'हमें मौत मंजूर लेकिन वंदे मातरम् नहीं...' मौलाना अरशद मदनी का नया विवादित बयान, मुसलमान सिर्फ एक अल्लाह की इबादत कर सकते हैं
सदन में वंदे मातरम पर चल रही तीखी बहस के बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने एक ऐसा बयान दिया, जिसने पूरे सदन से लेकर सोशल मीडिया तक में हड़कंप मचा दिया.

नई दिल्ली: संसद में वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर जारी बहस के बीच एक बार फिर माहौल गर्मा गया है. जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने अपने ताजा बयान से नया विवाद खड़ा कर दिया है. मदनी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे वंदे मातरम् नहीं गा सकते, चाहे इसके लिए उन्हें मरना ही क्यों न पड़े. यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है और राजनीतिक तथा सामाजिक हलकों में चर्चाओं का दौर तेज हो गया है.
इससे पहले, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में इस मुद्दे पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराते हुए कहा था कि देशभक्ति को किसी एक पहचान या धार्मिक प्रतीक से जोड़ना संविधान के खिलाफ है. ओवैसी का कहना था कि किसी भी नागरिक को किसी देवी-देवता की पूजा या नारा लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
क्या बोले अरशद मदनी?
मौलाना अरशद मदनी ने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि हमें किसी के ‘वंदे मातरम्’ पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को शामिल नहीं कर सकता. उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् के कई श्लोक ऐसे हैं, जिनमें देश को देवी का रूप देकर दुर्गा माता से तुलना की गई है और पूजा-संबंधी शब्दों का इस्तेमाल हुआ है, जो उनकी धार्मिक आस्था के खिलाफ है.
हमें किसी के “वंदे मातरम्” पढ़ने या गाने पर आपत्ति नहीं है, लेकिन मुसलमान केवल एक अल्लाह की इबादत करता है और अपनी इबादत में अल्लाह के सिवा किसी दूसरे को शामिल नहीं कर सकता। और “वंदे मातरम्” का अनुवाद शिर्क से संबंधित मान्यताओं पर आधारित है, इसके चार श्लोकों में देश को देवता…
— Arshad Madani (@ArshadMadani007) December 9, 2025
मदनी ने आगे लिखा कि वतन से प्रेम करना अलग बात है, उसकी पूजा करना अलग बात है. हमें मर जाना स्वीकार है, लेकिन शिर्क कभी स्वीकार नहीं. उन्होंने कहा कि भारत का संविधान हर नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, इसलिए किसी को भी उसकी आस्था के विरुद्ध नारा बोलने या गीत गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.
ओवैसी ने लोकसभा में क्या कहा?
8 दिसंबर को लोकसभा में बोलते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने भी वंदे मातरम् और ‘भारत माता’ के नारे पर आपत्ति जताई थी. उन्होंने कहा कि मुसलमानों से बार-बार वफादारी का सर्टिफिकेट मांगना बंद होना चाहिए. ओवैसी ने कहा कि हमारे संविधान की शुरुआत ‘We The People’ से होती है, किसी देवी-देवता के नाम से नहीं. अगर हम भारत माता को एक देवी के रूप में संबोधित कर रहे हैं, तो इसमें धर्म शामिल हो जाता है.
उन्होंने स्पष्ट कहा कि विचार, अभिव्यक्ति और इबादत की आजादी लोकतंत्र का मूल तत्व है, इसलिए किसी भी नागरिक को किसी देवी-देवता की पूजा या सज्दा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. ओवैसी ने यह भी कहा कि ये कहना कि भारत में रहना है तो वंदे मातरम् कहना होगायह संविधान के खिलाफ है.
वंदे मातरम् पर बहस क्यों?
वंदे मातरम् की 150वीं वर्षगांठ पर संसद में जारी चर्चा के दौरान कई नेताओं ने इसे राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बताया, वहीं दूसरी तरफ कुछ नेताओं ने धार्मिक आधार पर इससे जुड़े मुद्दों को उठाया. इस बहस के बीच मदनी और ओवैसी के बयान ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है.


