'कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री' ने जीता नेशनल फिल्म अवार्ड, समाज की कमियों को उजागर करती है फिल्म
71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में ‘कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का खिताब मिला. यह व्यंग्यात्मक कॉमेडी फिल्म सामाजिक मुद्दों पर केंद्रित है और दर्शकों व समीक्षकों द्वारा खूब सराही गई. फिल्म की सफलता दिखाती है कि गंभीर विषयों पर आधारित सार्थक सिनेमा को अब मुख्यधारा में जगह मिल रही है.

भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार की 71वीं श्रृंखला की आधिकारिक घोषणा 1 अगस्त 2025 को की गई. इस वर्ष के पुरस्कारों में हिंदी सिनेमा की सामाजिक व्यंग्य से भरपूर फिल्म ‘कटहल: अ जैकफ्रूट मिस्ट्री’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म का खिताब प्राप्त हुआ. यह घोषणा भारतीय फिल्म उद्योग और दर्शकों के लिए एक अहम संकेत है कि गंभीर विषयों को हल्के-फुल्के अंदाज़ में प्रस्तुत करने वाली फिल्में अब मुख्यधारा में जगह बना रही हैं.
हास्य के साथ सामाजिक संदेश
‘कटहल’ एक व्यंग्यात्मक कॉमेडी है जो दिखने में हल्की-फुल्की लगती है, लेकिन इसके भीतर गहरे सामाजिक सन्देश छिपे हैं. फिल्म की कहानी एक छोटे कस्बे में दो कटहल के चोरी हो जाने से शुरू होती है, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती है, यह भ्रष्टाचार, महिला नेतृत्व और प्रशासनिक प्रणाली की खामियों पर प्रकाश डालती है.
फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री और फिल्म की टीम ने आम जनता की भावनाओं और रोज़मर्रा की चुनौतियों को बेहद सरल और प्रभावशाली तरीके से पर्दे पर उतारा. फिल्म की इस खासियत ने उसे निर्णायक मंडल से विशेष सराहना दिलाई.
निर्णायक मंडल ने सौंपे पुरस्कारों के नाम
1 अगस्त को नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष बैठक के दौरान निर्णायक मंडल ने पुरस्कार विजेताओं की अंतिम सूची केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव को सौंप दी. इस अवसर पर राज्य मंत्री डॉ. एल मुरुगन और सूचना एवं प्रसारण सचिव संजय जाजू भी उपस्थित थे. यह कार्यक्रम सूचना और प्रसारण मंत्रालय के आधिकारिक ऑनलाइन चैनल के माध्यम से लाइव-स्ट्रीम किया गया, जिससे पूरे देश के दर्शक इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बने.
समीक्षकों और दर्शकों का मिला भरपूर प्यार
‘कटहल’ को मिले राष्ट्रीय पुरस्कार को फिल्म समीक्षकों और दर्शकों द्वारा व्यापक रूप से सराहा गया है. यह हिंदी सिनेमा में विषयवस्तु पर केंद्रित फिल्मों की स्वीकार्यता की ओर एक अहम संकेत है. पहले जहां व्यावसायिक और ग्लैमर प्रधान फिल्मों को अधिक तवज्जो दी जाती थी, अब दर्शक ऐसी कहानियों को पसंद कर रहे हैं जो उनके सामाजिक अनुभवों को आईना दिखाती हैं.


