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मैतेई-कुकी हिंसा: जिसने CM बीरेन सिंह को इस्तीफा देने पर किया मजबूर, 200 से ज्यादा मौतें, हजारों बेघर...

मणिपुर में जारी हिंसा के बीच सीएम बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफा देने से ठीक पहले बीरेन सिंह ने पार्टी के विधायकों को बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा से मुलाकात की थी. आज ही के दिन CM बीरेन सिंह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात किए थे.  

CM Biren Singh Resign: मणिपुर में पिछले साल 3 मई से जारी हिंसा की जड़ में तीन प्रमुख जातीय आंदोलनों का संघर्ष है, जिसकी वजह से सीएम बीरेन सिंह को पद से इस्तीफा देना पड़ गया. एक समुदाय ऐसा था जो सीएम बीरेन सिंह को चाह रहा था, जबकि एक समुदाय ऐसा भी था जो चाहता था कि बीरेन सिंह इस्तीफा दे दें. बीजेपी के कई विधायक भी हिंसा की वजह से बढ़ते दबाव की वजह से बीरेन सिंह के इस्तीफे की मांग कर रहे थे.

इस हिंसा की शुरुआत ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) द्वारा आयोजित 'आदिवासी एकता मार्च' से हुई, जिसमें आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच झड़पें हुईं, जो बाद में हिंसा में बदल गईं. यह रैली मैतेई समुदाय द्वारा जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में निकाली गई थी. इसके परिणामस्वरूप नगा-कुकी और मैतेई समुदायों के बीच लगातार जातीय संघर्ष बढ़ता चला गया.

नगा मूवमेंट, कुकीलैंड और मैतेई प्रोटेस्ट

मणिपुर में तीन प्रमुख समुदाय हैं: मैतेई, नगा और कुकी. मैतेई समुदाय की आबादी 53% है और वे घाटी में बसते हैं, जबकि नगा और कुकी आदिवासी समुदाय हैं और वे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. मणिपुर में एक कानून के तहत आदिवासी क्षेत्रों में केवल आदिवासी समुदाय को बसने का अधिकार है, जबकि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा नहीं मिलने की वजह से वे इन इलाकों में नहीं रह सकते. नगा और कुकी समुदाय को डर है कि अगर मैतेई को जनजाति का दर्जा मिल जाता है तो वे पहाड़ी इलाकों में बसने के हकदार हो जाएंगे, जिससे उनकी जमीनों का विवाद बढ़ सकता है.

जमीन जाने का डर

मणिपुर का इतिहास जातीय संघर्षों से भरा रहा है. 1947 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. 1972 में इसे राज्य का दर्जा मिला. मणिपुर में जातीय संघर्षों का इतिहास कई दशकों पुराना है. 1990 के दशक में नगा आंदोलन के खिलाफ कुकी-जोमी समुदाय ने 'कुकीलैंड' के लिए अपनी मांग शुरू की थी, जो बाद में दोनों समुदायों के बीच और अधिक दरार का कारण बना.

आरक्षण का भी विवाद

नगा और कुकी आंदोलनों ने मैतेई समुदाय में भी राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया. 1970 के दशक में मैतेई समुदाय को यह डर था कि ग्रेटर नगालिम के निर्माण से मणिपुर का क्षेत्र सिकुड़ सकता है. इसके बाद, मैतेई समुदाय ने अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग की, ताकि उन्हें नौकरियों में आरक्षण मिल सके. इसके अलावा, मणिपुर में इनर लाइन परमिट (ILP) की मांग भी उठी, जिससे घाटी के मैतेई लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया.

बढ़ता गया जातीय संघर्ष

मणिपुर में मौजूदा हिंसा के कारण हैं – भूमि विवाद, जातीय संघर्ष और राजनीतिक संघर्ष. मैतेई समुदाय की आबादी 52% है और वे इम्फाल घाटी में रहते हैं, जो राज्य के 10% भूभाग में स्थित है. इसके विपरीत, कुकी और नगा समुदायों की आबादी लगभग 40% है और वे पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं. मैतेई समुदाय को लगता है कि वे धीरे-धीरे अपनी भूमि खो रहे हैं क्योंकि उन्हें आदिवासी इलाकों में जमीन खरीदने का अधिकार नहीं है. 

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09 February 2025, 08:31 PM IST

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