EV सेक्टर की बड़ी बदनामी: जेंसोल इलेक्ट्रिक पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप
जेंसोल इलेक्ट्रिक द्वारा 975 करोड़ रुपये के इलेक्ट्रिक व्हीकल लोन के कथित दुरुपयोग के मामले में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच शुरू कर दी है. यह कदम SEBI की उस रिपोर्ट के बाद उठाया गया है जिसमें प्रमोटर्स अमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी पर कंपनी की धनराशि को निजी हित में इस्तेमाल करने और गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए गए हैं.

इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) से जुड़े एक बड़े घोटाले में अब केंद्र सरकार ने भी सख्ती दिखानी शुरू कर दी है. जेंसोल इलेक्ट्रिक पर 975 करोड़ रुपये के लोन के कथित दुरुपयोग के मामले में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए जांच शुरू कर दी है. यह जांच कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस और वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े गंभीर आरोपों की पुष्टि के लिए की जा रही है. मंत्रालय ने यह कदम SEBI की अंतरिम रिपोर्ट के बाद उठाया है, जिसमें कंपनी के प्रमोटर्स पर कंपनी की धनराशि का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग करने के आरोप लगे हैं.
सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय की यह जांच पूरी तरह स्वतंत्र है और इसमें किसी निश्चित समयसीमा का निर्धारण नहीं किया गया है. यह कार्रवाई मंत्रालय द्वारा कंपनी की फाइलिंग्स और वित्तीय रिकॉर्ड्स की गहन समीक्षा के आधार पर की जा रही है. जांच की दिशा और निर्णय इसी समीक्षा के नतीजों पर निर्भर करेंगे.
सेबी ने प्रमोटर्स पर लगाया बैन
कुछ दिन पहले सेबी ने जेंसोल इलेक्ट्रिक के प्रमोटर्स अमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी पर सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें सिक्योरिटी मार्केट में किसी भी तरह की भागीदारी और किसी सूचीबद्ध कंपनी में डायरेक्टर या KMP (Key Managerial Personnel) की भूमिका निभाने से रोक दिया था. यह कार्रवाई शेयर प्राइस में हेराफेरी और लोन डिफॉल्ट की शिकायतों के बाद की गई थी.
सेबी की रिपोर्ट
सेबी की रिपोर्ट में कहा गया कि जेंसोल इलेक्ट्रिक के प्रमोटर्स ने कंपनी को 'अपनी पिग्गी बैंक' की तरह इस्तेमाल किया और कंपनी की धनराशि का निजी फायदे के लिए घोर दुरुपयोग किया. जांच में यह भी सामने आया कि प्रमोटर्स ने कंपनी के फंड्स को डायवर्ट कर निजी संपत्तियों की खरीद में उपयोग किया.
लोन की राशि का दुरुपयोग
जेंसोल इलेक्ट्रिक ने IREDA और PFC जैसे संस्थानों से कुल 975 करोड़ रुपये के लोन लिए थे, जो इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की खरीद के लिए थे. हालांकि, जांच में सामने आया कि इस राशि का बहुत कम हिस्सा वास्तव में ईवी खरीद में लगाया गया. इसके बजाय 200 करोड़ रुपये से अधिक की राशि एक कार डीलरशिप के जरिए प्रमोटर्स से जुड़ी संस्थाओं को ट्रांसफर कर दी गई.
सेबी को यह भी पता चला कि लोन की समय पर चुकौती दर्शाने के लिए क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को फर्जी दस्तावेज सौंपे गए थे.
'रिंग-फेंस्ड' फंड्स का भी उल्लंघन
जिन फंड्स को किसी खास बिजनेस उद्देश्य के लिए 'रिंग-फेंस्ड' किया गया था, उन्हें भी कथित तौर पर मनमाने ढंग से डायवर्ट कर दिया गया. इससे कंपनी की आंतरिक वित्तीय निगरानी प्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठे हैं. सेबी के अनुसार, प्रमोटर डायरेक्टर्स ने एक सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी को निजी कंपनी की तरह चलाया.
शेयरहोल्डर्स को हो सकता है भारी नुकसान
सेबी ने चेतावनी दी है कि यह फंड डाइवर्जन भविष्य में राइट-ऑफ के तौर पर दर्ज हो सकता है, जिससे शेयरहोल्डर्स को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. साथ ही FY20 में जहां प्रमोटर की हिस्सेदारी 70.72% थी, वहीं FY25 तक यह घटकर 35% रह गई है. यह गिरावट लंबे समय तक कंपनी में भरोसे की कमी को दर्शा सकती है.
शानदार ग्रोथ के बावजूद छवि पर सवाल
गौरतलब है कि जेंसोल इंजीनियरिंग, जो जेंसोल इलेक्ट्रिक की पेरेंट कंपनी है, सौर EPC प्रोजेक्ट्स और ईवी लीजिंग सेक्टर में सक्रिय है. कंपनी ने FY17 में 61 करोड़ रुपये की आय दर्ज की थी, जो FY24 तक बढ़कर 1,152 करोड़ रुपये हो गई. इसी अवधि में शुद्ध लाभ भी 2 करोड़ से बढ़कर 80 करोड़ रुपये पहुंचा. इसके बावजूद कंपनी की कॉर्पोरेट नैतिकता और वित्तीय पारदर्शिता अब जांच के घेरे में आ गई है.


