीम इंडिया
भारतीय टेस्ट टीम घरेलू मैदान पर स्पिन के खिलाफ गंभीर संकट से जूझ रही है. दक्षिण अफ्रीका से हार और विदेशी स्पिनरों की बढ़ती सफलता ने पिच रणनीति, तकनीक और आत्मविश्वास पर सवाल खड़े कर दिए हैं. भारत की स्पिन विरासत संक्रमण के दौर में है.

नई दिल्लीः भारतीय टेस्ट क्रिकेट इस समय अपने सबसे कठिन दौर से गुजरता दिखाई दे रहा है. घरेलू मैदान, जिसे दुनिया भर में टीम इंडिया की सबसे बड़ी ताकत माना जाता था, अब लगातार दूसरी सीरीज में शर्मनाक हार की दहलीज पर खड़ा है. ईडन गार्डन्स का पहला टेस्ट इस गिरावट का ताज़ा उदाहरण बन गया, जहां शुभमन गिल की कप्तानी में भारत को दक्षिण अफ्रीका ने 30 रनों से पछाड़ दिया.
कोलकाता की वही टर्निंग पिच, जिसने वर्षों तक विदेशी टीमों को भयभीत किया था, अब भारतीय बल्लेबाज़ों के लिए ही सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है.
स्पिन के खिलाफ ढहती भारतीय बल्लेबाजी
दशकों तक भारत को स्पिन का बादशाह कहा जाता रहा है, लेकिन हालिया आंकड़े इस मिथक को अब खारिज करने लगे हैं. 124 के छोटे लक्ष्य का पीछा करते हुए चौथे दिन भारतीय बल्लेबाज जिस तरह लड़खड़ाए, उसने पूरे क्रिकेट ढांचे को हिला दिया.
दक्षिण अफ्रीका के ऑफ स्पिनर साइमन हार्मर ने ऐसी सटीकता दिखाई कि भारतीय बल्लेबाज उनके सामने बिखरते चले गए. टेस्ट मैच में उनके आठ विकेट इस बात का सबूत हैं कि विदेशी स्पिनरों को अब भारतीय परिस्थितियों में भी वही ताकत मिल रही है, जो कभी सिर्फ भारतीयों के पास होती थी.
यह समस्या अचानक पैदा नहीं हुई. 2024 की शुरुआत में न्यूजीलैंड के मिशेल सैंटनर और एजाज पटेल ने भी भारतीय बल्लेबाजी के कमजोर पक्ष को उजागर किया था. उस सीरीज में कीवी टीम ने 0-3 से भारत को क्लीन स्वीप कर इतिहास रच दिया था.
एक दशक का दबदबा कैसे टूटने लगा?
2013 से 2024 की अवधि तक भारत ने घर पर 53 में से 42 टेस्ट जीते और इस दौरान उसकी रणनीति दो मजबूत स्तंभों पर टिकी रही अटूट बल्लेबाजी और अश्विन-जडेजा की घातक स्पिन जोड़ी. लेकिन 12 महीनों में हालात पूरी तरह बदल गए. भारतीय बल्लेबाज अब लगातार स्पिन के सामने जूझने लगे हैं जबकि मेहमान टीमों के स्पिनर भारत में अविश्वसनीय सफलता हासिल कर रहे हैं.
पिच रणनीति बनेगी भारत की हार की वजह?
मुख्य कोच गौतम गंभीर के कार्यकाल में भारत ने स्पिन-अनुकूल पिचों को और भी अधिक प्राथमिकता देना शुरू किया है. हालांकि, यह कदम अब टीम पर उल्टा पड़ता दिख रहा है. पहले दिन से ही तेज टर्न देने वाली पिचें विरोधी टीमों को अतिरिक्त लाभ दे रही हैं. वे पहले से तैयार योजनाओं और fearless दृष्टिकोण के साथ आती हैं, जबकि भारतीय बल्लेबाज उन्हीं परिस्थितियों में फंसते चले जा रहे हैं जिन्हें वे अपने अनुकूल मानते थे.
क्या लचीलापन खो चुकी है नई पीढ़ी?
पहले जब भारत विदेशी स्पिनरों से असफल होता था, तो अगला मैच ही टीम की वापसी का मैदान बन जाता था. लेकिन मौजूदा पीढ़ी में वह संघर्ष क्षमता कहीं कमज़ोर हो गई है. गौतम गंभीर ने भी माना कि टीम की स्पिन के खिलाफ असहजता बढ़ रही है. उनकी तैयारी की रणनीति उल्टे सवाल पैदा कर रही है, क्योंकि लगातार टर्निंग पिचों पर अभ्यास करने के बावजूद बल्लेबाज़ों की तकनीक और आत्मविश्वास कमजोर होते जा रहे हैं.
क्या भारत की स्पिन विरासत समाप्त हो रही है?
भारत अब लगातार दूसरी घरेलू सीरीज हारने के खतरे में है, और सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या भारत की स्पिन विरासत खत्म हो रही है, या यह सिर्फ एक संक्रमणकालीन दौर है? वास्तविकता यह है कि भारतीय टीम अपनी ही बनाई पिच रणनीति के जाल में फंस चुकी है. जब तक बल्लेबाज स्पिन के खिलाफ अपनी तकनीक और मानसिक मजबूती नहीं पाते, विरोधी टीमों को भारत में जीतने से कोई नहीं रोक सकता.


